RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“चाय पीने चले आये थे ।”
“आई सी ।” - चश्मे वाला बोला और फिर उसने एक बड़ी निडर दृष्टि आशा पर डाली । सिन्हा से औचारिकता पूर्ण बातचीत समाप्त करके उसने बड़े इतमीनान से आशा के नखशिख का निरीक्षण करना आरम्भ कर दिया । उसका आशा को देखने का ढंग ऐसा था जैसे कोई जौहरी किसी हीरे को परख रहा हो या जैसे कोई कलाल किसी बकरे को देखकर यह अन्दाजा लगाने का प्रयत्न कर रहा हो कि उसमें से कितना गोश्त निकलेगा ।
आशा ने वैसी ही निडर निगाहों से उसकी ओर देखा ।
अपना निरीक्षण समाप्त कर चुकने के बाद चश्मे वाले ने एक गहरी सांस ली और फिर सिन्हा साहब की ओर मुड़कर बोला - “आप की तारीफ ।”
“ये आशा हैं ।” - सिन्हा यूं बोला जैसे नाम ही आशा का सम्पूर्ण परिचय हो ।
“आशा पारेख ?”
“नहीं केवल आशा ।” - सिन्हा कठिन स्वर से बोला - “और आशा, इन साहब का नाम देव कुमार है । ‘फिल्मी धमाका’ नाम का एक फिल्मी अखबार निकालते हैं । ये सारे फिल्म उद्योग में धमाका साहब के नाम से बेहतर पहचाने जाते हैं ।”
चश्मे वाले ने सिर नाकर आशा का अभिवादन किया आशा ने भी मुस्करा कर हाथ जोड़ दिये ।
“अभी तक आपकी कोई फिल्म रिलीज तो नहीं हुई है ।” - देवकुमार ने शिष्ट स्वर से आशा से पूछा ।
“मेरी फिल्म !” - आशा मुस्कराती हुई बोली - “आप को गलतफहमी हो रही है साहब, मैं सिनेमा स्टार नहीं हूं ।”
“असम्भव !” - देव कुमार अविश्वास पूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं वाकई सिनेमा स्टार नहीं हूं ।”
“देखिये, अगर आप पब्लिसिटी से बचने के लये ऐसा कह रही हैं तो...”
“ऐसी कोई बात नहीं है ।” - आशा उसकी बात काट कर बोली - “मैं तो एक बड़ी ही साधारण कामकाजी लड़की हूं ।”
“विश्वास नहीं होता ।” - देव कुमार पलकें झपकता हुआ बोला ।
आशा हंस पड़ी ।
“मेरे ख्याल से आप विश्वास कर ही लीजिये ।” - वह बोली ।
“खैर” - देवकुमार अपने सिर को झटका देता हुआ बोला - “कर लिया विश्वास, साहब । लेकिन, मैडम, कामकाज के नाते आप साधारण हो सकती हैं लेकिन जहां तक आपकी खूबसूरती और आकर्षण का सवाल है, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सारी बम्बई में शायद ही आपको मुकाबले की कोई दूसरी लड़की होगी । मैंने फिल्म उद्योग की नई पुरानी बहुत अभिनेत्रियां देखी हैं लेकिन ऐसी चमक और ताजगी मैंने आज तक कभी किसी सूरत पर नहीं देखी । आपके मुकाबले में सब परसों के खाने जैसी बासी और बदमजा मालूम होती हैं ।”
“इज दैट ए काम्प्लीमैंट ?” - आशा ने मुस्कराकर पूछा ।
“दिस मोस्ट सर्टेनली इज ।” - देवकुमार जोशपूर्ण स्वर से बोला ।
आशा ने प्रश्न सूचक नेत्रों से सिन्हा की ओर देखा ।
सिन्हा परेशान था ।
“वैसे आप किस साधारण काम का जिक्र कर रही थीं ?” - देवकुमार ने पूछा - “क्या करती हैं आप ? और सिन्हा साहब को कैसे जानती हैं आप ?”
“आशा मेरे आफिस में काम करती है ।” - सिन्हा खंखार कर बोला - “मेरी सैकेट्री है ।”
“यानी कि आप इन्हें फेमस सिने बिल्डिंग के अपने चिड़िया के घौंसले जैसे दफ्तर में दबा कर बैठे हुए हैं ?” - देव कुमार यूं चिल्लाया जैसे कोई बेहद असम्भव बात सुनली हो ।
“हां ।” - सिन्हा बोला - “और जिसे तुम चिड़िया का घौंसला बता रहे हो वह फेमस सिने बिल्डिंग का सब से बड़ा दफ्तर है ।”
“होगा ।” - देव कुमार लापरवाही से बोला - “तुम्हारा दफ्तर ही बड़ा है लेकिन तुम्हारे द्वारा वितरित फिल्मों का विज्ञापन फिल्मी धमका के चौथाई पृष्ठ से ज्यादा में कभी नहीं छपा ।”
“मैडम” - वह फिर आशा की ओर आकर्षित हुआ - “सिन्हा साहब की सैकेट्री बनने की काबिलयत रखने वाली बम्बई में कम से कम बीस हजार लड़कियां होंगी लेकिन आप जैसा आकर्षण बम्बई की तमाम लड़कियों में से किसी में नहीं है । मैडम, सिन्हा साहब की सैक्रेट्री बनी रह कर आप सारे हिन्दोस्तान के फिल्म उद्योग के साथ ज्यादती कर रही हैं । यू शुड एट वन्स स्टैप आउट आफ दैट पिजन होल एण्ड बी ए सिनेमा स्टार ।”
“कौन बनायेगा मुझेगा सिनेमा स्टार ?” - आशा पूर्ववत् मुस्कराती हुई बोली ।
“कौन नहीं बनायेगा आपको सिनेमा स्टार ।” - देव कुमार मेज पर घूंसा मारता हुआ बोला ।
“मेज टूट जायेगी ।” - सिन्हा बोला ।
“ऐसी की तैसी मेज की ।” - देवकुमार गरज कर बोला ।
“इतना चिल्लाओ मत । आस पास और भी लोग बैठे हैं ।”
“ऐसी की तैसी उनकी भी ।” - देवकुमार और भी ऊंचे स्वर में बोला - “मैडम, मुझे हैरानी है आज तक किसी निर्माता की आप पर नजर क्यों नहीं पड़ी । एक बार आप के अपने दायरे से बाहर निकल कर यह इच्छा जाहिर करने की देर है कि आप सिनेमा स्टार बनना चाहती हैं, अगर आप के घर के सामने फिल्म निर्माताओं का क्यू न लग जाये तो मुझे फिल्मी धमाका नहीं, सफेद रीछ की औलाद कह देना । और न सिर्फ आप एक्ट्रेस बनेंगी, मेरा दावा है कि अपनी पहली फिल्म के बाद आप सारी बम्बई के फिल्म अभिनेत्रियों के झंडे उखाड़ कर रख देंगी ।”
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