RE: Incest Kahani Incest बाप नम्बरी बेटी दस नम्बरी
रति रमेश से- आपने तो इसे सिर पर चढ़ा रखा है. जब हमारे पास इतना पैसा है ही तो इसे ऐसे काम करने की इसे क्या जरूरत है? और तुम भी तो इसकी पॉकेट मनी नहीं बढ़ाते. आखिर वह भी तो अब बड़ी हो गयी है. उसके खर्चे भी तो बढ़ गए हैं।
रमेश- रति तुम समझती नहीं हो. मैं जानबूझ कर उसकी पॉकेट मनी नहीं बढाता. मैं चाहता हूँ कि वह अपने पैरों पर खुद खड़ी हो. आखिर एक न एक दिन यह सब उसी का तो होने वाला है और तब उसका यह एक्सपीरियंस काम आएगा।
रति- हां हां! समझ गयी. तुम, तुम्हारी बेटी और तुम्हारा बिजनेस!
रमेश ने रति को अपनी बांहों में कस लिया और बोला- अरे जानू … ग़ुस्सा क्यों होती हो. तुम तो मेरी जान हो। तुम नाराज़ हो जाओगी तो ऐसा लगेगा कि मेरी जान ही मुझसे नाराज़ हो गयी और अगर जान नाराज़ हो जाए तो मैं तो मर ही जाऊंगा।
वो रमेश के मुंह पर हाथ रखते हुए बोली- छी! ऐसा मत कहो. तुमसे पहले मेरी ही जान निकल जाए।
रमेश ने रति को अपने सीने से लगा लिया और बोला- अब मैं चलता हूँ. रात को देर से लौटूँगा या फिर सुबह ही लौटूं शायद।
रति- बस यही तो है बुरी आदत है आप दोनों बाप- बेटी में! मुझे तो घर में सिर्फ पहरेदार ही बना दिया है आप दोनों ने।
रमेश- मेरी जान, यूँ उदास होकर मत विदा करो. अच्छा नहीं होता. ज़रा मुस्करा दो।
वो मुंह बना कर बोली- तुम भी न, हमेशा अपनी बात मनवा ही लेते हो। ठीक है जाओ, और हाँ रात में ही आने की कोशिश करना।
रमेश- बॉय!
रति- बॉय! जल्दी आने की कोशिश करना।
अब रमेश भी घर से निकल गया.
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