RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
ताजे वीर्य की महक, हल्की गर्मी और इस खंडहर की सोंधी-सोंधी गंध एक अजीब सी रोमांचक माहौल बना रखा था. साधारण तौर पर इस वक़्त मुझे डर लगना चाहिए, लेकिन मुझे मजा आ रहा था. जिंदगी में उन्ही चीजो को करने में ज्यादा मज़ा आता है जो या तो निषिद्ध है या जो आसानी से कोई कर नहीं सकता. बाहर किसी जानवर के भूकने की आवाज आ रही थी, शायद कुत्ते या सियार की.
मैंने आँख खोली, सोमा को देखा. उसका बदन सांसो के साथ ऊपर-निचे हो रहा था, आंख बंद और चेहरे पर शांति थी जैसे की कोई बड़ी मुसीबत का हल हो गया हो. मेरा गला सुख चूका था. मैंने उठकर बैग से पानी की बोतल निकली एक ही घूंट में आधा पानी पि गया. सोमा के पास जाकर धीमे से पूछा – “रानी, प्यास लगी है?” वह बिना कुछ बोले मुँह खोल दी. मै बोतल से पानी पिलाया. वह पानी पीकर भी आँख बंद कर लेटी रही.
मैंने उसको परेशान करना सही नहीं समझा और बाहर के कमरे की खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगा. बाहर घुप्प अँधेरा था, दूर से शहर की रौशनी दिख रही थी.
तभी अन्दर से सोमलता की धीमी पुकार सुनाई दी – “ओ बाबु, कहाँ गए अपनी रानी को छोड़कर.... पास आओ ना....”
उसकी पुकार मदहोश कर देने वाली थी. शायद झड़ने की वजह से नशे में थी. अन्दर कमरे में गया तो वहां का नज़ारा देख मेरा सर चकराने लगा. मेरी प्रेमिका चूत-चुसाई की वजह से मदहोश नहीं थी. वह अपने सारे कपड़े उतार दिवार से पीठ टिकाकर बैठी थी और उसके हाथ में एक बोतल थी. जी हाँ, वह साली दारू पी रही थी, वह भी देसी. शायद मेरे लंड को यह नज़ारा अच्छा लग रहा था तभी तो वह अपना फन उठा रहा था.
मैं जल्दी से उसके पास गया हाथ से बोतल छिना तो पाया की वह एक तिहाई दारू गटक चुकी थी. सोमा मेरे हाथ से बोतल छीन ली.
मैंने हैरानी से पूछा – “तुम दारू पीती हो?”
नशीली आँखों से मेरी ओर ताकते हुए बोली – “हाँ पीती हूँ कभी कभी. आज मेरी ज़िन्दगी का ख़ुशी का दिन है. तुम क्यों हैरान होते हो. तुम भी तो पीते हो.” फिर एक घूंट लगाकर मुझे अपने पास चिपका ली. बोतल को बगल में रखकर मेरी गर्दन को कसकर पकड़ ली और मेरी होंठो पर होंठ लगा दी. उसकी मुँह से दारू का तीखा गंध और कसैला स्वाद से दम उखड़ने लगा.
मैं हट गया. सोमा को मेरा इस तरह से हटना बुरा लगा. वह फिर से मुझे खींचकर होंठो से चिपका ली. इस बार उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी की मैं बेचारा तड़प कर रह गया. वह कोई आम घरेलु औरत तो थी नहीं, मजदूरी करनेवाली औरत की पकड़ मजबूत तो होगी ही. उसने मेरे होंठो को इस तरह से चूस रही थी की मेरा साँस लेना दूभर हो रहा था. लगभग 7-8 मिनट के बाद मैं जल बिना मछली की तरह छटपटाने लगा.
किसी तरह उसकी पकड़ से छूटकर मैं भागा पानी के लिए. पानी पीने के बाद मेरे जान में जान आई. मैं जोर-जोर से साँस ले रहा था. मेरी यह हालत देखकर वह बच्चे की तरह जोर-जोर से हंसने लगी. मेरी तो गांड फट रही थी कोई सुन ले तो आफत आ जाये. मैं जल्दी से उसकी होंठो पर ऊँगली रखकर कहा – “जोर से मत हंसो, कोई सुन लिया तो आफत आ जाएगी.”
उसका हँसना बंद हुआ लेकिन मुझे देख मुस्कुराते हुए बोली – “क्या बाबु, इतने में जान निकल गयी तेरी. तू सचमुच बहुत भोला है. आ मेरे पास आ मेरे बालम!” दोनों बाहें फैलाये मुझे अपने पास बुला रही थी.
गाँव की औरतो के नखरे, प्यार सब कुछ अनोखा होता है. खासकर नीची जाति वालों की. मैं गौर किया की सोमलता मुझे ‘तुम’ की जगह ‘तू’ से बुला रही है. शायद यह शराब का आसर था जो उसको कुछ ज्यादा खोल दिया था. मुझे अपने सीने से चिपकाकर मेरे पीठ को सहलाते हुए पूछी – “अच्छा बाबु, शादी होने के बाद भी क्या तू मुझे प्यार करेगा ? मेरी चूत को चुसेगा? मुझसे मिलेगा?”
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