RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
जल्दी से बोले, “लाली, तुम मालकिन को खबर दो. हम बात करेंगे ठाकुराइन से.” लाली तेज़ नज़र से हम दोनों को देखने के बाद अपने मोटे-मोटे चूतड़ हिलाते हुए अन्दर कमरे में चली गयी. दस मिनट इंतज़ार करने के बाद किसी के पायल की झंकार सुनाई दी. शायद ठाकुराइन आ रही थी.
किसी औरत के चलने की आवाज अब नजदीक आ चुकी थी. अचानक से दरवाजे का पर्दा हटा और एक सुन्दरी मेरे सामने थी. जी हाँ, अगर पवनजी नहीं बताते तो मेरी मजाल नहीं की मैं सोंचू की इसकी उम्र चालीस साल होगी. ठाकुराइन को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया.
अचानक पवनजी की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा. “साहब जी, यह ठाकुराइन है. इस हवेली की मालकिन.”
मैंने हड़बड़ी में नमस्ते किया. उसने भी जवाब में हाथ जोड़े. मुझे बैठने का ईशारा कर खुद एक कुर्सी पर बैठ गयी. मैं एकटक उसको देख रहा था. इस उम्र में भी चेहरे की चमक सिर्फ एक बंगाली औरत ही रख सकती है. ठाकुराइन ज्यादा लम्बी नहीं लेकिन नाटी भी नहीं थी. रंग बिल्कुल साफ़ था. छातियाँ फूली हुई और बड़ी थी. उसकी सबसे कातिल चीज तो उसकी कमर और पेट थी. इस उम्र में भी उसका पेट बिल्कुल सपाट और गहरा था, जिसके कारण छाती ज्यादा ऊँची लग रही थी. ठाकुराइन एक गुलाबी रंग की साड़ी और काले रंग की लंबे बाजु वाला ब्लाउज पहने थी. ब्लाउज बंद गले का था लेकिन साड़ी काफी निचे बंधी हुए थी जिससे उसकी गहरी नाभि दिख रही थी.
अचानक मुझे सोमलता की याद आ गयी और जी खट्टा हो गया. ठाकुराइन की आवाज ने मुझे सोमलता की यादों से बाहर निकाला.
“हाँ, पवन! बताओ तुम मुझसे क्यों मिलना चाहतो हो?”
क्या आवाज़ है! इसकी आवाज तो बिल्कुल एक 19 साल की लड़की जैसे है. पवनजी कुर्सी को थोड़ा सरकाते हुए बोला, “ठकुराईन, यह हमारे फैक्ट्री के साहब है, दिल्ली से आये है. फैक्ट्री में रहने का कोई अच्छा साधन नहीं है इसलिए हम आपके यहाँ लेके आये. आप एक-आध महीने के लिए कोई मकान या कमरा दे दीजिये.”
ठाकुराइन मेरी ओर देखी फिर बोली, “लेकिन पवन, यहाँ तो सब परिवार वाले रहते है और कोई मकान अभी खाली भी नहीं है.”
पवन बोला, “ठाकुराइन जरा देखिये ना, कहीं कोई खाली कमरा भी चलेगा.” थोड़ा सोचने के बाद ठाकुराइन अपने नौकरानी की ओर देखी, फिर बोली, “अरे लाली, ऊपर का बरसाती कमरा कैसा है?”
लाली थोड़ा चौंकी ठाकुराइन के सवाल से. फिर धीरे से बोली, “बीवीजी, वो कमरा तो बहुत दिनों से बंद पड़ा है. अच्छा ही होगा, सफाई करना पड़ेगा.”
फिर मेरी ओर देखते हुए बोली, “आप कल आ जाना, मैं साफ़ करने के लिए बोल देती हूँ. भाड़ा हर हफ्ता हजार रूपये लगेगा.” यह कह ठाकुराइन उठी और बिना कुछ बोले अन्दर चल दी.
मैं बेवकूफ जैसे देख रहा था. लाली मेरे और देख बोली, “साहब, आप अकेले रहोगे ना?”
मैंने हाँ में सर हिलाया.
“तब ठीक है. लेकिन हर हफ्ते सौ रूपये देने होंगे. कमरे की सफाई तो मुझे ही करना होगा. जोरू तो आपकी है नहीं.”
मैं बोला, “अच्छा ठीक है.”
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मैं और पवनजी हवेली से निकल लिए. रास्ते किनारे एक दुकान पर नास्ता करते-करते पवनजी से और जानकारी लेने लगा. उसने बताया की ठाकुराइन की कोई औलाद नहीं है. यहाँ आने के एक साल बाद एक बेटा हुआ था लेकिन वह गायब हो गया. शायद ठाकुर की पहली बीवी ने अगवा कर मर दिया होगा. तब से वह यहाँ अकेले रहती है. आजतक किसी ने किसी रिश्तेदार या दोस्त को यहाँ आते नहीं देखा. लाली ठाकुराइन की पुरानी साथिन है जो उसके नाचने वाले दिनों से साथ है. पवनजी ने बताया की लाली बहुत चालाक, बदमिजाज और शक्की किस्म की औरत है.
“मुझे इससे क्या? बस रहने को जगह मिल जाये ताकि शांति से यह कुछ दिन बीत जाये और क्या!” यह सोच मैं वापस फैक्ट्री को चल पड़ा. पवनजी घर निकल लिए. आज रात तो मुझे फैक्ट्री के उपरी मंजिल में ही रहना पड़ेगा. रात को सबके साथ खाना खाया और सो गया.
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