RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
प्रिया और कबीर, माया को प्रिया के अपार्टमेंट में ले आए। प्रिया ने माया के आराम के सारे बंदोबस्त कर रखे थे। लिविंग रूम की सजावट भी माया की पसंद के अनुसार ही कर रखी थी। ब्राइट शैम्पेन रंग के पर्दे, और फ्लावर पॉट्स में जास्मिन, डे़जी और डहलिया के फूलों के गुलदस्ते। उस शाम, माया को ध्यान में रखते हुए प्रिया ने खाना भी हल्का, मगर पौष्टिक बनाया। रोस्टेड पम्पकिन और रेड पेपर का सूप, मैश्ड क्रीमी स्वीट पोटैटो, मिक्स्ड वेजिटेबल खिचड़ी, और खीरे का रायता। माया के बेड के पास ही टेबल लगाकर उसने खाना सर्व किया।
‘‘वाह, कद्दू से भी इतना टेस्टी कुछ बन सकता है, यह पता नहीं था।’’ कबीर ने सूप टेस्ट करते हुए कहा।
‘‘रेसिपी ले लो, जब चाहो तब बना लेना इतना टेस्टी।’’ प्रिया ने मुस्कुराकर ‘इतना टेस्टी’ पर ज़ोर देकर कहा।
कबीर को प्रिया से हुई पहली मुलाकात याद आ गई, जब उसने प्रिया के ‘प्ली़ज’ कहने के अंदा़ज की नकल की थी।
‘‘न बाबा, ये खाना बनाने का काम मुझसे नहीं होता।’’ कबीर ने अपना ध्यान उस पहली मुलाकात से हटाते हुए कहा।
‘‘बड़ी माँ की बिगड़ी औलाद।’’ माया ने शरारत से कहा।
अब माया से हुई मुलाकात की याद। कबीर को लगा, जैसे कि वह प्रिया और माया के बीच टेनिस की बॉल की तरह उछल रहा है। कभी प्रिया उसे माया की ओर उछाल रही है, तो कभी माया उसे प्रिया की ओर। कभी प्रिया की वजह से माया उसकी ज़िंदगी में आई थी, और अब माया की वजह से प्रिया लौट आई है। कबीर इस पिंग-पांग की हालत में थोड़ी बेचैनी महसूस कर रहा था। उसने झटपट खाना खत्म करते हुए प्रिया से कहा, ‘‘अच्छा प्रिया, अब चलता हूँ; तुम माया का ख़याल रखना।’’
‘‘कबीर, आज रात यहीं रुक जाओ।’’ माया ने अनुरोध किया।
फिर वही पुरानी याद। कभी यही अनुरोध माया की मौजूदगी में प्रिया ने किया था। कबीर ने बेचैनी से प्रिया की ओर देखा।
‘‘मेरी ओर क्या देख रहे हो; माया कह रही है तो रुक जाओ।’’ प्रिया ने कहा।
‘‘तुम्हारा घर है तो तुमसे तो पूछना पड़ेगा न।’’ कबीर ने अपनी बेचैनी छुपाने के लिए म़जाक के अंदा़ज में कहा।
‘‘कह तो ऐसे रहे हो, जैसे मुझसे पूछे बिना पहले कभी यहाँ नहीं रुके।’’
प्रिया का इरादा न जाने क्या था, मगर उसकी ये बात कबीर और माया दोनों को ही चुभ गई। कबीर ने माया की ओर देखा। उसे समझ नहीं आया कि प्रिया को क्या जवाब दे, मगर माया की भावुकता बह उठी।
‘‘प्रिया! कबीर और मुझे तुमसे मा़फी माँगनी चाहिए; तुमने मेरे लिए कितना कुछ किया और हमने..’’ कहते हुए माया की आँखें भर आर्इं।
‘‘अरे माया, इमोशनल मत हो; अच्छा तुम लोग बैठो, मैं कॉ़फी बनाकर लाती हूँ।’’ कहते हुए प्रिया किचन की ओर भागी।
कबीर को प्रिया का व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। आ़िखर प्रिया इतनी उदार क्यों हो रही थी? क्यों वह फिर से माया पर अहसान कर रही थी? वह भी प्रिया के पीछे किचन में गया।
‘‘प्रिया! यह क्यों कर रही हो?’’ कबीर ने उत्तेजित स्वर में पूछा।
‘‘क्या कर रही हूँ कबीर... कॉ़फी ही तो बना रही हूँ।’’ प्रिया ने कुछ इस अंदा़ज से कहा, जैसे कि उसने कबीर का आशय न समझा हो।
‘‘बनो मत प्रिया; माया को अपने घर पर रखकर आ़िखर क्या साबित करना चाहती हो तुम?’’ कबीर के स्वर में वही उत्तेजना थी।
‘‘मैं वही कर रही हूँ जो किसी दोस्त को करना चाहिए; माया को मेरी ज़रूरत है।’’
‘‘जिसने तुमसे तुम्हारा प्यार छीन लिया, उसी पर प्यार लुटा रही हो? सच-सच बताओ प्रिया, ये भगवान बनने का नाटक क्यों कर रही हो?’’ कबीर झुँझला उठा।
‘‘बहुत समझदार हो गए हो कबीर; बहुत जल्दी नाटक पहचान लेते हो।’’ प्रिया ने कबीर पर एक व्यंग्य भरी दृष्टि डाली, ‘‘अच्छा अब चलो, कॉ़फी तैयार हो गई है।’’
उस पूरी रात कबीर बेचैन रहा। प्रिया, आ़िखर वह सब क्यों कर रही थी? क्यों वह माया के बहाने उसे फिर से अपने करीब ले आई थी? माया बीमार थी, बिस्तर से बँधी थी; प्रिया आ़जाद थी, उपलब्ध थी... क्या इसी का फ़ायदा उठाकर वह उसे फिर से अपनी ओर आकर्षित करना चाहती थी? क्या माया को ये बात समझ नहीं आ रही थी; या माया का उस पर अटूट विश्वास बन गया था? क्या वह इतना कम़जोर था, कि वह माया का विश्वास तोड़ देगा? कबीर को प्रिया के शब्द याद आ गए, ‘माया को भी तुम्हें आ़जमा लेने दो।’ तो क्या यही है प्रिया का मकसद? उसे माया से वापस छीनना? कबीर ने निश्चय किया कि चाहे जो भी हो, वह प्रिया की चाल को कामयाब नहीं होने देगा।
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