RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
मैंने अपना बैग रखा और ऑफिस के एक बन्दे को बुलाकर पूछा, “हमलोगों के ठहरने का क्या इन्तेजाम हुआ है?”
वह बंदा थोड़ा घबराया सा लग रहा था. डरते-डरते बोला, “वो सर यहाँ कोई होटल बगैरह तो है नहीं इसलिए क्लाइंट ने ऑफिस के ही उपरी माले हो हमारे रहने के लिए तैयार किया है.”
“सारा इन्तेजाम किया हुआ है ना?” मैंने पूछा. वह थोड़ी देर मेरी और देखा फिर जबाब दिया,
“हाँ सर” जैसे अपनी बात पर खुद को ही भरोसा नहीं है.
मै किसी अच्छी खबर का इंतज़ार तो नहीं कर रहा था. जो भी हो, ये एक महीने तो गुजरने ही है.
लगभग शाम के 5 बजे मैं हमारे ठहरने का इन्तेजाम देखने और अपना सामान रखने के लिए ऊपर की मंजिल में गया. वहां जाकर तो मुझे एक धक्का सा लगा. कम्पनी और खुद पर काफी गुस्सा आ रहा था. हरामियों ने हमे भेड़-बकरी समझ लिया था. एक बड़े से कमरे में आठ-दस आदमियों के रहने और सोने का इन्तेजाम था. मैं तो वैसे ही अकेले रहना ज्यादा पसंद करता था. भीड़ मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है. मैं गुस्से में नीचे गया और लगभग चिल्लाते हुए कहा, “यह क्या घोड़ो का अस्तबल है या हमलोग भेड़-बकरी है?”
सारे लोग मेरी और घूरने लगे. मेरा दिमाग का पारा लगातार चड़ता जा रहा था. मैंने उस बन्दे को बुलाया जो मुझे कुछ देर पहले इन्तेजाम बता रहा था. वह बेचारा डरते हुए आ रहा था. मैंने शांत होकर पूछा, “यहाँ तो मैं नहीं रह सकता. आस-पास कहीं और रहने का इन्तेजाम करो. मैं अकेला ही रहूँगा.”
वह धीरे से सर हिलाकर कहा, “जी सर!”
तभी एक आदमी जो ढलती उम्र का था और शायद यहीं का रहने वाला था, मेरी और आया और कहा, “साहब, हम यहीं के रहने वाले है. हमारा नाम पवन सिंह है और यहाँ का इन्तेजाम देखते है. हम आपके रहने का इन्तेजाम कर देंगे. यहाँ पास में एक ठाकुर का हवेली है जहाँ भाड़े पर मकान मिलता है. आपको कोई दिक्कत नहीं होगा. हम बात करेंगे.”
“अभी चलो भैया!” मैं तो जैसे घोड़े पे सवार था.
वह भी तैयार था, शायद उसको मकान मालिक से कमिसन मिलता होगा. रस्ते भर मैं पवन जी से ठाकुर की हवेली के बारे में पूछता रहा. उससे पता चला की इस वीरान इलाके में सबसे पहले बसने वाला यह ठाकुर ही था. ठाकुर एक जमींदार था लेकिन उसका पुश्तेनी घर बनारस के पास कहीं था. ठाकुर को ढलती उम्र में एक बंगाली नाचनेवाली के साथ इश्क हो गया था. वह उससे शादी करना चाहता था लेकिन उसका पूरा खानदान इश्क के आड़े आ गया था. जिसके चलते ठाकुर अपनी जमींदारी और घर छोड़कर यहाँ आ वसा था. वैसे यह इलाका भी उसके जमींदारी में ही आता था लेकिन बिल्कुल वीरान था. ठाकुर ने बंगालन से शादी किया और अपने कुछ वफादारों के साथ यहाँ आ वस गया. लगभग पंद्रह साल हो गए ठाकुर को गुजरे हुए. जमींदारी तो अब रही नहीं लेकिन अभी भी लोग ठाकुराइन की और हवेली की इज्जत करते है. ठाकुराइन के पुरी हवेली को अलग-अलग मकानों में बदल उसमे भाड़े लगा दी है. मकानों के भाड़े से जो आय होती है उससे ही खर्चा चलता है. पवनजी से यह भी पता चला की ठाकुर का बंगालन के साथ कोई औलाद नहीं हुआ. बंगालन अभी अपनी एक नौकरानी के साथ रहती है. पवनजी ने यह भी बताया की यह औरत काफी कड़क और गुस्सेवाली है.
भीड़-भाड़ वाले रास्तो से गुजरते हुए कोई बीस मिनट चलने के बाद हमलोग ठाकुर की हवेली पहुंचे. हवेली जैसा कुछ नहीं था, बस एक बड़े जगह में फैला मकान था. घुसने के लिए एक बड़ा-सा गेट था. चारदीवार काफी ऊँचा था जिसकी दीवारों पे ना जाने कितने सालो से रंग नहीं लगा था. लोहे से गेट से हम अन्दर गए. अन्दर काफी फैला हुआ जगह था जो लम्बाई में ज्यादा था. दोनों और एक मंजिला महान बने हुए थे जो अलग-अलग थे लेकिन सबके छत एक ही थे. इन अलग-अलग मकानों में परिवार भाड़े पर रहते थे. यह मेरे लिए और मुसीबत थी. मैं किसी भी हाल में इस परिवारों के बीच में नहीं रहना चाहता था. बीच के हिस्सा दोनों तरफ से कुछ कटा-सा था. यह वाला मकान तीन मंजिला था और काफी खुबसूरत भी. वक़्त के साथ-साथ खूबसूरती में थोड़ी कमी आ गयी थी लेकिन फिर भी शानदार दिख रहा था. पवनजी ने बताया की यह हिस्सा ही असल में हवेली है. बाकी मकान तो नौकरों और कर्मचारियों के लिए बनाया गया था.
हमलोग चलते हुए मुख्य हवेली के सामने आये. सामने काफी बड़ा बरामदा था, जहाँ कुर्सियां लगी थी. पवनजी ने मुझे एक कुर्सी पर बैठाया और दरवाजे पर आवाज दिया, “मालकिन जी, मालकिन जी है क्या?”
कुछ देर के बाद एक अधेड़ उम्र की औरत बाहर आई. औरत की उम्र लगभग ४५ के आस-पास होगी. नाटा कद, गहरा सांवला रंग, भरा हुआ शरीर, बड़ी गोल तेज़ आँखें और पहनावे में बैंगनी चटकदार साड़ी. आकर सबसे पहले मुझे सर से लेकर पांव तक तेज़ नज़रों से घूरने के बाद पवनजी की और देख बोली, “क्या सिंहजी, बड़े दिन बाद हमारी याद आई? यह किसको साथ में लाये है?”
पवनजी उसकी सवालो से थोड़ा सकपका गए. मेरी और देखते हुए फिर बोले, “लाली, यह हमारे कम्पनी के साहब है. एक-आध महीने के लिए यहाँ मकान भाड़े पर चाहते है.”
वह औरत फिर मेरी ओर गौर से देख बोली, “साहब कहाँ से आये हो?”
मैं बोला, “दिल्ली से.”
लाली थोड़ा सोचने के बाद फिर बोली, “शादीशुदा हो या कुंवारे हो?”
मैं पवनजी की ओर देखा और बोला, “नहीं जी, मैं कुंवारा ही हूँ. कंपनी के काम से आया हूँ. एक-आध माह के बाद चला जाऊंगा.”
कुछ देर दरवाजे के अन्दर झाँकने के बाद लाली बोली, “लेकिन मालकिन तो कुंवारे लोगो को मकान भाड़े पर नहीं देते है.”
यह सुनकर मेरा दिल बैठ गया. किस मनहूस जगह पर आ गया हूँ जहाँ रहने को भी अच्छी जगह नहीं है. पवनजी मेरी बैचनी समझ गए. जल्दी से बोले, “लाली, तुम मालकिन को खबर दो. हम बात करेंगे ठाकुराइन से.”
लाली तेज़ नज़र से हम दोनों को देखने के बाद अपने मोटे-मोटे चूतड़ हिलाते हुए अन्दर कमरे में चली गयी. दस मिनट इंतज़ार करने के बाद किसी के पायल की झंकार सुनाई दी. शायद ठाकुराइन आ रही थी.
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