RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
पवनजी चाय का घूंट लेते हुए बोले, “नहीं साहब, ठाकुर साब को तो उसके पुरे खानदान ने बिरादरी से बेदखल कर दिया था और नाचनेवाली का कोई परिवार तो होता नहीं है. हाँ, ठाकुर साब का एक भतीजा आया था साब के गुजरने के बाद. कुछ डेढ़ दो महीने रहा भी था. लेकिन बेनचोद की नज़र ठाकुर साब की दौलत और ठकुराईन पर थी. साले को लात मारकर निकाल दिया हमलोगों ने.”
अच्छा इसका मतलब यह बंगालन पिछले सालों से मर्द के बगैर है. “अपने और परिवार के बारे में बताओ” चाय का दाम चुकाते हुए पवनजी से पूछा.
“साहब जी क्या बताऊँ? हम रहनेवाले बिहार के है. दाना-पानी के चक्कर में यहाँ-वहां भटक रहे थे. बगल के रेलवे स्टेशन पर तांगा गाड़ी चलाते थे. इसके बाद तो तांगा का जमाना ख़त्म हो गया. ठाकुर साहब जब यहाँ आये तो उनको तांगा चलाने वाले की जरूरत हुई. सो हम यहाँ हवेली में तांगा चलाने लग गये. तब से इधर ही बस गये. ठाकुर साहब के गुजरने के बाद कुछ दिन इधर-उधर काम किया. फिर फैक्ट्री शुरू हुई तो हम यहाँ आ गए.”
टहलते हुए हमलोग बाज़ार के अंदर आ चुके थे. “घर-परिवार से कभी मिलने जाते नहीं है?”
पवनजी थोड़ा उदास होते हुए बोले, “घर में माँ का स्वर्गवास हो गया है. एक भाई है, वह भी दिल्ली में बस गया है. अब वहां कौन है जिससे मिलने जाएँ?”
मुझे पवनजी की दुखभरी कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे तो ठकुराईन के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानना था. पिछली छुट्टी में मुझे चोदन-क्रिया की ऐसी लत लग गयी थी की मैं बिना चूत और चूची के बेचैन हो रहा था.
शाम काफी हो चुकी थी. बाज़ार के एक छोटे से ढाबे पर हमने खाना खाया और पवनजी को विदा कर मैं वापस हवेली में आ गया. बाज़ार लगभग सुनसान हो चूका था. जब मैं हवेली में आया तो बिजली कट गयी. आज उमस भरी गर्मी थी. मैं काफी देर तक छत पर टहलता रहा. रह रह कर मेरी नज़र हवेली पर जा रही थी. अचानक बिजली वापस आ गयी. कमरे के अन्दर रौशनी हो जाने के कारण अन्दर का पूरा नज़ारा दिख रहा था. हवेली के उपरी मजिल के एक कमरे से दो औरतो की परछाई नज़र आ रही थी. ये ज़रूर ठकुराईन और उसकी साथिन लाली होगी. दोनों आपस में कुछ बात कर रहे थे लेकिन धीमी आवाज़ में. पता नहीं मेरे दिमाग में क्या सुझा मैं खुद को बिना दिखाई दिए बचते-बचाते उनके कमरे की ओर बढ़ने लगा. जिस कमरे में दोनों थे,
मैं उसकी दीवार से चिपक गया. खिड़की खुली हुई थी. मैं अन्दर झाँका, अन्दर एक बड़ा बड़े सोफे पर ठकुराईन बैठी थी और उसके बगल में एक कुर्सी पर लाली बैठी थी. ठकुराईन सिर्फ एक साड़ी लपेट कर बैठी हुई थी, बिना ब्लाउज के और शायद पेटीकोट भी नहीं था. सोफ़ा पर बदन को लादकर पड़ी थी जैसे कि काफी थक गयी हो. लाली अब धीरे से ठकुराईन के पीछे गयी और उसकी माथे को सहलाने लगी. आराम से ठकुराईन की आँखें बंद थी. लाली थोड़ी देर तो अपने मालकिन के माथे को सहलाती रही, फिर धीरे से बोली, “बीवीजी”
ठकुराईन आंख बंद किये ही बोली, “हाँ बोल!”
लाली और धीमी आवाज में बोली, “बीबीजी हमलोग वापस बनारस चलते है यहाँ का सब कुछ बेच कर”
ठकुराईन आँखों को बिना खोले लगभग झल्लाते हुए बोली, “तेरा दिमाग ख़राब है क्या लाली? जहाँ के लोग हमारी जान के पीछे हाथ धोकर पड़े है. जिन लोगों ने मेरी इज्जत तक नही छोड़ी, वहां किसके लिए वापस जाना.”
जबाब सुन लाली थोड़ा सहम गयी. दो-चार मिनट दोनों चुप रहे. इसके बाद ठकुराईन बोली, “अच्छा, यह जो नया आदमी रहने आया है ऊपर तूने उससे इस हफ्ते का भाड़ा लिया?”
लाली थोड़ा डरते-डरते बोली, “नहीं बीबीजी, मैंने माँगा नहीं. लेकिन लड़का अच्छा है.”
अब ठकुराईन खुली आँखों से ताकते हुए सवाल की, “अच्छा! तेरा उसपर दिल आ गया है क्या?”
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