RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
चैप्टर 24
‘‘कबीर, मैं तुम्हें ख़ुद से बाँधना नहीं चाहती; तुम्हारे गुरु से मैंने मुक्त होना सीखा है। मैं ख़ुद को अपनी घृणा, और माया को उसके अपराध बोध से मुक्त कर रही हूँ।’’ प्रिया ने कबीर को, मुझसे हुई बाते बताते हुए कहा।
‘‘आई एम सॉरी प्रिया, मैं तुम्हें समझ नहीं पाया।’’ कबीर को ग्लानि महसूस हो रही थी।
‘‘समझ तो तुम माया को भी नहीं पाए कबीर; औरत को सि़र्फ अपनी ओर आकर्षित कर लेना ही बहुत नहीं होता; उस आकर्षण को बनाए रखना उससे भी बड़ी चुनौती होता है। औरत अपने प्रेमी को हमेशा अपने साथ खड़े देखना चाहती है; एक कवच बनकर, एक साया बनकर। उसके प्रेम की छाँव में वह कठिन से कठिन समय भी बिताने को तैयार रहती है। माया को कभी यह मत बताना कि उसकी भलाई के लिए तुम उसके प्रेम का सौदा करने चले थे; वह तुमसे ऩफरत करने लगेगी। कबीर, अच्छे और बुरे वक्त तो जीवन में आते रहते हैं, मगर औरत और आदमी के सम्बन्ध का असली अर्थ होता है कि वे इन अच्छे और बुरे वक्त में एक दूसरे का संबल और प्रेरणा बनें। मुझसे जितना हो सकेगा, मैं माया की मदद करूँगी; मगर उसे असली ज़रूरत तुम्हारी है कबीर; जाओ और जाकर माया को सहारा दो।’’
कबीर, बेसब्री से माया से मिलने के लिए दौड़ा। प्रिया की डार्क नाइट से उसने प्रेम का असली अर्थ सीखा था। उसने प्रेम में समर्पण का अर्थ, अपने प्रेमी की दासता करना समझा था, मगर प्रेम में समर्पण का अर्थ दासता नहीं होता... प्रेम में समर्पण का अर्थ, अपना सम्मान खोना नहीं, बल्कि अपने प्रेमी का संबल और सम्मान बनना होता है... प्रेम में समर्पण, बंधन नहीं, बल्कि मुक्ति होता है; मुक्ति, जो दिव्यता की ओर ले जाती है।
‘‘कबीर, अच्छा हुआ तुम आ गए, मैं तुम्हें फ़ोन करने ही वाली थी।’’ कबीर को देखते ही माया ने कहा। माया बेहद परेशान दिख रही थी।
‘‘माया, घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा।’’ कबीर ने माया के पास बैठते हुए उसके गले में हाथ डाला, और उसके बाएँ गाल को चूमा।
‘‘कैसे ठीक हो जाएगा कबीर? सब कुछ तो डूब गया; और फिर मैं अपना लोन कैसे चुकाऊँगी?’’ माया की आँखों से निकलकर आँसू, उसके गालों पर लुढ़कने लगे थे।
‘‘माया, सब्र करो, हम कोई रास्ता निकाल लेंगे।’’ कबीर ने एक बार फिर माया का हौसला सँभालना चाहा।
अचानक ही माया के मोबाइल फ़ोन पर एक टेक्स्ट आया। माया ने टेक्स्ट पढ़ते हुए चौंककर कहा,‘‘कबीर, मेरे बैंक से मैसेज आया है कि किसी ने मेरे अकाउंट में छह लाख पौंड ट्रान्सफर किए हैं; कौन हो सकता है?’’
कबीर के होंठों पर मुस्कान बिखर गई। वह प्रिया ही होगी।
‘‘और कौन, तुम्हारी सहेली प्रिया।’’ कबीर ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘कबीर, तुमने कहा प्रिया से मुझे पैसे देने के लिए? मैं प्रिया से इतने पैसे कैसे ले सकती हूँ?’’ माया के चेहरे पर हैरत, ख़ुशी और नारा़जगी के मिले-जुले भाव थे।
‘‘उधार समझकर ले लो माया, चुका देना।’’
‘‘कबीर, उधार तो चुकाया जा सकता है, मगर अहसान... प्रिया के इतने अहसान कैसे चुकाऊँगी?’’
‘‘इमोशनल मत हो माया; तुम्हें इस वक्त इन पैसों की ज़रूरत है।’’
‘‘प्रिया से मैंने क्या-क्या नहीं लिया कबीर; उसका प्रेम छीन लिया, उसका विश्वास छीन लिया; और कितना कुछ लूँगी।’’
‘‘तो फिर क्या करोगी माया?’’ कबीर बेचैन हो उठा।
कुछ देर माया चुपचाप सोचती रही, फिर उसने प्रिया को फ़ोन लगाया।
‘‘प्रिया, कैन यू प्ली़ज कम हियर।’’
‘‘माया, मैं अभी बि़जी हूँ, शाम को तो मिलेंगे न।’’ प्रिया ने कहा।
‘‘नो प्रिया, आई वांट यू हियर राइट नाउ, प्ली़ज कम ओवर।’’
प्रिया को पहुँचने में लगभग बीस मिनट लग गए। इस बीच माया चुपचाप उसका इंत़जार करती रही। कबीर ने उससे बात करनी चाही, मगर माया खामोश रही।
‘‘कहो माया?’’ प्रिया ने पहुँचते ही कहा।
‘‘प्रिया, तुम्हें पता है कि कबीर अपनी ज़िन्दगी में क्या करना चाहता था?’'
‘‘माया तुमने इस वक्त मुझे यह पूछने के लिए बुलाया है?’’ प्रिया ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘हाँ प्रिया, मुझे लगा कि यही सही वक्त है इस बात को करने का।’’
‘‘हूँ... तो कहो क्या करना चाहता था कबीर?’' प्रिया ने शरारत से मुस्कुराकर कबीर की ओर देखा।
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