RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
आशा फेमस सिने बिल्डिंग के मुख्य द्वार से भीतर घुसी । और धड़धड़ाती हुई दूसरी मंजिल पर पहुंच गई ।
दूसरी मंजिल के एक शीशा लगे द्वार पर लिखा था -
के. सी. सिन्हा एण्ड सन
(मोशन पिक्चर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स)
फेमस सिने बिल्डिंग
महालक्ष्मी
बम्बई - 11
आशा ने जल्दी से द्वार को धकेला और अपार व्यस्तता का प्रदर्शन करती हुई भीतर प्रवेश कर गई । वह मेन हॉल में लगी स्टाफ की मेजों के बीज में से गुजरती हुई आगे बढी ।
“नमस्ते जी ।” - अमर का धीमा किन्तु स्पष्ट स्वर उसके कानों में पड़ा ।
आशा केवल एक क्षण के लिये ठिठकी । उसने एक उड़ती सी दृष्टि अपने सामने पड़े कागजों पर सिर झुकाये बैठे अमर पर डाली और आगे बढ गई ।
अमर रोज उसे यूं ही नमस्ते करता था । हर समय वह अपनी सीट पर कागजों पर सिर झुकाये बैठा दिखाई देता था ।
पता नहीं उसे मालूम कैसे हो जाता था कि अभी उसकी बगल में से होकर गुजरने वाली लड़की आशा थी दफ्तर में काम करने वाली कोई दूसरी लड़की नहीं ।
हॉल के पृष्ठ भाग में एक विशाल केबिन था जिसके शीशे पर सिन्हा साहब का नाम लिखा था । उसकी बगल में एक छोटा सा केबिन और था, जिस पर कोई नाम नहीं था ।
वह केबिन आशा का था ।
सिन्हा साहब के केबिन के सामने स्टूल पर बैठे चपरासी ने उठकर आशा को सलाम किया और छोटे केबिन का द्वारा खोल दिया ।
“साहब आ गये हैं ?” - आशा ने पूछा ।
“अभी नहीं ।” - चपरासी बोला ।
आशा ने शान्ति की सांस ली और भीतर घुस गई ।
चपरासी ने लाइट और पंखे का स्विच ऑन कर दिया और फिर केबिन से बाहर निकल गया ।
आशा अपनी सीट पर आ बैठी । सीट पर बैठते ही आदतन उसने टाइपराइटर का ढक्कन उतार दिया और दराज में से शार्टहैंड की कापी निकाल ली ।
अभी कोई जल्दी नहीं थी । सिन्हा साहब आये नहीं थे, पिछले दिन की डिक्टेशन में से केवल एक चिट्ठी टाइप होनी रह गई थी और उसके विषय में सिन्हा साहब ने खुद कहा था कि वह कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं थी, अगले दिन भी जा सकती थी ।
उसने टाइपराइटर के रोलर में कागज चढा दिये । उसने की बोर्ड पर उंगलियां चलाने का उपक्रम नहीं किया । वह टाइपराइटर पर दोनों कोहनियां टिकाये द्वार खुलने की प्रतीक्षा करने लगी ।
दो मिनट बाद एक दूसरा चपरासी भीतर प्रविष्ट हुआ और आशा की मेज पर - “अमर साहब ने भेजी है ।” - कहकर एक फाइल रखकर चला गया ।
अमर सिन्हा साहब के दफ्तर में क्लर्क था ।
ऐसा रोज ही होता था । आशा के दफ्तर मे आने के पांच मिनट बाद ही अमर साहब उसके पास दफ्तर की कोई फाइल भिजवा देते थे ।
आशा ने फाइल का कवर हटाया । फाइल में दफ्तर के छपे लैटर हैड के एक कागज में चाकलेट का एक पैकेट लिपटा हुआ रखा था ।
अमर उस चाकलेट की खातिर ही रोज सुबह फाइल भिजवाता था । पता नहीं उसे मालूम कैसे हो गया था कि आशा को चाकलेट बहुत पसन्द है ।
आशा ने लैटर हैड का कागज चाकलेट के पैकेट से अलग किया, चाकलेट का रैपर उतारा और उसका एक टुकड़ा तोड़कर अपने मुंह में रख लिया । उसने चाकलेट के बाकी भाग को फिर रैपर में लपेटा और अपने पर्स में डाल लिया ।
फिर उसने लैटर हैड के कागज को रद्दी की टोकरी में फेंकने के लिये उसकी ओर हाथ बढाया ।
एकाएक वह ठिठक गई ।
आज कागज हमेशा की तरह कोरा नहीं था ।
उस पर कुछ लिखा दिखाई दे रहा था ।
आशा ने धीरे से कागज को उठाया और उसे खोलकर भेज कर फैला लिया ।
कागज के बीजों बीच मोटे अक्षरों में लिखा था - मुझे तुमसे मोहब्बत है
आशा का दिल धड़कने लगा । वह कुछ क्षण अलपक नेत्रों से कागज पर लिखे शब्दों को घूरती रही, फिर स्वचालित सा उसका हाथ आगे बढा । उसने कागज को उठा लिया और उसके कई टुकड़े करके उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया ।
अगले ही क्षण मशीन की तरह उसकी उंगलियां टाइपराइटर के की बोर्ड पर दौड़नी लगीं ।
चिट्ठी टाइप पर चुकने के बाद उसने कागजों को रोलकर में से निकाल लिया । उसने कागजों से कार्बन अलग किये और चिट्ठी और उसकी कार्बन कापी को फाइल कवर में रखकर चपरासी के हाथ सिन्हा साहब के आफिस में भिजवा दिया ।
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