Hindi Antarvasna - आशा (सामाजिक उपन्यास)
10-12-2020, 01:05 PM,
#8
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
वह विचारपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप बैठी रही और सिन्हा साहब के आगमन की प्रतीक्षा करती रही ।
रह रहकर उसके नेत्रों के सामने अमर का घनिष्ट गम्भीर चेहरा घूम जाता था ।
साढे ग्यारह बजे आशा की मेज पर रखे मेन टेलीफोन का बजर बज उठा ।
आशा ने जल्दी से रिसीवर उठाया और सिन्हा साहब केएक्सटैन्शन का बटन दबाती हुई बोली - “यस सर ।”
“प्लीज कम, इन ।” - उसे सिन्हा साहब का व्यस्त स्वर सुनाई दिया और तत्काल ही सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
आशा ने अपनी शार्ट हैंड की कॉपी और पैंसिल सम्भाली और सिन्हा साहब के आफिस का द्वार खोलकर भीतर घुस गई ।
“गुड मार्निंग, सर ।” - आशा मुस्कराती हुई बोली ।
“मार्निंग !” - सिन्हा बोला और उसने आशा को बैठने का संकेत किया ।
आशा उसकी विशाल मेज के सामने पड़ी कई कुर्सियों में से एक पर बैठ गई । उसने नोट बुक मेज पर रख ली और पेंसिल की नोक को उस पर टिकाये प्रतीक्षा करने लगी ।
सिन्हा एक लगभग तीस साल का साधारण शक्ल सूरत का विलासी सा दिखाई देने वाला आदमी था । अपनी उम्र के लिहाज के उसका शरीर जरूरत से ज्यादा पुष्ट था और इतनी छोटी उम्र में ही उसकी खोपड़ी आधी से अधिक गंजी हो चुकी थी ।
उसकी लालसापूर्ण दृष्टि आशा के झुके हुए चेहरे से फिसलती हुई उसके पुष्ट वक्ष पर जाकर रुक गई ।
कई क्षण उसकी दृष्टि वहीं टिकी रही । फिर उसने एक गहरी सांस ली और अपने सामने रखी कई फाइलों में एक को खोल दिया ।
वह आशा को डिक्टेशन देने लगा ।
“दैट्स आल ।” - लगभग आधे घण्टे बाद वह बोला ।
आशा ने नोट बुक बन्द की और उठ खड़ी हुई ।
“आशा ।” - वह बोला ।
“यस सर ।” - आशा बोली ।
“एक इन्श्योरेंस एजेन्ट को मैंने आज शाम को चार बजे की अपॉइंटमेंट दी है, नोट कर लो ।”
“इंश्योरेंस एजेन्ट को ?”
“हां । वह कई दिनों से मेरे पीछे पड़ा हुआ है । मेरा जीवन बीमा करना चाहता है वह । मैंने उसे आज शाम को चार बजे आने के लिये कहा है । अगर वह चार बजे के एक मिनट भी लेट आये तो उसे मेरे पास मत भेजना और न ही कभी दुबारा उसे दफ्तर में घुसने देना ।”
“ओके सर ।” - आशा बोली और उसने चलने का उपक्रम किया ।
“आज शाम का प्रोग्राम याद है न ?” - सिन्हा मीठे स्वर से बोला ।
“याद है, सर ।” - आशा धीरे से बोली ।
“मैंने टिकट मंगवा लिये हैं ।”
“फाइन सर ।”
“यह क्या सर सर लगा रखी है, बाबा ।” - सिन्हा बनावटी झुंझलाहट का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “मैंने तुम्हें कितनी बार कहां है कि तम मुझे सर न कहा करो ।”
“यस, सर ।”
“फिर सर !”
“आई एम सारी सर ।” - आशा मुस्कराती हुई बोली और केबिन से बाहर निकल गई ।
***
वह टैरालीन का शानदार सूट पहने हुए था, उसके सूट जैसा ही शानदार उसका व्यक्तित्व था । वह फिल्म अभिनेताओं जैसा खूबसूरत लग रहा था और उम्र में कालेज का छोकरा मालूम होता था । उसके चेहरे पर एक विशेष प्रकार की स्वाधीनता जो आशा को विशेष रूप से पसन्द आई उसके दायें हाथ में एक कीमती ब्रीफकेस था ।
कपड़े और ब्रीफकेस इसे इन्श्योरेंस कम्पनी से मिलते होंगे आशा ने मन ही मन सोचा ।
उसने अपनी कलाई पर बन्धी नन्ही सी घड़ी पर दृष्टि डाली ।
ठीक चार बजे थे ।
“गुड आफ्टर नून टू यू ।” - युवक सिर को तनिक नवा कर मुस्कराता हुआ बोला - “सिन्हा साहब हैं ?”
“हां, हैं ।” - आशा बोली - “और तुम्हारा ही इन्तजार कर रहे हैं । अच्छा हुआ तुम ठीक समय पर आ गये ।”
“अगर देर से आया तो क्या हो जाता, मैडम ?” - युवक ने पूर्ववत मुस्कराते हुए पूछा ।
“तो फिर सिन्हा साहब तुम से नहीं मिलते । उन्होंने मुझे बड़ा कड़ा आदेश दिया था कि अगर तुम ठीक चार बजे न आओ तो मैं तुम्हें उनके पास न भेजूं और भविष्य में भी कभी आफिस में न घुसने दूं ।”
“हे भगवान ।” - युवक के चेहरे पर घबराहट के लक्षण प्रकट हुए - “ऐसी बात थी ? फिर तो अच्छा हुआ, मैं वक्त पर आ गया ।”
“हां । कितने का बीमा कर रहे हैं सिन्हा साहब का ?”
“कितने का बीना कर रहा हूं, सिन्हा साहब का ।” - युवक उलझनपूर्ण स्वर से बोला - “क्या मतलब ?”
“मेरा मतलब कि लाइफ इन्श्योरेन्स की कितनी रकम की पोलिसी प्रपोज कर रहे हो सिन्हा साहब को ?”
“ओह अच्छा वह !” - युवक के चेहरे से उलझन के भाव फौरन गायब हो गये - “बीमे की रकम पूछ रही हैं आप ?”
“हां ।”
“अभी कुछ फैसला नहीं हुआ है । वैसे जितने के लिये भी सिन्हा साहब मान जायें ।” - वैसे आप ने तो बीमा करवाया हुआ है न, मैडम ?”
“ज्यादा सेल्समेन शिप दिखाने की कोशिश मत करो, मिस्टर” - आशा मुस्कराकर बोली - “एक वक्त में दो ग्राहक पटाने की कोशिश करोगे तो दोनों ही ग्राहक हाथ से जाते रहेंगे ।”
“फिर भी...”
“चार बजकर एक मिनट हो गया है । एन्ड नाउ यू आर लेट ।”
“ओह माई गुडनेस !” - युवक हड़बड़ाता हुआ बोला - “बाई योर परमिशन, मैडम ।”
और वह लम्बी डग भरता हुआ सिन्हा साहब के आफिस द्वार के समीप पहुंचा और द्वार खोल कर भीतर प्रविष्ट हो गया ।
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