RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
मैं तो समझ गई की मेरी खैर नहीं. मैं डरते हुए कहा – “नहीं देवरजी, मेरे कपड़े ख़राब हो जायेंगे. अभी नहीं.”
लेकिन वह मुस्कुराते हुए हाथ में गीला रंग लेकर मेरे पास आया और बोला – “क्या भाभी, मेरी पहली होली है आपके साथ और आप नहीं बोल रही हो. रंग तो आपको लगाना ही पड़ेगा. आज तो मैं अपनी सुन्दर भाभी को जमकर रंग लगाऊंगा.”
वह जैसे ही मेरी तरह बढ़ा, मैं दौड़ कर अन्दर भागी. वह भी मेरे पीछे-पीछे दौड़ा. आखिर अन्दर के छोटे कमरे मैं जाकर मैं फंस गयी. मैं शरमाते हुए दिवार की और मुँह कर खड़ी हो गयी. जानती थी कि अब मैं बच नहीं सकती. वह धीरे-धीरे मेरे पीछे आया और मेरे कान पे फुसफुसाते हुए बोला – “भाभी, बुरा मत मानो. होली है!”
अब मेरी हालत हलाल होने वाले बकरे के जैसे हो गयी. गोपी बिल्कुल मेरे पीछे था. मैं उसकी गर्म सांसो को महसूस कर सकती थी. गोपी ने दोनों हथेलियों से मेरे गालो को पकड़ा और जोर से रंग मलने लगा. मैं बचने के भागने लगी तो उसने एक हाथ से मुझे कमर से कसकर पकड़ लिया. मैं उसकी पकड़ में छटपटाने लगी तो वह और कसके पकड़ लिया. आज महीनो के बाद मुझे एक मर्द के बदन का स्पर्श मिला रहा था. अच्छा लग रहा था लेकिन साथ में डर भी रही थी.
अब गोपी की हथेली गाल से मेरी गर्दन को मल रही थी. मैं अन्दर ही अन्दर सिसकारी ले रही थी. पता नहीं आगे क्या करेगा यह सोचकर मेरी धड़कन बढ़ रही थी. मैं आँख बंदकर उसकी मर्दानी पकड़ का मज़ा ले रही थी. धीरे-धीरे उसका हाथ गर्दन से मेरी छाती पर आ गया. मेरा दिल धक् से रह गया. घर में कभी मैं ब्लाउज के अन्दर ब्रा नहीं पहनती थी. गाँव में ब्रा तो क्या कच्छी तक नहीं पहनती है औरतें. उसके रंग लगे हाथ मेरी मम्मों के उपरी हिस्सों को सहला रहे थे.
मेरे लिए सिसकारी को अब दबा रखना मुश्किल था. “उम्म्मम्म....... सिस्स्स्स......... उम्म्मम्म..........” मैं आंख बंद कर हल्की सिसकारी ले रही थी. गोपी की हिम्मत बढ़ गयी थी. अब उसका हाथ ब्लाउज के और अन्दर जाकर मेरे मम्मो को जोर से दबा रहे थे. मेरी प्यासी चूत में खुजली होने लगी. ऐसा लगता था की मेरे पैर जमीन से उखड जायेंगे और मैं गिर जाउंगी.
तभी घर के बाहर किसी की आवाज आई. सायद मेरी सास और ननद नहा कर वापस आ गयी थी. मैं झटके देकर अपने आप को गोपी से अलग किया. मारे शर्म के मैं उससे नज़र भी नहीं मिला पा रही थी. नज़र उठाकर देखी तो वह मुस्कुरा रहा था. धीरे से पूछा – “भाभी, रंग गहरा है. इतनी जल्दी नहीं जायेगा.”
मैं दौड़कर कमरे से बाहर निकल गयी. बाहर गयी तो मेरी सास और ननद मुझे सवालिया नजरो से घुर रही थी. मैंने झेंपते हुए कहा – “माँ जी, देखो ना पड़ोस की कमला रंग से मेरे कपड़े ख़राब कर गयी.”
सास हँसते हुए बोली – “अरे बहु, होली है. यहाँ तो ऐसे ही होली खेलते है. गोपी कहाँ है?”
मैंने कहा – “पता नहीं. घर नहीं आया. शायद बाहर खेल रहा है होली.” दिल में डर था कहीं सास देख न ले. लेकिन सास जब अन्दर गयी तो पता नहीं किस रास्ते से गोपी घर से बाहर निकल चूका था.
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