RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
लगभग साल भर के उपवास से मेरी चूत पर जंग लग गया था. इसलिए जैसे ही लंड अन्दर गया, ऐसे लगा की किसी ने गर्म सरिया मेरी चूत में डाल दिया. हाय! वह रात किसी सुहागरात से कम नहीं थी. मैं तो जैसे कुंवारी से औरत बन गयी. 4-5 धक्के लगाने के बाद गोपाल रुक गया और मेरी मम्मो से खेलने लगा. फिर धीरे से कान में कहा – “सोमा भाभी, अच्छा लग रहा है?”
उस वक़्त मैं सारे लाज-शर्म भूल गयी और जोश में बोली – “जोर से अपना लंड पेल तब तो अच्छा लगेगा. देवरजी आज मेरी चूत की प्यास बुझा दो. मुझे अपनी छिनाल बना लो.”
मेरी बात ने उसको और गरम कर दिया और मेरी कमर पकड़ कर जोर-जोर से झटके मारने लगा. उसके झटको में इतना जोर था की पर खाट कचर-पचार कर रहा था जैसे की उखड ही जायेगा. उसके टट्टे मेरी चूतड़ से टकरा रहे थे. मेरी प्यासी चूत ज्यादा देर तक झेल नहीं पाई और जोर से फव्वारा मरते हुए खलास हो गयी. लेकिन गोपाल रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मैं तो खलास होने के बाद शांत पड़ी रही लेकिन गोपाल लगा रहा. गीली चूत में उसका लंड मक्खन में छुरी की चल रहा था. 20-22 धक्को के बाद वह भी झड गया और मेरे ऊपर निढाल हो गिरा. हम वैसे ही लेते रहे. मैं तो करवट बदलने के लायक भी नहीं थी.
आधे घन्टे के बाद गोपाल उठा, अपने कपड़े पहन बाहर जाने लगा. जाते वक़्त मुझे बोला की दरवाजा अन्दर से लगा लो. लेकिन मैं नशे में बेहोश थी. सुबह करीब 3 बजे मेरी नींद खुली और खुद को नंगी बिस्तर पर पाई तो मेरा माथा ठनका. अच्छा हुआ की कोई जागा नहीं न ही कोई मेरे कमरे में आया. मेरा बदन थक के चूर हो गया था. किसी तरह कपड़े पहन मैं फिर से लेट गयी. अगले 3 दिनों तक गोपाल हमारे घर में रुका और हमने छः बार चुदाई की. एक बार तो गन्ने के खेत में भी उससे चुदी.
सोमलता की कहानी ख़त्म हुई.
रात भी लगभग गुजरने वाली थी. शायद भोर के 4 बज रहे थे. बाहर के पेड़ों से पक्षिओं के चहचहाने की आवाज आ रही थी. मैं दिवार पे टिककर लेटा हुआ था और सोमा मेरे बदन पर निढाल पड़ी थी. भोर की हल्की ठंडी से दो नंगे बदन थोड़ा अकड़-सा गया था. अब हमारे पास समय बिल्कुल नहीं था. गर्मी में सुबह बहुत जल्दी हो जाता है और यह जगह भी बिल्कुल सुरक्षित नहीं था.
मै सोमा को पुकारा – “सोमा..... सोमा रानी... उठो हमें निकलना पड़ेगा”.
लेकिन वह तो बेसुध सोई थी. सारी रात जागने के बाद शायद नींद आ गयी थी. मुझे भी आज शाम की गाड़ी से निकलना है. मैं सोच रहा था की यह जो सम्भोग की आग मुझमे लग गयी है, इससे कैसे बचूँगा. क्यों ना निकलने से पहले एक बार चुदाई कर ही लिया जाए? लेकिन सोमा तो थक के सो रही थी. क्या करू? अँधेरा छटने लगा था और थोड़ा उजाला खिडकियों के सहारे हमारे कमरे में आ रहा था. सोमा पेट के बल मेरे बदन से चिपक के लेटी थी. उसका बदन में चमक थी बिल्कुल चिकनाई वाली चमक. अचानक मुझे लिंग पर कुछ फिसलता हुआ महसूस हुआ. सुबह में तो वैसे ही लिंग कड़क और खड़ा रहता है.
मैंने देखा सोमा एक हाथ से मेरे लंड को धीरे-धीरे सहला रही थी. मेरा लंड और कड़क हो गया और उपरी चमड़ी को फाड़ने को बेताब हो रहा था. मैं सोमा के चेहरे को देखा – “वह अब भी बिल्कुल बेसुध सोई थी. उसके चेहरे पर गिरी जुल्फे उसके चेहरे को और भी खुबसूरत बना रही थी. चेहरे पर इतनी मासूमियत के साथ वह मेरा लंड सहला रही थी, यह देख मेरा लंड और बेताब हो गया.”
अब मेरे लिए इंतज़ार करना मुस्किल हो गया. उसकी चिकनी पीठ को सहलाते हुए धीरे से कान में पुकारा – “सोमा रानी..... चलो जाना पड़ेगा अब....”
वह धीरे से आँख खोल मेरी ओर देख बोली – “हम्म्म्म... क्या हुआ बाबु?”
“चलो... कोई आ जायेगा. निकलते है.”
वह उसी इत्मिनान से जवाब दी – “इतनी जल्दी? आज तो तुम निकल रहे हो ना?”
“हाँ......” मेरी आवाज में उदासी थी.
“तो बाबु, जाने से पहले मेरी ऎसी चुदाई करो की तुम्हारे आने तक मेरी चूत शान्त रहे और तुम्हारे लोहे को याद करती रहे. सिर्फ चुदाई. कोई चुम्मा-चाटी नहीं कोई दाबा-दबाई नहीं. सीधे मुझे अपने नीचे पटको और दाल दो अपना फौलादी लोहा मेरी चूत में.”
यह सब बात मेरे तने हुए लंड को उत्तेजित करने के लिए. वैसे भी कहा जाता है की सुबह की चुदाई रात की चुदाई से ज्यादा कामुक और दमदार होती है. सोमा की हाथ की पकड़ मेरे लंड पर ज़ोरदार हो गयी थी कि अब मुझे दर्द हो रहा था. आगे के 30-40 मिनट काफी तूफानी होने वाले थे.
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