RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘तीन दिन देती हूँ तुम्हें; इन तीन दिनों में अगर तुमने प्रिया से नहीं कहा, तो मैं ख़ुद कह दूँगी; और हाँ, तुम्हारा रेजिग्नेशन एक्सेप्ट नहीं होगा; चुपचाप यहीं काम करो।’’ माया आज फिर अपने पूरे बॉसी अंदा़ज में थी। माया के इसी अंदा़ज पर तो कबीर मर-मिटा था।
उस शाम माया भी प्रिया से खिंची-खिंची रही। वैसे भी कुछ दिनों से उनके बीच गैर-ज़रूरी बातें बंद थीं। कभी साथ बैठकर खाना खा लेते, तो कभी ‘बाहर से खा आई हूँ’ या ‘आज भूख नहीं है’, कहकर अपने-अपने कमरों में सिमट जाते। कबीर का भी कोई ज़िक्र उनके बीच कभी न होता। माया को प्रिया के अपार्टमेंट में रहना एक ज़बरदस्ती लिया जाने वाला अहसान लगने लगा था। रात का खाना खाते हुए माया ने प्रिया से कहा,
‘‘प्रिया! आजकल ऑफिस में काम बहुत है; यहाँ से आने-जाने में का़फी समय लग जाता है... ऑफिस के पास ही रेंट पर एक अपार्टमेंट देखा है, सोचती हूँ वहीं शिफ्ट हो जाऊँ।’’
‘‘कबीर को भी साथ ले जाओगी माया?’’ एक छोटे से मौन के बाद प्रिया ने कहा।
माया थोड़ा चौंकी, मगर उसने कुछ नहीं कहा, बस सिर झुकाकर खाना खाती रही।
‘‘क्यों माया, जवाब क्यों नहीं देती? कबीर को भी साथ ले जाओगी? क्यों ले जा रही हो कबीर को मुझसे दूर? क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा?’’ प्रिया चीख उठी।
‘‘सॉरी प्रिया; मैंने कुछ नहीं किया है... ये कबीर का फ़ैसला है; कबीर तुम्हें छोड़कर मेरे पास आना चाहता है।’’
‘‘ऐसा क्या जादू किया है तुमने कबीर पर! ऐसा क्या है तुम्हारे पास, कि वह मुझे ही नहीं, बल्कि मेरी करोड़ों की दौलत को भी ठुकराकर तुम्हारा होना चाहता है?’’ प्रिया की आँखों में, हैरत में लिपटा रोष था।
‘‘इस सवाल का जवाब तुम कबीर से ही पूछो तो बेहतर होगा।’’ माया ने रूखा सा उत्तर दिया।
उसके बाद प्रिया और माया की कोई बात नहीं हुई। अगले दिन माया प्रिया के अपार्टमेंट से चली गई।
माया के जाने के बाद कबीर प्रिया से मिलने पहुँचा।
‘‘हाय कबीर! कैसे हो?’’ प्रिया ने दूर से ही पूछा।
‘‘ठीक हूँ प्रिया, तुम कैसी हो?’’
‘‘ठीक हूँ, बैठो; क्या लोगे?’’
‘‘कुछ नहीं।’’ सो़फे पर बैठते हुए कबीर ने लिविंग रूम में ऩजर घुमाई। माया की सारी निशानियाँ वहाँ से जा चुकी थीं। अपार्टमेंट एक बार फिर, सि़र्फ और सि़र्फ प्रिया का लग रहा था।
‘‘प्रिया! एक पेग व्हिस्की का मिलेगा?’’ कबीर ने अचानक कहा।
‘‘हाँ, कौन सी लोगे?’’
‘‘कोई भी।’’
प्रिया, कबीर के लिए हैण्डकट क्रिस्टल के गिलास में स्कॉच व्हिस्की का एक बड़ा पेग बना लाई। उसे पता था, कबीर को उसकी ज़रूरत थी। कबीर ने व्हिस्की का गिलास उठाकर एक घूँट में ही खत्म कर दिया। अब जाकर उसमें प्रिया से बात करने की हिम्मत आई।
‘‘प्रिया! पता है तुम लड़कियों की प्रॉब्लम क्या है? तुम एक ऐसा आवारा आशिक चाहती हो, जिसकी आवारगी तुम्हारी अपनी दहली़ज से ही लिपटी रहे।’’
कबीर ने नशे में बात तो कुछ गहरी ही कह दी, मगर उसे ख़ुद अपनी बात का मकसद समझ नहीं आया था।
‘‘कबीर, तुम्हारी आवारगी तो मेरी दहली़ज के भीतर ही किसी और से लिपटती रही।’’
प्रिया के शब्द कबीर को चुभ गए, उसका गला कुछ भर आया।
‘‘प्रिया, तुम्हें माया को मेरे हवाले करके नहीं जाना चाहिए था।’’
‘‘मैंने तुम्हारी नीयत पर भरोसा किया था कबीर!’’
‘‘मगर मेरी नीयत, मेरी आवारा फ़ितरत को सँभाल नहीं पायी; आवारगी की लौ में न जाने कब माया से प्रॉमिस कर बैठा। प्रिया, तुमसे तो धोखा कर ही चुका हूँ, अब माया से भी धोखा करने की हिम्मत नहीं होती।’’ कबीर का गला अब भी भरा हुआ था।
‘‘तुम्हें माया को धोखा देने की ज़रूरत नहीं है कबीर; माया को भी तुम्हें आ़जमा लेने दो। देखना चाहती हूँ कि माया कब तक तुम्हारी आवारगी को काबू रख पाती है... अगर तुम माया के काबू में रहे, तो समझ लूँगी कि कमी मुझमें ही है।’’ प्रिया की आँखें भर आई थीं।
‘‘कमी मुझमें है प्रिया; कभी मैं प्रेम पाने के लायक ही नहीं था; फिर प्रेम पाना तो सीख लिया, मगर प्रेम को सँभालना नहीं सीख पाया... कोशिश करूँगा कि अबकी डार्क नाइट में प्रेम सँभालना भी सीख लूँ।’’
‘‘डार्क नाइट?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘डार्क नाइट को डार्क नाइट से गु़जरकर ही समझा जा सकता है प्रिया। मैं उस दर्द को भूल गया था, अच्छा हुआ याद आ गया।’’ कबीर की आँखें भी भर आर्इं, ‘‘अच्छा चलता हूँ; और हाँ, ये घड़ी मैं तुम्हें वापस नहीं करूँगा; मेरे पास रहेगी, तुम्हारी याद बनकर।’’ कबीर ने अपनी कलाई पर बँधी प्रिया की दी हुई रिस्ट वॉच की ओर इशारा किया।
प्रिया ने उठकर, कबीर को गले लगाकर कहा, ‘‘गुडबाय कबीर, आई विल मिस यू।’’
‘‘मैं भी तुम्हें मिस करूँगा प्रिया।’’ कबीर ने भरे गले से कहा।
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