RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘सि़र्फ पूजा से काम नहीं चलेगा भक्त; देवी को भोग की भी आवश्यकता है।’’ सोच में डूबे कबीर की ठुड्डी में पैर अड़ाते हुए माया ने शरारत से हँसकर कहा।
कबीर ने ऩजरें उठाकर माया की शरारत से चमकती आँखों को देखा। उसकी अपनी आँखों में भी शरारत चमक उठी। कबीर के होंठ माया की टाँग पर सरकने लगे। माया की टाँगें लम्बी और स्कर्ट छोटी थी; फिर भी कबीर के अधीर होंठों को उसकी स्कर्ट के भीतर पहुँचने में समय नहीं लगा। कबीर के हाथ भी माया की टाँगों पर सरकते हुए उसकी जाँघों पर पहुँचे, और फिर कुछ और ऊपर सरककर माया के कूल्हे जकड़ लिए। माया की नशे में भीगी साँसें कुछ और बहक उठीं। उसने स्कर्ट की ज़िप खोलकर उसे नीचे सरकाया। स्कर्ट, कबीर के कन्धों पर जा लिपटी। माया ने अपनी टाँगें कबीर की कमर पर लपेटीं और उसकी गर्दन को जकड़कर उसका चेहरा ऊपर खींचा। कबीर अब पूरी तरह उसकी क़ैद में था। कबीर के अधीर होंठों और उसकी बेसब्र क्रॉच के बीच अब सि़र्फ सिल्क की महीन पैंटी थी। माया के बेसब्र हाथों ने उसे भी खींचकर नीचे जाँघों पर सरका दिया। माया और कबीर की बेसब्री कुछ पलों के लिए ठहर गई।
कुछ वक्त बस यूँ ही बीता, फिर कबीर के प्रेम की तरह ही उसकी जॉब भी स्थाई हो गई।
‘‘कबीर, कन्ग्रैचलेशन्स! तुम्हारा प्रोबेशन कम्पलीट हो गया और जॉब परमानेंट हो गई है।’’ माया ने कबीर को खुशखबरी दी।
‘‘थैंक्स माया।’’ कबीर ने माया को गले लगाकर कहा।
‘‘मगर कबीर, तुम्हारी अप्रे़जल रेटिंग सि़र्फ गुड है, एंड दिस इ़ज नॉट सो गुड।’’
‘‘ओह, तो बॉस के लिए अच्छा होना अच्छा नहीं है।’’ कबीर ने म़जाक किया।
‘‘बी सीरियस कबीर; ये फाइनेंशियल मार्केट की दुनिया है; यहाँ अच्छा नहीं, बल्कि बहुत बहुत अच्छा होना पड़ता है।’’
‘‘माया, तुम्हें पता है कि मुझे रैट रेस पसंद नहीं है; मैं अपने ख़ुद के काम से खुश हूँ, और मेरे लिए इतना ही का़फी है।’’
‘‘कबीर, अगर तुम्हें मेरे साथ रहना है तो मेरी ऱफ्तार से ही दौड़ना होगा।’’ माया ने रोब झाड़ा।
‘‘ओके माया, आई विल ट्राई।’’
‘‘यू मस्ट।’’ माया ने उसी रोब से कहा।
कबीर एक विचित्र सी दुविधा में था। माया की लगाम उस पर कसती जा रही थी। कबीर, जो खुले आसमान में स्वच्छंद होकर उड़ना चाहता था, वह माया के बताए रास्ते पर दौड़ रहा था। माया का बॉसी रवैया उससे वह सब करा रहा था, जो वह करना नहीं चाहता था... मगर माया का यही अंदा़ज तो उसे पसंद था। वह चाहकर भी माया के तिलिस्म को तोड़ नहीं पा रहा था।
कुछ वक्त और बीता। प्रिया की पढ़ाई पूरी हुई। उसने अपने डैड की फ़र्म ज्वाइन कर ली, यूरोप में मार्वेâटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन की हेड बनकर। माया की पकड़ भी अपनी फ़र्म पर मजबूत होती गई। माया की रफ्तार ते़ज थी; कबीर के लिए उसकी रफ्तार से रफ्तार मिलाना मुश्किल था, मगर उसने तय कर लिया था, चलना तो उसे माया के साथ ही था; क़दम से क़दम मिलाकर, या पीछे-पीछे।
‘‘हे कबीर! एक अच्छी खबर है।’’ माया ने अपने सामने बैठे कबीर से कहा।
‘‘हूँ... प्रमोशन मिला है, सैलरी हाइक मिला है या बोनस?’’ कबीर ने म़जाक के अंदाज में पूछा।
‘‘ऑ़फर मिला है, फ़र्म में पार्टनर बनने का।’’ माया का चेहरा गर्व से चमक रहा था।
‘‘वाओ! ग्रेट... तो अब तुम ऑफिशियली मेरी बॉस बन जाओगी; माया मेमसाब।’’ कबीर ने म़जाक किया, ‘‘मगर तुम्हें फ़र्म में इन्वेस्ट करना होगा?’’
‘‘हाँ, लगभग दो लाख पौंड।’’ माया ने एक बेपरवाह मुस्कान बिखेरी।
‘‘माया, तुम्हारे पास पैसे हैं? तुम पर पहले ही इस अपार्टमेंट का लोन है।’’ कबीर ने चिंता जताई।
‘‘कबीर, मैंने सही समय पर अपार्टमेंट खरीद लिया था। अपार्टमेंट का प्राइस बढ़ गया है, और दो लाख पौंड की मेरी इक्विटी बढ़ गई है; इस इक्विटी के अगेंस्ट लोन लेकर मैं फ़र्म में इन्वेस्ट कर सकती हूँ।’’ अपनी व्यवसाय कुशलता पर हो रहा गर्व, माया की मुस्कान को और भी मोहक बना रहा था।
‘‘माया, पता नहीं क्यों, मगर मुझे तुम्हारी रफ्तार से डर लगता है... तुम्हें नहीं लगता कि तुम इतना ज़्यादा लोन लेकर रिस्क ले रही हो?’’
‘‘रिस्क किस बात का है? मैं अपनी ही इक्विटी के अगेंस्ट लोन ले रही हूँ; अपार्टमेंट का प्राइस बढ़ा है, तो वह मेरा ही पैसा तो हुआ।’’
‘‘मगर अपार्टमेंट का प्राइस कम भी तो हो सकता है?’’ कबीर ने फिर चिंता जताई।
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