RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“हां” - उसने बड़ी शराफत से स्वीकार किया - “यह भी हो सकता है । लेकिन ये बहुत बाद की बल्कि यूं कहो कि आखिरी हद तक की बातें हैं । फिलहाल मेरे सामने इन बातों का जिक्र मत करो । मेरा सपना मत तोड़ो । मुझे बेपनाह पैसे वाले के संसर्ग, बीस-बीस फुट लम्बी विलायती कारों और मालाबार हिल और जुहू और नेपियन सी रोड और ऐसी ही दूसरी शानदार जगहों के विशाल और खूबसूरत बंगलों के खूब सपने देखने दो ।”
“सपने देखने से क्या होता है ।”
“सपने देखने से बहुत कुछ होता है । सपने देखने से मन में निराशा की भावना नहीं पनपती । सपने देखने से अपने लक्ष्य पर आगे बढने की इच्छा हर समय बनी रहती है । और सब से बड़ी बात यह है कि सपने देखने से अपने आप को धोखा देते रहने में बड़ी सहूलियत रहती है ।”
“तुम अपने आप ही धोखा देती हो ।”
“कौन नहीं देता ?”
“तुम तो फिलासफर होती जा रही हो ।”
“बड़ी बुरी बात है ।”
“बुरी बात क्या है इस में ?”
“फिलासफर होने का मतलब यह है कि मुझ में अकल आती जा रही है । और औरतों को अकल से परहेज रखना चाहिये ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि अकल आ जा जाने से बहुत सी बुरी बातें बेहद बुरी लगने लगती हैं । फिल्म उद्योग में तरक्की करने के कई स्वाभाविक रास्ते बेहद गलत लगने लगते हैं । जैसे हीरोइन बनने के लक्ष्य तक पहुंचने का वह रास्ता जो फिल्म निर्माता के बैडरूम से हो कर गुजरता है । इसी प्रकार अकल आ जाने के आप तरकीब का बड़ा ख्याल रखने लगती हैं अर्थात जो काम पहले होना है, वह पहले हो, जो काम बाद में होना है, वह बाद में हो । अक्ल आ जाने पर लड़की यह उलटफेर पसन्द नहीं करती कि हनीमून तो पहले हो जाये और शादी बाद में हो ।”
“बड़ी भयानक बातें करती हो तुम ?”
“बड़ी सच्ची बात करती हूं मैं । जब आप असाधारण नतीजे हासिल करने की कोशिश कर रही हो तो इसके लिये आपको असाधारण काम भी तो करने पड़ेंगे ।”
“इनसान का धर्म इमान भी तो कोई चीज होती है ।”
“कभी होती होगी । अब नहीं होती । अब तो पैसा ही इनसान का धर्म इमान है । आज की जिन्दगी में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना ही सबसे बड़ा धर्म है ।”
“लेकिन इतनी बड़ी दुनियां में हर कोई तो पैसे वाला नहीं बन सकता ।”
“अगर धन्धा शुरू करने के लिये आपरेटिंग कैपिटल हो, पूंजी हो, तो हर समझदार इनसान पैसे वाला बन सकता है ।”
“तुम्हारे पास तो कोई पूंजी नहीं है फिर तुम...”
“कौन कहता है मेरे पास पूंजी नहीं है ।” - सरला उनकी बात काटकर बोली - “मेरी पूंजी यह है ।”
और उसने बड़े अश्लील ढंग से अपना बायां हाथ अपने शरीर पर घुमा दिया ।
“तुम्हारा शरीर ।”
“हां ।”
“तुम्हें अपने शरीर का सौदा करने में कोई एतराज नहीं है ?”
“अगर माल की अच्छी कीमत मिले तो क्या एतराज हो सकता है ?”
“लेकिन कई बार ऐसा भी तो होता है कि बिजनेस फेल हो जाता है और पल्ले से लगाई हुई पूंजी भी डूब जाती है ।”
“बहुत होता है ।”
“और तुम्हारे साथ भी हो सकता है ?”
“हो सकता है ।”
“फिर तुम क्या करोगी ?”
“फिर मैं वहीं करूंगी जिसका अभी तुमने जिक्र किया था । फिर शायद मैं खड़ा पारसा में अपने मुर्दा शरीर पर धजिज्यां लपेटे भीख मांगा करूंगी या फिर आधी रात के बाद खार की सोहलवीं सड़क पर खड़ी होकर ग्राहकों का इन्तजार किया करूंगी या फिर किसी सरकारी अस्पताल के बरामदे में पड़ी किसी गन्दी बीमारी से दम तोड़ दूंगी और या समुद्र में कूदकर आत्महत्या कर लूंगी ।”
“लेकिन अपने इरादो से बाज नहीं आओगी ।”
“नहीं ।” - सरला निश्चयात्मक स्वर में बोली - “क्योंकि मुझे अपनी सफलता की बहुत आशायें हैं । मेरी पूंजी मेरे कम्पीटीशन में मौजूद और लोगों के मुकाबले मे ज्यादा बेहतर है और मुझे इस धन्धे की समझ भी और लोगों से ज्यादा है ।”
“अगर वह सेठ का पुत्तर न फंसा तो ?”
“वह नहीं तो कोई और फंसेगा और नहीं तो कोई और फंसेगा । अभी बहुत वक्त है ।”
“वैसे वह तुम्हारे अलावा और भी तो कई लड़कियों पर मरता होगा ।”
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