RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
उस दिन मैं पता नहीं किस नशे में दिनभर मदहोश रही. दोपहर के बाद गुलाल-अबीर और खाने-पीने का दौर शुरू हुआ. हम औरतें मिलकर गुलाल खेल रही थी और मर्द भंग आपस में भंग बाँट रहे थे.
शाम को गाँव के सारे औरतें और मर्द मिलकर अबीर-गुलाल खेल रहे थे. मैं भी गाँव की भाभियों और ननदों के साथ थी. सच में त्योहारों में कोई चाहे कितना भी अकेला क्यों ना हो, कुछ देर के लिए सब कुछ भूल जाता है. मैं भी सब के साथ हँस-बोल रही थी. कुछ औरतें तो गन्दी मजाक कर रही थी. देर रात तक महफ़िल जमी रही फिर सब अपने अपने घर चले गए खाने. रात ग्यारह बजे खाना-पीना ख़तम हुआ. पोछना-धोना करने के बाद मैं जैसे ही अपने कमरे में सोने गयी,
मुझे लगा की वहां पहले से कोई बिस्तर पर बैठा है. मैं डरते-डरते अन्दर गयी तो मुझे शराब की तेज़ बू आई. थोड़ी पास जाने पर उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया. मेरे हलक से चीख निकलते निकलते रह गयी. अन्दर गोपाल था जो मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा – “मेरी प्यारी भाभी, बहुत तरसा हूँ आज तेरे लिए.” अपना मुँह मेरे पास लाया,
मैंने शराब के महक के चलते मुँह हटा लिया और धीरे से बोली – “शराब पीकर आये हो देवरजी?”
वह मुझे बाँहों में कसकर जकड़ते हुए बोला – “अरे भाभी होली का अवसर है, दोस्तों-भाई ने पिला दिया. तो क्या मना करता. चलो एक चुम्मा दो.” फिर से वह अपना मुँह लाया.
मैं डरते हुए बोली – “कोई आ जाएगा देवरजी. देख लिया तो गजब हो जायेगा.”
गोपाल मेरी पीठ को सहलाते हुए बोला – “फ़िक्र मत करो भाभी. आज सब थककर सो रहे है. कोई नहीं आयेगा. रुको मैं दरवाजा लगा कर आता हूँ.” गोपाल दरवाजा लगाने गया.
हालाँकि कमरे में ज्यादा उजाला नहीं था लेकिन हमे साफ़ नज़र आ रहा था. वह मुस्कुराते हुए वापस आ रहा था और मेरी धड़कन बढ़ रही थी. मैं बिस्तर में एकदम सिमट के बैठी थी. वह धीरे से मेरे पास बैठा और दोनों हाथो से मेरी गर्दन को पकड़ मेरे होंठो पर होंठ रख दिया. मेरा दिल धक् से रह गया. कुछ देर तक वह अकेला ही मेरी होंठो का रस चूसता रहा, फिर मेरा बदन भी गरमा गया. मैंने भी होंठ खोल दिए और फिर तो जबरदस्त चुम्मा शुरू हो गया दोनों तरफ से. हम दोनों एक दुसरे के पीठ को नापने में लगे थे.
गोपाल का हाथ धीरे धीरे मेरे मम्मो पर आ गया. मेरे मम्मे उस वक़्त काफी बड़े और कसे हुए थे. मैं कभी भी घर में ब्रा नहीं पहनती थी. मारी चुदास के मेरे मम्मो की बोटी कड़े हो गए थे. मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी थी. मै तो चाहती थी की जल्दी से जल्दी गोपाल अपना लंड मेरी चूत में डाल दे, लेकिन शर्म में कारण कुछ भी नहीं बोला पा रही थी.
उधर गोपाल मेरी मम्मो से खेल रहा था. धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ उसके लुंगी के ऊपर गया और उसका डंडा महसूस हुआ. अचानक गोपाल रुक गया और बोला – “भाभी सब्र नहीं हो रहा है क्या?”
मैं बोल पड़ी – “देवरजी, अब जल्दी से डाल दो. देर मत करो.”
“ठीक है भाभी!” बोलकर उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी साड़ी अलग की लेकिन मेरी ब्लाउज की नहीं निकाला. सिर्फ मेरी पेटीकोट को उतारा. मैं ब्रा नहीं पहनती थी लेकिन मासिक के कारण पैंटी पहनती थी. पैंटी तो पहले ही भींग चुकी थी. गोपाल मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया.
|