RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“हां लेकिन मुझ पर ज्यादा मरता है क्योंकि और लड़कियां तो उसकी ओर से शुरुआत होने की इन्तजार कर रही थीं जबकि मैंने उसे बाकायदा अपने पर आशिक करवाया है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है कि वह और लड़कियों के मुकाबले में तुम पर ज्यादा मरता है ।”
“उसका व्यवहार जाहिर करता है । पिछले पच्चीस दिनों में वह मुझे एक सोने की अंगूठी दे चुका है, दो कांजीवरम की साड़ियां दे चुका है, पांच छः बार ताजमहल और सन-एन-संड में डिनर के लिये लेजा चुका है और वह कहता है कि वह मुझे अपनी अगली फिल्म में हीरोइन नहीं तो साइड हीरोइन जरूर बना देगा ।”
“एक बात बताना भूल गई तुम ?”
“क्या ?”
“अपनी इन तमाम मेहरबानियों के बदले मे वह तुम्हें अपने बैडरूम में कितनी बार ले जा चुका है ।”
“दो बार ।” - सरला बड़ी सादगी से बोली ।
“आई सी ।” - आशा होंठ दबाकर तनिक व्यंग्य पूर्ण स्वर से बोली ।
सरला बच्चों की तरह गरदन हिलाती हुई हंसने लगी ।
“पच्चीस दिन में दो बार तो कोई अच्छा स्कोर नहीं है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है ?”
“मैंने सुना है ।” - आशा एक दम हड़बड़ाकर बोली ।
“कोई निजी तजुर्बा नहीं है ?”
आशा ने नाकारात्मक ढंग से फिर हिला दिया ।
“सच कह रही हो ?”
“हां ।”
“मतलब यह कि तुमने अभी तक किसी से कभी...”
“नहीं ।”
“तुम्हारी उम्र क्या है ?”
“मेरी उम्र ?”
“हां और असली उम्र बताना औरतों वाली उम्र नहीं ।”
“असली उम्र पच्चीस है अगले साल छब्बीस की हो जाऊंगा । वैसे मैं इक्कीस साल की हूं और अगले दस सालों में तेइस साल की हो जाऊंगी ।”
“मैं नहीं मानती ।”
“क्या नहीं मानती तुम ?”
“कि अपने आप पर निर्भर करने वाली, पूर्णतया स्वतन्त्र, तुम्हारे जैसी अभिनेत्रियों से भी ज्यादा खूबसूरत और जवान लड़की पच्चीस साल की उम्र तक कुमारी हो ।”
“यह हकीकत है ।”
“हकीकत है तो कमाल है । मैं तो पन्द्रह साल की ही थी कि...”
आशा चुप रही ।
“वजह ?” - सरला ने पूछा ।
“वजह कुछ भी नहीं ।” - आशा ने उत्तर दिया ।
“कुछ तो वजह होगी ही ?”
“शायद यह वजह हो कि शुरु से ही मेरा जीवन इतना व्यस्त गुजरा है कि सैक्स के बारे में गम्भीरता से सोचने की मुझे कभी फुरसत ही नहीं मिली । इन बातों में मेरी कोई विशेष दिलचस्पी पैदा ही नहीं हुई ।”
“दिलचस्पी तो लोग पैदा कर देते हैं ।”
“नहीं कर पाये । उल्टे मेरे ठण्डे व्यवहार से लोग अपनी दिलचस्पी खो बैठते हैं ।”
“तुम और ठण्डा व्यवहार । कमाल है !” - सरला हैरानी से बोली - “सूरत-शक्ल से तो तुम ऐसी सैक्सी लगती हो कि तुम्हारी सूरत ही देख लेने से लोगों के ब्लड प्रेशर का ग्राफ माउन्ट ऐवरेस्ट से ऊंचा हो जाये ।”
आशा हंस पड़ी ।
“तुमने कभी किसी से मुहब्बत नहीं की ?” - सरला ने नया प्रश्न किया ।
“बहुत से लोगों ने मुझ से मुहब्बत की है ।” - आशा सावधानी से बोली ।
“नतीजा ?”
“नतीजा सिफर । जो कुछ वे मुझ से चाहते थे वह उन्हें हासिल नहीं होता था और जल्दी ही वे मुझसे परहेज करने लगने थे और मेरे स्थान पर ऐसी लड़की को तलाश करने लगते थे जो चाहे खूबसूरत न हो लेकिन जिसका कोई मारल बौंड आफ कन्डक्ट हो न और जो सैक्स को एक बड़ी स्वाभाविक मानवीय क्रिया समझ कर आनन्दित होती हो ।”
“कोई लड़का तुमसे मुहब्बत करता-करता एकदम तुम से कटने लगे और बेरुखी दिखाने लगे तो तुम्हें तौहीन महसूस नहीं होती ?”
“इसमें तौहीन की क्या बात है ? अपनी अपनी पसन्द है यह तो । अगर मैं उसे पसन्द नहीं हूं तो जबरदस्ती उसे अपना मित्र बनाकर कैसे रख सकती हूं । मुझे भी तो कई लोग पसन्द नहीं आते ।”
“लेकिन कई लोग तुम्हें बहुत पसन्द आते होंगे ?”
“हां ।”
“फिर भी तुम्हारे मन में उनके लिये प्यार की भावनायें नहीं आती ।”
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