RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
मैंने देखा सोमा हँसते हुए बाथरूम से निकल रही है. वह मेरी टी-शर्ट पहनी थी लेकिन कमर के नीचे से नंगी थी. मैंने पूछा- “क्यों हंस रही हो?”
उसने शायद मेरी और भाभी की बात सुन ली थी. बोली – “बाबु, वह औरत जो आई थी ना, वह तुमको चाहती है.”
मैंने बिरोध करते हुए कहा – “क्या बोल रही हो? वह तो मेरे साथ मजाक कर रही थी. मैं उससे कभी मिला ही नहीं.”
सोमा पास आकर मेरा हाथ पकड़ कर बोली – “मैं जानती हूँ बाबु. वह मन में तुमको चाहती है. अगर कहूँ तो तुम्हारा लोहा चाहती है.”
मैंने हैरानी में कहा – “लोहा???”
वह मेरे लंड को जोर से दबाकर मसलते हुए बोली – “हाँ तुम्हारा लोहा.”
“शिशिशिशी......” मेरे मुँह से जोर की सीत्कार निकल गयी.
“चलो खाना खाते है”, मेरे हाथ से डब्बा लेकर वह खाने के टेबल की ओर बढ़ी.
मेरे मन में ख्यालो और सवालो से बदल घुम रहे थे. क्या सही में पूर्णिमा भाभी मुझे चाहती है. या मेरे लोहे यानी मुझसे सेक्स करना चाहती है? क्या उसका पति उसको संतुष्ट नहीं करता है? या उसको पराये मर्द की आदत है? खैर मुझे उससे क्या. जो होगा देखा जायेगा.
टेबल पर सोमा खाना निकाल चुकी थी. रोटी, सलाद और चिकेन था. हमदोनो दिनभर के भूखे, खाने पर टूट पड़े. मैंने सोमा से पूछा – “अच्छा तुम्हे कैसे पता चला की पूर्णिमा भाभी मेरा लोहा चाहती है?”
वह हँसते हुए बोली – “बाबु मैं एक औरत हूँ. औरत को जानती हूँ. मैंने देखा बाथरूम से, जब वह तुमको गाल पर चिकोटी काटी तो उसकी छाती उभर गयी. उसकी मम्मे टाइट हो गई. उसकी आखें तुम्हारी पायजामे पर थी. तुम बस उसको भाव देते रहना, देखना तुमसे जरूर अपनी मुनिया बजाएगी.” और जोर से हंस दी.
उसकी बात पर मैं भी हंसा. अगले 15 मिनट में हमने खाना ख़त्म कर प्लेटे सिंक में डालकर हाथ धोए और बेडरूम पहुंचे. आज गर्मी कुछ ज्यादा थी. अन्दर आराम नहीं लग रहा था इसलिए मैंने सोमा को छत में जाने का प्रस्ताव दिया. सोमा आनाकानी करने लगी, उसे डर था की कोई हमे देख लेगा. मैंने कहा की हम दूसरी मंजिल के छत में जायेंगे जिसकी दीवारे ऊँची है और यहाँ किसी का मकान उतना ऊँचा नहीं है. कोई हमें चाहकर भी नहीं देख पायेगा. आखिर में वह राजी हुई. मैं एक गद्दा लेकर छत में चढ़ गया. साथ में ठंडी पानी की बोतल, एक तौलिया और कंडोम का पैकेट. हमारी आखिरी पारी छत में खुले असमान में खेली जाने वाली थी.
रात के लगभग 10 बज रहे थे जब हम छत पर पहुंचे. हल्की चांदनी छाई थी और मद्धम पुरवा भी चल रही थी. हमने छत के बीचो-बीच गद्दा बिछाया और मैं बीच में लेट गया. लेटते हुए मैंने अपने कपड़े निकले और सोमा की और ललचाई नजरो से देखने लगा. वह सिर्फ टी-शर्ट पहने हुए थी. उसने धीरे-धीरे दोनों हाथ ऊपर करते हुए शर्ट निकली जैसे स्ट्रिप कर रही हो. अब वह बिल्कुल नंगी कमर को थोड़ा लचककर मुँह में एक ऊँगली डाले खड़ी थी और मुस्कुरा रही थी. जैसे वह मेरे पहल का इंतज़ार कर रही हो.
हल्की चांदनी में उसका सांवला बदन खजुराहो की मूरत लग रही थी. मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया. वह उसी कामुक अंदाज़ में कमर लचकाकर अपनी चूतड़ मटकाते हुए मेरे पास आई और पैरों को मोड़ते हुए मेरी कमर के बगल में बैठ गयी. मेरे एक हाथ को पकड़ कर एक ऊँगली अपने मुँह में डाल दी और चूसने लगी. उसकी आँखें वासना से लाल थी. ऊँगली को लोलीपोप की भांति जोर-जोर से चूसने लगी और मेरी धड़कन बढ़ने लगी. उसने मेरे दुसरे हाथ को अपनी दायीं चुंची पर रख दी और मैं अच्छे बच्चे की तरह उसकी चूची को दबाने लगा. उसकी चूची कठोर हो गयी थी. मेरे माथे पर पसीने की बुँदे आने लगी और मेरा लंड पुरे शबाब में आ गया.
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