RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘कबीर, अब तुम यह मिडिल क्लास की मेंटालिटी छोड़ो... बी आप्टमिस्टिक... क्या गाना है वह.. ल, ला, ल, ला।’’ माया ने गाने की धुन याद करनी चाही।
‘‘कौन सा गाना माया?’’
‘‘वही..’’ गाना याद करते हुए माया ने कहा, ‘‘हाँ, तू मेरे साथ-साथ आसमां से आगे चल...देखा, तुम्हारे साथ रहकर मैं हिंदी गाने भी सुनने लगी हूँ।’’
कबीर, आसमां से आगे तो जाना चाहता था, मगर माया के बताए हुए रास्ते पर चलकर नहीं।
‘‘मैं ड्रिंक्स बनाती हूँ, तुम गिटार लेकर यह गाना तो बजाओ कबीर; लेट्स सेलिब्रेट।’’ माया चहक रही थी।
कबीर ने वैसा ही किया, जैसा कि माया ने उसे कहा। गिटार लेकर वह गाने की धुन छेड़ने लगा।
माया, फ़र्म में पार्टनर बन गई। उसका रोब और रुतबा और बढ़ गया। उसे अपना प्राइवेट ग्लास चैम्बर मिल गया।
‘‘तो कैसा लग रहा है यह प्राइवेट चैम्बर?’’ माया ने होंठों पर दर्प लपेटे हुए कबीर से पूछा।
‘‘हूँ... गुड।’’ कबीर ने माया की रिवॉल्विंग चेयर पर बैठते हुए उसे घुमाया।
‘‘मिस्टर कबीर, आप ये न भूलें कि आप इस फ़र्म में सि़र्फ एक असिस्टेंट हैं; पार्टनर की चेयर पर बैठने की गुस्ताखी न करें।’’ माया ने शरारत से कहा।
‘‘ओह, सॉरी मैडम।’’ कबीर ने झटपट कुर्सी से उठते हुए शरारत से सिर झुकाया।
‘‘वैसे अगर आप बॉस को खुश रखें तो आपकी जल्दी तरक्की हो सकती है।’’ माया ने चेयर पर बैठते हुए बैकरेस्ट पर आराम से पीठ टिकाई, ‘‘हूँ... तो कहो, हाउ विल यू प्ली़ज योर बॉस?’’
‘‘मैडम, आपको याद है, जब आप नई-नई लंदन आई थीं; तब एक बेरो़जगार लड़का आपको लंदन की सैर पर ले गया था, जिससे खुश होकर आपने उसकी नौकरी लगवाई थी।’’
‘‘हाँ,दैट वा़ज ए गुड फन।’’
‘‘तो इस बार आपको लंदन की सैर का एक नया एक्सपीरियंस दिया जाए?’’
‘‘किस तरह का एक्सपीरियंस?’’
‘‘रिक्शे की सवारी का।’’
‘‘रिक्शे में तो इंडिया में बहुत घूमे हैं, उसमें क्या फ़न है?’’
‘‘मगर आपने कभी रिक्शेवाले से प्यार नहीं किया होगा।’’ कबीर ने शरारत से माया को देखा।
‘‘क्या मतलब? तुम चलाओगे रिक्शा?’’ माया ने चौंकते हुए कहा। कहते हुए उसके होंठों से हँसी भी छलक पड़ी।
‘‘हाँ मेमसाब।’’ कबीर ने फिर शरारत से सिर झुकाया।
शाम को कबीर ने माया को घर पहुँचकर तैयार रहने को कहा। सर्दियों के दिन थे। शाम जल्दी ढल चुकी थी। आसमान में अँधेरा था। हवा में कड़कती ठंढ थी। माया, सिल्क की लांग ड्रेस के ऊपर फ्लीस का मोटा पुलओवर जैकेट पहनकर तैयार थी। कबीर, खूबसूरत सा साइकिल रिक्शा लेकर पहुँचा। रिक्शे की सवारी सीट सामने की ओर से छोड़कर बाकी सभी ओर से पीले रंग की पॉलिथीन की मोटी शीट से घिरी थी। पॉलिथीन की शीट पर पीछे की ओर, ब्रिटेन का फ्लैग, यूनियन जैक बना हुआ था। साइकिल के हैंडल, प्लास्टिक के लाल और पीले फूलों से सजे हुए थे।
‘‘इतना सुंदर रिक्शा कहाँ से ले आए?’’ माया ने चहकते हुए पूछा।
‘‘अपना जुगाड़ है मेमसाब।’’ कबीर ने ठेठ देसी अंदा़ज में कहा।
‘‘अच्छा, पिकेडिली सर्कस का क्या लोगे भैया।’’ माया ने शरारत से पूछा।
‘‘जो वाजिब लगे दे देना मेमसाब; रात का ब़खत है और ठंढ भी बहुत है।’’ कबीर ने हाथ रगड़ते हुए माया पर शरारती ऩजर डाली।
‘‘एक थप्पड़ पड़ेगा तो सारी ठंढ निकल जाएगी; चलो रिक्शा चलाओ।’’ माया ने रिक्शे पर बैठते हुए हँसकर कहा।
कबीर ने रिक्शा चलाना शुरू किया। लंदन में साइकिल रिक्शे बहुत कम चलते हैं। बस थोड़े बहुत सेंट्रल लंदन में ही चलते हैं... जो, लोग अपने शौक के लिए इस्तेमाल करते हैं। माया के लिए ये अलग किस्म का और बेहद रोमांटिक अनुभव था। कबीर, धीमी ऱफ्तार से गुनगुनाते हुए, रिक्शा खींच रहा था। बीच-बीच में वह मुड़कर माया को देखता। माया के चेहरे का एक्साइटमेंट उसे अच्छा लग रहा था।
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