RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
बाहर से लाली की आवाज आई, “साहब, कमरा साफ़ हो गया. मैं जा रही हूँ. दरवाजा लगा लो!”
अच्छा, तो यह कमरा साफ़ करने आई है. रोज़ इसी वक़्त आती हैं लेकिन मैं तो काम पे निकल जाता हूँ. आज रविवार के कारण इससे भेंट हो पाई. वाबजूद शर्म के मुझे बाहर निकलना पड़ा. पता नहीं मैं उसका सामना कैसे करूँगा.
लाली पोंछा वगैरह लगाकर खड़ी थी. मुझे कमरे में आते देख बाल्टी उठाई और जाने लगी. दरवाजे के पास रुक गयी, पीछे मुड़ कर बोली, “दरवाजा बंद कर लो साहब!” फिर मुस्कुराते हुए भारी-भरकम गांड हिला-हिलाकर चल दी.
मैं बिल्कुल चूतिये जैसा खड़ा था. शायद यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी नादानी थी.
आज का दिन काफी लम्बा लग रहा है. मारे शर्म के मै बाहर नहीं निकला. दोपहर को गर्मी भी बढ़ गयी. अकेले बोरियत भी हो रही है. नहा कर लैपटॉप में मूवी देखने लगा. मूवी देखते-देखते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला. अचानक दरवाजा ठोकने की आवाज से नींद खुली. मैंने देखा शाम घनी हो चुकी थी. दिन की रौशनी लगभग जा चुकी थी. दरवाजा पीटने की आवाज तेज़ हो गयी. शायद कोई काफी देर से दरवाजा पीट रहा था.
हडबडा के मैं ने दरवाजा खोला तो पवनजी खड़े थे. मुझे देख मुस्कुराते हुए बोले, “साहबजी सो रहे थे क्या?”
अधखुली आखों को पूरा खोला के देखा तो पवनजी मुँह में पान चबाते हुए मुस्कुरा रहे थे. “हाँ, पवनजी. अकेले बैठे बैठे नींद आ गयी.” उनको अन्दर बैठाया और मैं मुँह-हाथ धोने चला गया. देखा पवनजी खिड़की से सामने ठकुराईन के मकान को देख रहे थे.
मैंने टोका, “क्या हाल है पवनजी?”
वह थोड़ा झेपते हुए बोला, “बस ऐसे ही साहब जी. मैं सोचा की आप आज अकेले बोर हो रहे होंगे, इसलिए चला आया. चलिए बाहर थोड़ा हवा खाते है.”
मैंने उससे 5 मिनट माँगा और जल्दी से कपड़े बदल साथ हो लिए. हवेली से बाहर निकल ही रहे थे कि सामने से लाली एक बड़े थैले लिए आती दीखी. सामने आते ही मैं शर्म से पानी-पानी हो रहा था. मेरी ओर एक नज़र देने के बाद लाली पवनजी से बोली, “क्या सिंहजी! बड़ा मुँह लाल किये घुम रहे हो?”
मैंने देखा की पवनजी लाली के सामने थोड़ा असहज लगते है. यह क्या माज़रा है? पता तो लगाना ही पड़ेगा.
पवनजी बोले, “कुछ नहीं लाली. साहब जी से मिलने आये थे.”
लाली ने फिर मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखी ओर बोल पड़ी, “हाँ. साहबजी को गाँव घुमाओ. यहाँ की हरियाली के दर्शन कराओ. अकेले बेचारे का मन नहीं लगता होगा. मैं चलती हूँ.” और लाली आगे से होते हुए हवेली के अन्दर चली गयी. लाख मना करने के बावजूद मैं खुद को लाली की कातिल गांड को हिलते हुए देखने से रोक नहीं सका.
हम दोनों हवेली के मुख्य गेट से निकल बाज़ार की तरफ निकल पड़े. अँधेरा हो चूका था और बाज़ार की दुकानों में रौशनी हो चुकी थी. हमने एक चाय की दुकान देखी और वहां बैठ गए. दिन भर की गर्मी के बाद शाम की ठंडी हवा दिल खुश कर रही थी. बिस्कुट के साथ चाय लेते हुए मैंने पवनजी से वह सवाल किये जो मैं काफी देर से पूछना चाहता था. “अच्छा पवनजी, आप तो काफी दिनों से है. ठाकुर से जाने के बाद उसके या ठकुराईन के परिवार से कोई यहाँ नहीं आया?”
|