RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
चैप्टर 21
माया, प्रिया से अलग, अपने किराये के अपार्टमेंट में रहने लगी। कबीर का माया के अपार्टमेंट में आना-जाना लगा रहता। कबीर, अब प्रेम को सँभालना भी सीखने लगा था। वह माया को खुश रखने की हर संभव कोशिश करता। माया खुश थी, कि कबीर के रूप में उसे एक समर्पित प्रेमी मिला था। कबीर खुश था, कि माया ने उसके समर्पण को स्वीकार किया था। प्रिया के साथ किए विश्वासघात का उसे दुःख था, मगर वह उसके अपने जीवन में की गई गलतियों की लम्बी शृंखला में एक और कड़ी ही था। वह खुश था कि उसकी प्रेम की तलाश माया पर पहुँचकर पूरी हो गई थी।
‘‘कबीर, इस अपार्टमेंट का मालिक अपार्टमेंट बेचना चाहता है; सोच रही हूँ मैं ही खरीद लूँ।’’ एक दिन माया ने कबीर से कहा।
‘‘इतनी जल्दी भी क्या है माया; किराये पर कोई और अपार्टमेंट मिल जाएगा।’’ कबीर ने कहा।
‘‘कबीर, दिस इ़ज ए गुड टाइम टू बाय प्रॉपर्टी; इंटरेस्ट रेट कम है, प्रॉपर्टी प्राइस बढ़ रहे हैं। इस समय रेंट करना तो पैसों की बर्बादी है; और फिर ख़ुद का अपार्टमेंट हो, तो उसे अपने तरीके से रखा जा सकता है। तुम्हीं ने तो कहा था, कि जिस घर में माया रहे, वह घर माया का ही लगना चाहिए।’’
‘‘हाँ, मगर इतने पैसे कहाँ से लाओगी?’’
‘‘कुछ सेविंग है, और बाकी का लोन मिल जाएगा; मैंने पता किया है, बैंक चार लाख पौंड का लोन देने को तैयार है।’’
‘‘चार लाख पौंड? कुछ ज़्यादा नहीं है माया? तुम कहो तो मैं भी कुछ कंट्रीब्यूट कर सकता हूँ।’’ कबीर ने चिंता जताई।
‘‘अभी तुम कमाते ही कितना हो कबीर; जब कुछ ठीक-ठाक कमाने लगो तब कहना।’’ माया ने हँसते हुए कहा।
माया ने बात शायद म़जाक में ही कही, मगर कबीर को अच्छा नहीं लगा। अचानक ही वह ख़ुद को माया के सामने छोटा महसूस करने लगा। प्रेम में तो उसने माया की हुकूमत स्वीकार कर ली थी, मगर दुनियावी मामले दिल के मामलों से अलग होते हैं। कबीर ने सोचा कि अगर वह माया के सामने ख़ुद को इतना छोटा महसूस कर रहा था, तो प्रिया के सामने कितना छोटा महसूस करता। बस यही सोचते हुए उसने माया की बात को झटक कर मन से बाहर किया।
माया ने बैंक से लोन लेकर अपार्टमेंट खरीद लिया। माया के पास समय कम होता; वह ज़्यादा वक्त अपने करियर को देती। सफलता और समृद्धि को पाने की लपट एक बार फिर उसके भीतर सुलग उठी थी। माया के अपार्टमेंट को माया की पसंद का घर बनाने की ज़िम्मेदारी कबीर पर आ पड़ी।
कबीर का म़जाक सच ही हो गया था, कि माया ने उसे घर पर भी नौकर रख लिया था।
माया ने हाउस वार्मिंग पार्टी की। ऑफिस के कुछ लोगों को घर, डिनर पर बुलाया। भोजन और ड्रिंक्स की कैटरिंग का इंत़जाम बाहर से किया गया था। घर की लगभग पूरी सजावट कबीर ने कर ही रखी थी; माया की पसंद के अनुरूप ही।
शाम का वक्त था। हवा में जास्मिन की खुशबू बिखरी हुई थी, बैकग्राउंड में हल्का जा़ज संगीत बज रहा था। मेहमान आने शुरू हुए, और साथ ही शुरू हुआ ड्रिंक्स का दौर।
‘‘वाह माया, तुम्हारा फ्लैट तो बहुत सुन्दर है; और तुमने डेकोरेशन भी कितना बढ़िया किया है; इतना समय कैसे निकालती हो घर के लिए?’’ निशा ने अपार्टमेंट की सजावट पर ऩजरें फेरते हुए कहा।
‘‘ये सारी सजावट कबीर ने की है।’’ माया ने एक प्रशंसा भरी निगाह कबीर पर डाली।
‘‘लगता है कबीर हमारी फ़र्म की कम, और माया की नौकरी अधिक करता है।’’ मि.सिंग ने हँसते हुए कहा।
कबीर को मि.सिंग का म़जाक कुछ पसंद नहीं आया। उसने शिकायत भरे अंदा़ज में माया की ओर देखा।
‘‘ये कबीर का फ्लैट भी है; वी आर टूगेदर नाउ।’’ माया ने कबीर के गले में बाँहें डालीं।
‘‘कबीर, यू आर वेरी लकी टू हैव ए गर्लफ्रेंड लाइक माया; मेरी बात लिख लो... एक दिन इस लड़की की तस्वीर बि़जनेस टाइम्स के फ्रट कवर पर होगी।’’ मि.सिंग ने व्हिस्की का एक लम्बा घूँट भरकर कहा।
निशा ने कबीर के चेहरे पर ऩजर डाली। उसे लगा कि कबीर को मिस्टर सिंग द्वारा माया के सामने यूँ छोटा साबित करना पसंद नहीं आ रहा था। उसने सामने दीवार पर सजी एक सुनहरी पेंटिंग को देखते हुए कहा, ‘‘वाओ! गुस्ताव क्लिम्ट की ‘दि किस’... ये तो पक्का कबीर की ही चॉइस होगी!’’
‘‘कबीर इ़ज वेरी रोमांटिक।’’ माया ने एक रोमांटिक अंदा़ज से कबीर को देखा।
‘‘माया, यू आर वेरी लकी टु हैव ए बॉयफ्रेंड लाइक कबीर; काश, मुझे भी ऐसा ही कोई रोमांटिक बॉयफ्रेंड मिल जाता, जो दिल से लेकर घर तक सब कुछ सँभाल लेता।’’ निशा ने माया के रोमांटिक अंदा़ज को दुहराया।
माया को निशा की कही बात याद आ गई, ‘ही विल वरशिप द फ्लोर यू वाक ऑन।’ कबीर ऐसा ही समर्पित प्रेमी था।
पार्टी चलती रही, शराब के दौर भी चलते रहे। मेहमानों का साथ देते- देते माया ने शराब भी खूब पी ली। फिर पार्टी खत्म हुई, मेहमान जाने लगे। मेहमानों के जाने के बाद माया, थकान और नशे में निढाल होकर सो़फे में जा धँसी।
‘‘कबीर, तुम मुझसे कितना प्यार करते हो?’’ माया ने पास बैठे कबीर के गले में बाँहें डालते हुए पूछा।
‘‘माया, प्यार का कोई पैमाना नहीं होता कि उसे नापा जा सके।’’ कबीर ने भी माया के गले में बाँहें डालीं।
‘‘डू यू वरशिप द फ्लोर आई वाक ऑन?’’
‘‘ऑफकोर्स माया।’’ कबीर ने माया के गले से बाँहें निकालकर उसकी कमर जकड़ी।
‘‘मैंने कभी देखा नहीं।’’ माया ने कबीर पर शरारती निगाह डाली।
‘‘तुम्हें मेरे प्यार पर शक है?’’
‘‘हाँ, कर के दिखाओ, वरशिप द फ्लोर आई वाक ऑन।’’ कहते हुए माया की नशे में डूबी आवा़ज और भी नशीली हो गयी।
‘‘पहले सो़फे से उठकर, चलकर तो दिखाओ।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा।
‘‘ठीक है, छोड़ो मुझे।’’ माया ने अपनी कमर से कबीर की बाँहें हटाईं।
सो़फे से उठकर माया चलने लगी, मगर नशे की हालत में और हाई हील में उससे ज़्यादा दूर चला न गया। तीन-चार क़दम चलते ही वह लड़खड़ाने लगी। कबीर ने उठकर उसे अपनी बाँहों में लपेटा।
‘‘मुझे छोड़ो, वरशिप द फ्लोर।’’ माया ने हँसते हुए कहा।
‘‘माया, लेट मी वरशिप योर फीट; फिर जिन जिन रास्तों पर चलोगी, सभी पर मेरी बंदगी के निशां होंगे।’’ कबीर ने मुस्कुराते हुए माया की कमर को ट्विस्ट किया और उसे सो़फे पर लेटाकर उसके पैर पर अपने होंठ रख दिए। कबीर को वह पल याद आ गया, जब उसके होंठ नेहा के पैरों के पास जाकर घबराकर काँप उठे थे। तब से अब तक कितना समय गु़जर गया, कितना कुछ बदल गया। तब, जब वह किसी लड़की के सामने अपना प्रेम अभिव्यक्त करने से घबराता था; और अब, जब वह पूरे आत्मविश्वास से किसी लड़की पर अपना प्रेम ज़ाहिर कर सकता है, उसे आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर अपने बिस्तर तक ला सकता है। मगर इस पूरे आत्मविश्वास के बावजूद वह एक ऐसी लड़की ही ढूँढ़ता रहा, जिसके सामने वह स्वयं समर्पण कर दे; जो उस पर शासन करे। तब लड़कियाँ उसके लिए चुनौती थीं; फिर वह लड़कियों में चुनौती ढूँढ़ने लगा। क्या उसने प्रिया को सि़र्फ इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि प्रिया ने बहुत आसानी से उसके आगे समर्पण कर दिया था? प्रिया उसके लिए कभी चुनौती नहीं रही, जबकि माया हर पल उसके लिए चुनौती है; जिसकी रफ्तार से रफ्तार मिलाकर चलना उसे कठिन लगता है। इन्सान जो भी चाहे, जब तक वह उसके लिए चुनौती न हो, उसका पीछा करने में आनंद नहीं आता।
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