RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
सिन्हा की गाड़ी मैरिन ड्राइव के मोटर ट्रैफिक के सैलाब में बही जा रही थी ।
“वैसे देवकुमार गलत नहीं कह रहा था ।” - सिन्हा बोला ।
“क्या ?” - आशा ने सहज स्वर से पूछा ।
“तुम वाकई बहुत खूबसरत हो ।”
“आप उस बातूनी आदमी की बातों पर जा रहे हैं । तिल का ताड़ बना देना तो उसकी आदत मालूम होती है मुझे । आपके धमाका साहब तो अपनी बातों के दम पर ही किसी भी लड़की के मन में यह वहम पैदा कर सकते हैं कि वह महारानी शीला या क्लोपैट्रा है ।”
“लेकिन तुम्हारे बारे में उसने जो कहा था उसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं थी । तुम बम्बई की किसी भी खूबसूरत अभिनेत्री से अधिक खूबसूरत हो ।”
“और मैं जब चाहूं, बम्बई फिल्म उद्योग की सारी अभिनेत्रियों के झण्डे उखाड़ सकती हूं ।” - आशा उपहासपूर्ण स्वर से बोली ।
“हां ।” - सिन्हा निश्चयात्मक स्वर बोली ।
आशा हंस दी ।
“इसमें हंसने की कोई बात नहीं है ।” - सिन्हा एक उड़ती हुई दृष्टि आशा के चेहरे पर डालकर फिर कार से बाहर सामने सड़क पर दृष्टि जमाता हुआ बोला - “देवकुमार ने एकदम हकीकत बयान की है । यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि तुम जैसी बेहद खूबसूरत लड़की की जगह किसी फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर का दफ्तर नहीं सिनेमा की स्क्रीन है ।”
आशा चुप रही ।
“बम्बई में कई फिल्म निर्माता और निर्देशक मेरे दोस्त हैं, मैं तुम्हारे बारे में किसी से बात करूंगा ।” - सिन्हा निर्णायात्मक स्वर से बोला ।
“मुझे फिल्म अभिनेत्री बनने का शौक नहीं है ।”
“शौक नहीं है तो न सही । तुम फिल्म अभिनय करने के काम को एक पेशे के ढंग से क्यों नहीं सोचती । तुम एक कामकाजी लड़की हो । मैं तुम्हें मुश्किल से साढे तीन सौ रुपये तनख्वाह देता हूं । बम्बई जैसे शहर में साढे तीन सौ रुपए तो एक बड़ी ही साधारण रकम होती है । एक थोड़ा पैसा कमाने वाली कामकाजी लड़की हमेशा किसी ऐसी ओपनिंग की तलाश में रहती है जहां उसे ज्यादा पैसा हासिल हो सके । फिल्म अभिनेत्री बनने का तुम्हें शौक नहीं है तो क्या हुआ तुम फिल्म अभिनय में तो दिलचस्पी ले सकती हो ।”
“मुझे ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं है ।”
“लेकिन जरूरत पड़ सकती है ।”
“मुझे नहीं पड़ेगी । मेरी बुनियादी जरूरतें बहुत कम हैं । साढे तीन सौ रुपये मुझे बड़ी संतोषजनक रकम मालूम होती है ।”
“वक्त का कोई भरोसा नहीं होता, आशा कभी भी कुछ भी हो सकता है । पैसा इन्सान की जिन्दगी में बहुत बड़ा सहारा होता है । आदमी के पास पैसा हो तो वह कभी भी कुछ भी हासिल कर सकता है । पैसा हो तो जिन्दगी की कई सहूलियतें खुद ब खुद हासिल हो जाती हैं । इस आज के जमाने में वह इनसान मूर्ख कहलाता है जो अधिक पैसा कमाने का मौका इसीलिये छोड़ देता है क्योंकि उसकी बुनियादी जरूरतें बहुत कम हैं और क्योंकि थोड़े में गुजारा करना उसने अपनी आदत बना ली है ।”
“मैं मूर्ख ही ठीक हूं ।” - आशा धीरे से बोली ।
“आखिर तुम्हें एतराज क्या है ? तुम इतनी खूबसूरत हो...”
“आप बार-बार मेरी खूबसूरती का ही हवाला दिये जा रहे हैं” - आशा उसकी बात काटकर बोली - “लेकिन आप यह क्यों नहीं सोचते कि अभिनेत्री बनने के लिये सिर्फ खूबसूरत होना ही काफी नहीं होता उसके लिये अभिनय करना भी तो आना चाहिये । और मुझे अभिनय कला की कतई जानकारी नहीं है ।”
“बम्बई में अभिनेत्री बनने के लिये सिर्फ खूबसूरत होना ही काफी होता है, मैडम ।” - सिन्हा बोला - “लड़की खूबसूरत हो और गूंगी न हो तो यह एक बेकार की बात रह जाती है कि वह अभिनय करना भी जानती है या नहीं । मैं अभी बम्बई की कम से एक दर्जन ऐसी प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्रियों के नाम तुम्हें गिना सकता हूं जो अभिनय का क ख ग भी नहीं जानती दर्जनों फिल्मों में काम कर लेने के बाद भी अभिनय नहीं जानती और जिनकी अभिनय के मामले में अकेली योग्यता यह है कि भगवान ने उन्हें अच्छी सूरत और खूबसूरत शरीर प्रदान किया है अगर वे अभिनेत्रियां बन सकती हैं तुम हर हाल में अभिनेत्री बन सकती हो । तुम उनसे एक हजार गुणा ज्यादा खूबसूरत हो ।”
आशा चुप रही ।
“और फिर मेरे ख्याल से तो अभिनय करना तो हर औरत के लिये एक स्वाभाविक किया है । हर औरत जन्मजात अभिनेत्री होती है । मुझे विश्वास है कि तुम बहुत जल्दी और बड़ी आसानी से अभिनय करना सीख जाओगी ।”
“शायद मैं नहीं सीख पाऊंगी ।”
“यह वहम है तुम्हारा और सिनेमा स्टार बनने से इनकार करने के लिये यह बड़ी खोखली दलील है । जब तक तुम एक काम करोगी नहीं तब तक तुम्हें कैसे मालूम होगा कि उसे करने की क्षमता और प्रतिभा तुम में है या नहीं ।”
सिन्हा एक क्षण चुप रहा और फिर बोला - “और फिर तुम अभिनय कर पाओगी या नहीं, यह तुम्हारा नहीं उन लोगों का सिर दर्द है जो तुम्हें अभिनेत्री बनायेंगे ।”
“ऐसी सूरत में कोई मुझे अभिनेत्री बनायेगा ही क्यों ?”
“क्योंकि इस धन्धे में सीरत के मुकाबले में सूरत का महत्व ज्यादा है । अभिनेत्री खूबसूरत है यह बात सौ में से सौ आदमियों को दिखाई दे जायेगी लेकिन अभिनेत्री अच्छा अभिनय करना भी जानती है, यह बात सौ में से दो आदमियों को भी मुश्किल से दिखाई देगी । आशा, सूरत का सम्बन्ध आंखों से होता है और सीरत का सम्बन्ध दिमाग से । हिन्दोस्तान के सिने दर्शकों में आंखें सबके पास हैं लेकिन दिमाग किसी किसी के पास है हिन्दोस्तान में फिल्में आंखों वालों के लिये बनाई जाती है दिमाग वालों के लिये नहीं । इसलिये तुम अभिनेत्री बनोगी ।” - सिन्हा अपने अन्तिम वाक्य के एक एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला ।
“मैं अभिनेत्री नहीं बनूंगी ।” - आशा ऐसे स्वर से बोली जैसे ख्वाब में बड़बड़ा रही हो ।
“लेकिन क्यों ? क्यों ?”
“क्योंकि” - आशा सुसंयत स्वर में बोली - “मेरे फ्लैट में मेरे साथ मेरी एक सहेली रहती है जो खूबसूरती के मामले में मुझसे किसी भी लिहाज से कम नहीं है । यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब देवकुमार जैसे राई का पहाड़ बनाने वाले और केवल बातों की खातिर बातें करने वाले लोग उसे बम्बई की किसी भी खूबसूरत अभिनेत्री से अधिक खूबसूरत लड़की बताया करते थे और भारतीय रजतपट की एक बेहतरीन हीरोइन के रूप में उसकी कल्पना किया करते थे । मेरी कम उम्र और नादान सहेली वाकई यह समझ बैठी कि उसके मुंह से यह बात निकलने की देर है कि वह अभिनेत्री बनेगी कि उसके सामने फिल्म निर्मताओं के क्यू लग जायेंगे और अगले ही क्षण वह फिल्म उद्योग के सातवें आसमान पर होगी । और फिर आपके दोस्त ‘फिल्मी धमाका’ के कथनानुसार वह बम्बई की सारी नई पुरानी फिल्म अभिनेत्रियों के झण्डे उखाड़ देगी, उसकी फिल्में देखने वालों का उड़नतख्ता हो जायेगा और वह बम्बई के फिल्म निर्माता और निर्देशकों के सिर पर नाचेगी । नतीजा यह हुआ कि वह बम्बई के फिल्म उद्योग के इस अथाह समुद्र में कूद गई जहां मगरमच्छ ही मगरमच्छ भरे पड़े हैं । फिल्म उद्योग के आधार स्तम्भों द्वारा अच्छी तरह झंझोड़ी जा चुकने के बाद जब उसकी आंखें खुली तब तक बहुत देर हो चुकी थी । हीरोइन बनने की इच्छुक मेरी सहेली की लम्बी कहानी का अन्त यह है कि अब वह फिल्मों में दो-दो, तीन-तीन मिनट के छोटे छोटे रोल करती है, मतलब यह कि एक्स्ट्राओं से जरा ही बेहतर हालत में है, हर समय एक बड़े ही सुन्दर भविष्य की कल्पना करती है और इस आशा में अपने होठों से मुस्काराहट नहीं पुंछने देती कि शीघ्र ही कोई करिश्मा हो जायेगा, कोई पैसे वाला उस पर कुर्बान हो जायेगा और वह इतनी तेजी से सोने चांदी के कुतुबमीनार की चोटी पर पहुंच जायेगी कि देखने वाले हैरान रह जायेंगे । सिन्हा साहब, अपनी सहेली की कहानी को मैं अपनी जिन्दगी में भी दोहराऊं, इससे अच्छा यह नहीं होगा कि मैं ऐसा इनसान ही बनी रहूं जो इसलिये मूर्ख कहलाता है क्यों कि उसने अधिक पैसा कमाने का मौका इसलिये छोड़ दिया है क्योंकि उसकी बुनियादी जरूरतें बहुत कम है और क्योंकि थोड़े में गुजारा करना उसने अपनी आदत बना ली है ।”
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