RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“ओके ।” - महिला ने प्रश्न सूचक नेत्रों से पूछा ।
“एक मिनट ठहरिये ।” - सिन्हा बोला - “पहले मैं अपनी सैक्रेट्री को आप से मिलवाता हूं । ...आशा ।” - सिन्हा ने आशा को आवाज दी ।
आशा उन लोगों के समीप आ गई ।
“यह मेरी सैक्रेट्री आशा है ।” - सिन्हा बोला - “आशा, ये प्रसिद्ध सिनेमा स्टार अर्चना माथुर हैं ।”
आशा ने दोनों हाथ जोड़ दिये ।
अर्चना माथुर केवल मुस्कराई ।
“मैं तो आपको देखते ही पहचान गई थी ।” - आशा मुस्कराती हुई बोली - “मैं आपकी पक्की फैन हूं, अर्चना जी । आपकी हर फिल्म देखती हूं ।”
“अच्छा !” - अर्चना बोली ।
“जी हां । आपकी कई फिल्में तो मैंने दो दो, तीन तीन बार देखी हैं । मेरी नजर में आप हिन्दी फिल्मों की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री हैं ।”
अपनी प्रशन्सा सुनकर अर्चना माथुर की बाछें खिल गई । उसके नेत्र चमक उठे ।
“बचपन से ही मैं आपकी फिल्में देखती आ रही हूं । तभी से आप मेरी प्रिय सिनेमा स्टार हैं ।”
एकाएक अर्चना माथुर के चेहरे से मुस्कराहट गायब हो गई, फिर आंखों से चमक उड़ गई और फिर उसने कहर भरे नेत्रों से आशा की ओर देखा ।
आशा एकदम हड़बड़ा गई । अर्चना माथुर के व्यवहार में उत्पन्न इतना अप्रत्याशित परिवर्तन उसकी समझ में नहीं आया । उसने तो कोई ऐसी बात कहीं नहीं थी जो अर्चना माथुर को बुरी लगे । वह तो सच्चे दिल से अर्चना की तारीफ कर रही थी ।
दुबारा बोलने का उसका हौसला नहीं हुआ ।
“फिर क्या सोचा तुमने ?” - अर्चना तनिक रूखे स्वर से सिन्हा से सम्बोधित हुई ।
सिन्हा ने एक बार आशा की ओर देखा और फिर अर्चना की ओर देखता हुआ अनिश्चत स्वर से बोला - “अर्चना जी, मेरे ख्याल में तो...”
“तुम्हारी समस्या मैं हल किये देती हूं ।” - अर्चना उसकी बात काटती हुई बोली - “आशा ।”
“जी हां ।” - आशा जल्दी से बोली ।
“आशा ।” - अर्चना गम्भीरता से बोली - “सिन्हा साहब एक बेहद जरूरी काम से मेरे साथ जा रहे हैं, इसलिये आज तुम्हें डिनर के लिये नटराज में नहीं ले जा सकेंगे ।”
“अच्छी बात है ।” - आशा बोली । मन ही मन उसने छुटकारे की सांस ली । सिनेमा हाल में सिन्हा की हरकतों के बाद वह खुद ही कौन सी नटराज में जाने की इच्छुक थी ।
“लेकिन, अर्चना जी...” - सिन्हा ने प्रतिवाद करना चाहा ।
“डिनर के लिये साहब तुम्हें किसी और दिन ले जायेंगे ।” - अर्चना जल्दी से बोली - “ओके ?”
“ओके मैडम ।”
“नाराज तो नहीं हो न ?”
“नहीं, जी । नाराजगी कैसी ।”
“सिन्हा साहब यह बात खुद तुम्हें कहने से झिझक रहे थे, इसलिये मैंने कह दी । तुमने बुरा तो नहीं माना ।”
“नहीं, मैडम ।”
“थैंक्यू । तुम बहुत अच्छी लड़की हो ।” - फिर अर्चना ने आशा की ओर से एकदम पीठ कर ली और सिन्हा की बांह में बांह डालती हुई बोली - “चलो, सिन्हा ।”
“आशा ।” - सिन्हा बोला - “आई एम सारी । मैं...”
“इट्स परफैक्टली आल राइट, सर ।” - आशा मुस्कराती हुई बोली ।
“चलो, तुम्हें कोलाबा तो छोड़ता जाऊं ।” - सिन्हा बोला ।
“ओफ्फोह !” - अर्चना अपार विरक्ति का प्रदर्शन करती हुई बोली - “क्या जरूरत है ? आशा टैक्सी ले लेगी ।”
“दस मिनट लगेंगे, अर्चना ।” - सिन्हा बोला - “कोलाबा यहां से कोई ज्यादा दूर थोड़े ही है ।”
“बाबा, कोलाबा से एकदम उल्टी दिशा में जाना है, इस लिये दुगना वक्त खराब होगा । आशा, तुम टैक्सी ले लो और कोलाबा चली जाओ । हमें नेपियन सी रोड़ जाना है । कोलाबा की ओर जाना होता तो साहब तुम्हें जरूर अपने साथ ले जाते । तुम टैक्सी पर चली जाओ और टक्सी का भाड़ा कल सुबह दफ्तर में सिन्हा साहब से चार्ज कर लेना । ओके ?”
“ओके मैडम ।” - आशा शान्ति से बोली । अर्चना माथुर उससे यूं सम्बोन्धित हो रही थी जैसे वह किसी नौकर से बात कर रही हो और उसे टैक्सी का भाड़ा चार्ज कर लेने की छूट देकर उस पर बहुत बड़ा एहसान कर रही हो ।”
“आओ, सिन्हा ।” - अर्चना उसे लगभग घसीटती हुई बोली ।
सिन्हा उसके साथ हो लिया ।
आशा भी उसके पीछे पीछे बाहर की ओर चल दी ।
सिन्हा अर्चना के साथ अपनी कार की ओर बढ गया ।
आशा बाहर निकलकर टैक्सी स्टैण्ड की ओर बढी ।
उसी क्षण सिन्हा की कार सर्र से उसकी बगल में से निकली और तारकोल की चिकनी सड़क पर दौड़ गई ।
आशा ने देखा अर्चना सिन्हा से सटकर बैठी हुई थी । उसके चेहरे पर एक सिल्वर जुबली मुस्कराहट थी । सिन्हा भी खुश था ।
सिन्हा की कार दृष्टि से ओझल होते ही आशा रुक गई और फिर टैक्सी स्टैण्ड की ओर जाने के स्थान पर उस बस स्टैण्ड की ओर चल दी जहां से कोलाबा की ओर बस जाती थी ।
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