RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
कबीर ने प्रिया को फ़ोन किया, ‘‘प्रिया मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।’’
‘‘शाम को घर आ जाओ कबीर।’’ प्रिया ने कहा।
‘‘नहीं, वहाँ माया होगी; मैं तुमसे अकेले में मिलना चाहता हूँ।’’
‘‘ऐसी क्या बात है कबीर, जो माया की मौजूदगी में नहीं हो सकती?’’
‘‘मिलने पर बताऊँगा प्रिया; ऐसा करो तुम लंच करके माया के अपार्टमेंट पर पहुँचो।’’
प्रिया को थोड़ी बेचैनी हुई। पता नहीं कबीर क्या कहना चाहता था। कबीर के पिछली रात के मि़जाज को देखते हुए प्रिया की बेचैनी स्वाभाविक थी। उसी बेचैन सी हालत में वह माया के अपार्टमेंट पहुँची। कबीर वहाँ पहले से ही मौजूद था।
‘‘कहो कबीर।’’ प्रिया के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं।
‘‘प्रिया, शायद तुम्हें पता न हो; मगर जिस फ़र्म में माया और मैं काम करते हैं वह डूब गई है।’’
‘क्या?’ प्रिया ने चौंकते हुए कहा।
‘‘हाँ प्रिया, हम दोनों की जॉब भी गई समझो। माया का फ़र्म में इन्वेस्ट किया पैसा भी डूब गया, और उस पर, माया पर इस अपार्टमेंट का छह लाख पौंड का क़र्ज है।’’
‘‘क्या! छह लाख पौंड?’’ प्रिया एक बार फिर चौंकी।
‘‘तुम्हें तो पता है, कि अभी इकॉनमी और प्रॉपर्टी मार्केट की क्या हालत है; माया की सारी कमाई इस अपार्टमेंट में लगी है; उसकी जॉब तो जाएगी ही, और उस पर अगर वह इस अपार्टमेंट को भी न बचा पाई, तो वह टूट जाएगी, बिखर जाएगी।’’
‘‘मैं समझती हूँ कबीर।’’ प्रिया के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंच आर्इं।
‘‘प्रिया, इस वक्त सि़र्फ तुम्हीं माया की मदद कर सकती हो। तुम मुझे माया से वापस लेना चाहती हो न? मैं तैयार हूँ प्रिया; मगर प्ली़ज, माया के सपनों को बिखरने से बचा लो।’’ कबीर ने विनती की।
‘कबीर।’ प्रिया ने चौंकते हुए कहा।
‘‘क्यों क्या हुआ प्रिया; तुम्हें सौदा पसंद नहीं?’’
‘‘कबीर प्ली़ज शटअप!’’ प्रिया चीख उठी, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं माया की मदद तुम्हें पाने के लिए कर रही हूँ? तुमने प्रेम को सौदा समझ रखा है?’’
‘‘तो किसलिए कर रही हो माया की मदद? किसलिए बन रही हो मसीहा? मुझे नीचा दिखाने के लिए?’’
‘‘कबीर शटअप! जस्ट शटअप!’’ प्रिया फिर से चीख उठी, ‘‘जानना चाहते हो, मैं क्यों माया की मदद कर रही हूँ? क्यों उदार बन रही हूँ? तो सुनो कबीर... जब तुम मुझे छोड़कर माया के पास चले गए थे, तो मेरे सारे भरोसे, सारे विश्वास टूट गए थे। मुझे लोगों पर आसानी से भरोसा करने की आदत थी। मुझे लगता था कि जो लोग मुझे अच्छे लगते हैं, वे अच्छे ही होते हैं, उनकी नीयत सा़फ होती है, उन पर मैं भरोसा कर सकती हूँ; मगर मेरा वह यकीन टूट गया। अच्छाई पर भरोसे का जो मेरा जीवन का फ़लस़फा था, वह बिखर गया; और उस बिखराव ने मुझे भी वहीं पहुँचा दिया, जिसे तुमने कहा था, ‘डार्क नाइट’। मैं डिप्रेशन में डूब गई। उस वक्त मुझे तुम्हारी बात याद आई। मैंने डिप्रेशन और डार्क नाइट पर सर्च किया, और मुझे तुम्हारे गुरु काम के बारे में पता चला।’’
‘‘इस तरह प्रिया से मेरी मुलाक़ात हुई।’’ मैंने, मुझे गौर से सुनती मीरा से कहा, ‘‘प्रिया जब मेरे पास आई, तो वह वैसे ही गहरे अवसाद में थी,जैसे कि कबीर था, जब वह मुझसे मिलने आया था।’’
‘‘कबीर पर मैंने भरोसा किया था; मगर कबीर से कहीं अधिक भरोसा मुझे माया पर था। कबीर से तो चार दिन की मुलाक़ात थी, मगर माया से तो बरसों की करीबी दोस्ती थी। कबीर से कहीं ज़्यादा मेरे भरोसे को माया ने तोड़ा है; कबीर से कहीं ज़्यादा गुस्सा और ऩफरत मेरे मन में माया के लिए है।’’ प्रिया ने अवसाद में डूबी आवा़ज में मुझसे कहा।
‘‘माया से मैं मिल चुका हूँ, वह अच्छी लड़की है।’’ मैंने प्रिया से कहा।
‘‘तो फिर उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मुझसे धोखा क्यों किया? मेरा भरोसा क्यों तोड़ा?’’ प्रिया बिफर उठी।
‘‘इंसान अच्छा हो या बुरा, कम़जोर ही होता है; कम़जोरी में ही गलतियाँ भी होती हैं और अपराध भी।’’
‘‘मैंने कौन सा अपराध किया है, जिसकी स़जा मुझे मिल रही है?’’
‘‘तुमने शायद कोई अपराध नहीं किया है, मगर अब अपने मन में क्रोध और घृणा पालकर तुम अपने प्रति अपराध कर रही हो।’’
‘‘आप कहना क्या चाहते हैं, कि मुझे बिना कोई अपराध किए ही स़जा मिल रही है? और जिसने मेरे साथ अपराध किया है, उससे मैं घृणा भी न करूँ? उस पर गुस्सा भी न करूँ? ये कैसा न्याय है?’’
‘‘प्रिया! ईश्वर की प्रकृति में स़जा या दंड जैसा कुछ भी नहीं होता। प्रकृति अवसर देती है, दंड नहीं। हम जिसे बुरा वक़्त कहते हैं, वह दरअसल अवसर होता है उन कम़जोरियों, उन बुराइयों और उन सीमाओं से बाहर निकलने का, जो उस बुरे वक़्त को पैदा करती हैं। जीवन, विकास और विस्तार चाहता है, और डार्क नाइट अवसर देती है, अपनी सीमाओं को तोड़कर विस्तार करने का। जीवन के जो संकट डार्क नाइट पैदा करते हैं, उन संकटों के समाधान भी डार्क नाइट में ही छुपे होते हैं। कबीर की तड़प ये थी, कि वह लड़कियों का प्रेम पाने में असमर्थ था। डार्क नाइट से गु़जरकर उसके व्यक्तित्व को वह विकास मिला, जिसमें उसने लड़कियों को अपनी ओर आकर्षित करना और उनका प्रेम पाना सीखा; मगर तुम इस अवसर में अपनी चेतना के विस्तार को दिव्यता तक ले जा सकती हो। अपनी कम़जोरियों और सीमाओं से मुक्ति ही असली मुक्ति है; स्वयं को घृणा और क्रोध की बुराइयों से मुक्त करो प्रिया। घृणा और क्रोध से तुम सि़र्फ ख़ुद को ही दंड दोगी, माया को नहीं। अपने हृदय को विशाल बनाओ... तुम्हारे डिप्रेशन का इला़ज भी उसी में है, और तुम्हारी डार्क नाइट का उद्देश्य भी वही है।’’
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