RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
गली सुबह काफी दौड़-भाग से शुरू हुई. पुरे फैक्ट्री में कंप्यूटर लग रहे थे. मुझे अपने सारे बन्दों को गाइड करना था, कहाँ कैसे क्या करना है. इसी व्यस्तता में कब शाम हुई पता ही नहीं चला. शाम के लगभग सात बजे पवनजी आये और बोले, “साहब, हवेली में नहीं जाना है क्या? कितना सामान है आपका?”
“ह्म्म्मम्म!!!” जाना तो पड़ेगा ही. मैंने उसे एक रिक्शा लाने को बोला और अपना सामान बाँधने लगा. सामान ज्यादा कुछ था नहीं. एक बड़ी ट्राली, एक बैग और एक बड़ा बैग थे जिसमे जरूरी सामान था काम का. यह सब रिक्शा में लादकर हमलोग हवेली की तरफ चल दिए.
शाम घनी हो चुकी थी, रास्तो में घर वापस आने वालो की भीड़ भी बढ़ गयी थी. हवेली के अन्दर जब पहुंचा तो घडी आठ बजा रही थी. पवन जी आवाज देने पर लाली बाहर निकली. आज लाली काफी शांत और चुप लग रही थी. हमलोगों को देखते ही वह कमर में बंधी साड़ी के अन्दर से चाभी निकली और चलते हुए आगे निकली. हम दोनों भी चुपचाप उसके पीछे हो लिए. चलते हुए लाली का पिछवाड़ा क़यामत लग रहा था. उसकी गांड इतनी चौड़ी थी की पांच मीटर कपड़ा उसकी ढकने में लग जाये. मोटे गांड की दरार में फांसी साड़ी बता रही थी की गांड की घाटी की गहराई कितनी होगी. मेरे साथ साथ पवनजी भी एकटक उसकी गांड को घूरते हुए चल रहे थे.
थोड़ी दूर चलने के बाद हम रुक गए. हवेली के बाये हिस्से की शुरुआत में एक लोहे की घुमावदार सीढ़ी है जो सीधे ऊपर छत में बने एक कमरे वाले बरसाती तक जाती है. लाली के पीछे पीछे हमलोग भी ऊपर गए. पुरे छत में इस कमरे के आलावा कुछ नहीं था. हाँ, मुख्य हवेली जरूर दो मंजिला थी. ऊपर मंजिल में ठाकुराइन लाली के साथ रहती है. उसके हवेली से बरसाती लगभग २०० मीटर की दुरी पर है लेकिन सारे छत एक साथ लगे हुए है. बरसाती एक बड़े कमरे के मकान था जिसके चारो तरफ बालकोनी बना हुआ था. अन्दर एक छोटा बाथरूम और रसोई भी था. यह शायद किसी मेहमान के लिए बना हुआ था. सोने के कमरे में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ थी जिससे पुरे गाँव का नज़ारा दीखता था.
मुझे यह बरसाती काफी पसंद आया. लाली ने घुम-घूमकर सारा मकान दिखा बता रही थी की कहाँ कहाँ क्या है. कमरे में पलंग, एक टेबल, दो कुर्सियां, दीवाल से लगी अलमारी सब कुछ था. जाते-जाते लाली बता गयी की ठाकुराइन ने इस कमरे को पुरे 15 साल के बाद खोलने की इजाजत दी. लाली के जाने के बाद मैंने पवनजी को विदा किया और बैग से सामान को निकाल अपने-अपने जगह पर रखना शुरू किया. दिन घर के थकान के कारण बाज़ार से लाये खाने को खा बिस्तर पर ढेर हो गया. खिडकियों से आती ठण्डी हवा के कारण जल्दी ही गहरी नीदं की आगोश में चला गया.
रात नींद काफी अच्छी हुई थी जिसके कारण मुझे उठने में देर हो गयी. सुबह की धुप के कारण पूरा कमरा रोशन हो गया. फैक्ट्री में आज भी मुझे रहना काफी जरूरी था. मैं नहाने के लिए बाथरूम गया. बाथरूम छोटा लेकिन सारी अंग्रेजी सुविधायों से लैस था. बाथरूम की खिड़की से हवेली की उपरी मंजिल दीख रही थी लेकिन मुझे कोई हलचल नज़र नहीं आया. हलचल भी क्या हो जब दो औरत ही रहती है. मैंने जल्दी से नहाया, कपड़े पहने और फैक्ट्री की तरफ भागा. वहां सब मेरी रह देख रहे थे. आज फिर एक भाग-दौड़ वाला दिन था. शाम को खाना पैक कर आठ बजे अपने कमरे में आया.
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