RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
खैर अब घर में मेरा परिवार आ चूका है और मैं शाम का इंतज़ार कर रहा हूँ. मेरा दिल उदास था क्योंकि मैं दो दिन के बाद वापस अपने काम पर जा रहा था. लेकिन इस बात की ख़ुशी थी की मैंने सोमा को अच्छे जगह पर काम दिलवा दिया. शाम को 5 बजे मैं अपने नेहा के पार्लर पर गया. मेरा दोस्त विवेक भी वहां पर था. मुझे पार्लर में गेट के सामने देखकर ना जाने कहाँ से सोमलता निकल मेरे सामने आई.
मैंने हैरत से पूछा – “तुम कहाँ थी? कब आई हो?”
वह बोली की आधे घन्टे से .
मैं उसको लेकर अन्दर गया. विवेक ने सवालिया नजरो से देखा हमे. मैंने कहा – “यार, यही है जिसके बारे में मैंने बताया था. नेहा कहाँ है?”
विवेक को अचानक कुछ याद आया और नेहा को आवाज लगाया. नेहा बाहर आई. काफी दिनों के बाद मैं उसको देख रहा था, काफी खुबसूरत लग रही थी. उसने मुझसे हाथ मिलाया और शिकायत करते बोली – “क्या बिन्नी, इतने दिनों के बाद मिल रहे हो. घर आते फिर भी नहीं मिलते. क्या पुरानी दोस्ती का कोई मतलब नहीं होता है?”
मैं झेंपते हुए बोला – “नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम सब अपने लाइफ में बिजी हो. इसलिए नहीं हो पाता.”
नेहा भौंहे नचाते हुए बोली – “अच्छा बच्चू, हम बिजी हो गए है. और तुम. खैर छोड़ो, आज रात को हमारे घर में खाना पड़ेगा. अच्छा मैं इसको काम समझा देती हूँ.” यह कहकर वह सोमलता को अन्दर ले गई.
मैं और विवेक गप्पे मारने लगे. लगभग आधे घन्टे के बाद दोनों बाहर आई. नेहा बोली – “बिन्नी, मैंने इनको काम समझा दिया है. कल से काम पर आ सकती है. कोई दिक्कत नहीं है.”
मैं उठते हुए बोला – “थैंक्स यार! अभी चलता हूँ. रात को आता हूँ.” मैं पार्लर से निकल गया,
मेरे पीछे सोमा भी बाहर आई. बाहर आकर वह मेरे और देखकर मुस्कुराते हुए बोली – “बाबु तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया. हम फिर कब मिलेंगे?”
मैं थोड़ा सोचते हुए बोला – “देखते है, अभी मेरे हाथ में और 2 दिन है. कोई ना कोई जुगाड़ लगता हूँ.” मैं उसको चूमना चाहता था लेकिन बीच बाज़ार में यह करना मुनासिब नहीं था. इसलिए मैं उसको ऑटो में बिठाकर घर की और निकल गया.
घर जाने के रस्ते में पूर्णिमा भाभी दरवाजे पर दिखी. मुझे देखकर मुस्कुराई लेकिन चेहरे पर उदासी थी. मैंने आँखों में ही हेल्लो बोलकर घर घुंस गया. आज रात मुझे बिना चुदाई के रहना पड़ेगा, यह सोचकर मेरा दिमाग फटा जा रहा था. वह क्या है की पिछले कुछ दिनों के दिन-रात सेक्स का नशा लग गया था. इस तरह अचानक ब्रेक लगने पर मेरा हाल उस पियक्कड़ की तरह हो गया, जो जनता है की आज उसको पीने को पानी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा फिर भी वह दारू की उम्मीद करता है.
देर रात में विवेक और नेहा के घर से लौटा. रात के लगभग 10:30 हो रहे थे. मैं ऊपर के कमरे में बैठा इन्टरनेट सर्फ कर रहा था. मेरा टेबल बिल्कुल खिड़की पर था, उस खिड़की के सामने रीता काकी का घर है. मैं ध्यान मग्न होकर लैपटॉप पर नज़रे गढ़ाए था. अचानक मेरा ध्यान सामने वाले छत पर गया. ऐसा लगा की कोई छत के किनारे खिड़की को देर से देख रहा है. बाहर चांदनी थी लेकिन इतना साफ़ नज़र नहीं आ रहा था. जब मैं उठकर खिड़की के और पास गया तो देखा की वह शख्स धीरे-धीरे चलते नीचे उतर गया. पायल की झंकार से मैं अंदाज़ा लगाया की यह पूर्णिमा भाभी ही थी. मेरे दिमाग में सवालो के बदल उमड़ने लगे. क्या सोमा की बात सच थी? क्या सच में भाभी को मुझमे दिलचस्पी है? क्या वह मेरा लोहा (लंड) चाहती है? क्या भैया से उसकी बनती नहीं है? बगैरह बगैरह... फिर मैंने सोचा कि ऐसा भी तो हो सकता है की वह ऐसे ही छत पर थी और मुझे देखना सिर्फ एक इत्तेफ़ाक था. खैर मेरा दिल को सेक्स की भूख लगी थी और मैं इसके लिए कुछ भी करना चाहता था लेकिन क्या करूँ? सोमलता को घर में नहीं ला सकता और कहीं बाहर भी नहीं मिल सकता. जिंदगी में आज पहली बार मुझे इतना मजबूर लग रहा था.
खैर जैसे-तैसे रात बीती. सुबह ही मैं बाइक लेकर सोमा के गाँव की तरफ निकल गया. गाँव घुसने के पहले एक छोटा-सा बगीचा आता है. उसके बाहर ही सोमा से मुलाकात हो गयी. शायद वह शहर आ रही थी पार्लर. मुझे देखकर वह घबरा गयी. चारो तरफ देखी कोई भी नहीं था वहां हमारे सिवा. घबराते हुए पूछी – “बाबु, तुम यहाँ क्यों आये? कोई देख ले तो मेरा जीना मुश्किल हो जायेगा. जल्दी से निकल जाओ.”
मैंने उसके पास आकर बाइक से उतरते हुए कहाँ – “कुछ नहीं होगा. तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?”
वह धीरे से बोली – “अभी बस काम सीख ही रही हूँ. अब यहाँ से जाओ.” मुझे लगभग धक्के मरते हुए बोली.
मैंने उसका हाथ पकड़कर विनती की – “प्लीज रानी, मैं कल रात से तड़प रहा हूँ. कुछ करो ना.”
वह गुस्से में बोली – “क्या करूँ यहाँ? तुम मुझे यहाँ चोदना चाहते हो? दिमाग ख़राब हो गया है क्या बाबु?”
मैं धीरे से कान में कहा – “सुनो यहाँ बगल में एक पुराना मकान है जो खंडहर हो चूका है. वहां कोई नहीं आता है. एक बार आओ ना.”
वह फिर से नाराज हो बोली – “देखो बाबु, मुझे देर हो रही है. पार्लर जाने में देर हो जाएगी.”
मैंने फिर से विनती की – “सिर्फ 10 मिनट, प्लीज!”
वह मुस्कुराते हुए बोली – “ठीक है.”
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