RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“आशा जी” - अमर जल्दी से बोला - “वह देखिये खूबसूरत कार, जर्मन माडल मालूम होता है ।”
“कार को छोड़ो । पहले यह बताओ कल तुमने...”
“दफ्तर आ गया” - अमर बोला - “आशा जी, आप चलिये । मैं थोड़ी देर में आऊंगा । मुझे अपना एक मित्र दिखाई दे गया है ।”
और वह आशा को वहीं छोड़कर लम्बे डग भरता हुआ दूसरी ओर निकल गया ।
आशा कुछ क्षण वहीं खड़ी रही । फिर उसने अपने सिर को झटका दिया और आफिस में घुस गई ।
वह अपने केबिन में जा बैठी ।
सिन्हा लगभग साढे दस बजे आया ।
“मार्निंग सर ।” - आशा मुस्कराती हुई शिष्ट स्वर से बोली ।
“फिर सर ?”
“यस, सर ।”
“ओ के मर्जी तुम्हारी ।”
सिन्हा अपने केबिन में घुस गया ।
ग्यारह बजे सिन्हा ने उसे अपने केबिन में बुलाया ।
आशा अपनी सीट से उठी । अमर ने आज अपने नियमानुसार फाइल में रखकर चाकलेट का पैकेट नहीं भेजा था । उसने अपने केबिन से बाहर झांका ।
अमर अपनी सीट पर नहीं था ।
आशा सिन्हा के केबिन में चली गई ।
“बैठो ।” - सिन्हा बोला ।
आशा एक कुर्सी पर बैठ गई ।
“थोड़ी डिक्टेशन ले लो ।”
आशा शार्टहण्ड की कापी और पैन्सिल सम्भालकर तैयार हो गई ।
आधे घण्टे के बाद सिन्हा ने फाइलें परे सरका दीं और बोला - “दैट्स आल ।”
आशा ने शार्टहैण्ड की कापी बन्द दी और उठ खड़ी हुई ।
“जरा बैठो ।” - वह बोला ।
आशा क्षण भर को ठिठकी और फिर दुबारा बैठ गई ।
“कल घर ठीक से पहुंच गई थी ?” - सिन्हा ने पूछा ।
“जी हां ।”
“कल बहुत घपला हो गया था । मुझे आशा नहीं थी कि अर्चना माथुर यूं अचानक मैट्रो पर मिल जायेगी । उसकी वजह से तुम्हें जो दिक्कत उठानी पड़ी उसके लिये मैं शर्मिन्दा हूं ।”
“कोई बात नहीं सर ।”
“अर्चना माथुर का काम बेहद जरूरी था वर्ना मैं तुम्हें यूं छोड़कर उसके साथ नहीं जाता है ।”
आशा चुप रही ।
“कल फिर खाना कहां खाया तुमने ?”
“कोलाबा में एक छोटा सा रेस्टोरेन्ट है, वहीं खा लिया था ।” - आशा सरासर झूठ बोलती हुई बोली । वास्तव में पिछली रात को खाना खाया ही नहीं था उसने ।
“नटराज आज चलेंगे । मैं टेबल बुक करवा लेता हूं ।”
“आई एम सारी सर । आज मैं नहीं जा सकूंगी ।”
“क्यों आज क्या है ?”
आज मैं जल्दी घर पहुंचना चाहती हूं । मुझे एक जरूरी काम है ।”
“काम टाला नहीं जा सकता ?”
“जी नहीं ।”
“ओ के । कल की बात के लिये मैं एक बार फिर तुमसे माफी चाहता हूं ।”
“इट्स परफैक्टली आल राइट, सर ।” - आशा बोली । उसका जी चाहा कि वह सिन्हा से पूछे कि वह आशा को नटराज में डिनर के लिये न ले जाने के लिये माफी मांग रहा है या अपनी सिनेमा हाल की हरकतों के लिये माफी मांग रहा है ।
“वैसे कल अर्चना माथुर के साथ बहुत ज्यादती की तुम ने ।” - सिन्हा मुस्कराता हुआ बोला - “तुमने उसकी दुखती रग को छेड़ दिया था ।”
“मैंने !” - आशा हैरानी से बोली ।
“हां । बात ही ऐसी कह दी थी तुमने ।”
“मैंने तो कोई गलत या अप्रासंगिक बात नहीं कही थी उनसे । उल्टे मैं तो उनकी तारीफ कर रही थी । वे सच ही मेरी मनपसन्द अभिनेत्री हैं । वे भी अच्छी खासी खुश थीं लेकिन एकाएक ही पता नहीं क्यों वे नाराज हो गई थीं ।”
“तुमने उनकी उम्र का जिक्र क्यों कर दिया था ?”
“मैंने तो उनकी उम्र का जिक्र नहीं किया था ।”
“किया था । तुमने यह क्यों कह दिया था कि तुम बचपन से ही उसकी फिल्में देखती आ रही हो ?”
“मैंने सच ही कहा था । इसमें नाराज होने वाली कौन सी बात थी !”
सिन्हा कुछ क्षण हंसता रहा और फिर बोला - “आशा जरा अक्ल से काम लो और अपनी बात की गम्भीरता समझने की कोशिश करो । कि तुम बचपन से ही अर्चना माथुर की फिल्में देखती थीं, अर्चना माथुर तब जवान थी और अब तुम जवान हो तो अर्चना माथुर क्या हुई ?”
“हे भगवान !” - बात आशा की समझ में आ गई - “मेरा यह मतलब नहीं था ।”
“अर्चना माथुर अपनी उम्र के मामले में बड़ी सैन्सिटिव है । तुम्हारे हिसाब से तो उसकी उम्र चालीस के आसपास हुई जबकि वह स्वयं को तीस इक्तीस साल की बताती है ।”
“लेकिन यह असम्भव है । पन्द्रह साल पहले तो उसे मैंने हीरोइन देखा था । उस समय भी वह अच्छी खासी तेइस चौबीस साल की भरपूर जवान औरत मालूम होती थी । चालीस के आस-पास की जरूर होगी वह ।”
“होगा क्या है ही । बिना मेकअप तो साफ साफ बूढी मालूम होती है । कोई नया निर्माता तो इसे हीरोइन ले ही नहीं रहा है । जिन फिल्मों में वह काम कर रही है उनके रिलीज हो जाने के बाद या तो वह फिल्मी दुनिया से गायब हो जायेगी और या फिर मां का रोल किया करेगी ।”
“हर्ज क्या है उसमें ?” - अर्चना माथुर बहुत शानदार अभिनेत्री है । जिस तरह भी वह अभिनय करेगी, उसी में जान डाल देगी ।”
|