RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“या ऐसा करते हैं” - एकाएक आशा बोली - “महालक्ष्मी स्टेशन पर चलते हैं । लोकल ट्रेन द्वारा चर्च गेट तक चले जायेंगे । वहां से तो टी सेन्टर पास ही है ।”
“यह सबसे अच्छा है ।”
दोनों महालक्ष्मी पहुंच गये । अशोक ने टिकटें खरीदी । गाड़ी आई । दोनों गाड़ी में सवार हो गये । गाड़ी चल पड़ी । बम्बई सैन्ट्रल गया, ग्रांट रोड गया, चरनी रोड गया, मेरिन लाइन्स गया और अन्त में गाड़ी चर्च गेट पर आ रुकी ।
दोनों गाड़ी से उतर कर स्टेशन से बाहर निकले और टी सैन्टर की ओर चल दिये ।
वे टी सैन्टर की ओर चल दिये ।
वे टी सैन्टर में जा बैठे । अशोक ने वेटर को चाय वगैरह का आर्डर दे दिया ।
चाय के दौरान में अशोक टेप रिकार्डर की तरह लगातार बोलता रहा । संसार के हर विषय पर उसने अपनी राय जाहिर की । आशा को ऐसे चुटकले सुनाये कि उसकी बरबस हंसी निकल जाती थी । आशा को सबसे दिलचस्प बात यह लगी कि उसकी एक एक आदत सरला से मिलती थी । सरला की तरह अशोक भी बोलता था तो बोलता ही चला जाता था । एक बार अपना रिकार्ड चालू करने के बाद उसे यह भी देखने की फुरसत नहीं रहती थी कि दूसरा आदमी उसको बात सुन भी रहा है या नहीं ।
अन्त में अशोक ने बिल चुका दिया और फिर दोनों बाहर निकल गये ।
“तुम वाकई सेल्ज मैन बनने के काबिल हो ।” - बाहर आकर आशा बोली ।
“क्यों ?”
“तुम बहुत बातें करते हो और तुम्हारा बात करने का ढंग भी बहुत शानदार है । इंश्योरेंस की पालिसियां मामूली चीज है । तुम्हें तो मौका दिया जाय तो तुम सारी दुनिया बेच दो ।”
अशोक हंसने लगा ।
“आप तो मजाक कर रही हैं ।” - वह बोला ।
“नहीं मैं सच कह रही हूं वैसे तुम्हारा बात करने का ढंग बड़ा विश्सासपूर्ण है । मेरे ख्याल से तुम जिसे भी पालिसी प्रपोज कर देते होगे वह फौरन ही महसूस करने लगता होगा कि वह अपना बीमा न करवा कर अपनी जिन्दगी की भारी गलती कर रहा है ।”
“आप के सिन्हा साहब ने तो ऐसा महसूस नहीं किया ।
“उसकी जरूर कोई वजह होगी । मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारी ओर से कोई कसर नहीं रही होगी ।”
“खैर सिन्हा साहब बीमा नहीं करवाते तो न करवाया, हमें तो फायदा ही हुआ । आप से मुलाकात हो गई ।”
“एक बात बताओ ।”
“दस पूछिये ।”
“तुम कम्पनी के कर्मचारी हो या कमीशन पर काम करते हो ?”
“कमीशन पर काम करता हूं ।”
“अच्छा, फिर तो तुम अपने लिबास पर बहुत पैसा खर्च करते हो । मैं तो समझी थी कि ये सूट वगैरह भी तुम्हें कम्पनी से मिलते हैं ।”
“नहीं जी यह सूट तो मैंने खुद सिलवाया है बड़ी मुश्किल से पैसे इकट्ठे किये थे । यह तो धन्धा ही ऐसा है आशा जी, कि अगर आप अपनी परसनेलिटी बनाकर न रखें तो कोई पास नहीं फटकने दे । इन बढिया कपड़ों की वजह से ही तो मैं बड़े-बड़े साहब लोगों के पास पहुंच भी जाता हूं वर्ना कोई पास नहीं फटकने नहीं दे ।”
आशा चुप हो गई ।
वीर नरीमन रोड से होते हुए वे मैरिन ड्राइव पर आ गये उन्होंने सड़क पार की और मैरिन ड्राइव और समुद्र के बीच में बने बान्ध आ बैठे । बान्ध की दीवारों की कोलाबा से लेकर चौपाटी तक की लम्बाई में जोड़े ही जोड़े बैठे हुए थे पीछे विशाल सागर फैला हुआ था । और उसको छू कर आती हुई ठन्डी हवा बड़ी सुखकर लगती थी ।
“अच्छा अब अपने बारे में कुछ बताओ ।” - एकाएक आशा बोली ।
“क्या बतायें ।” - अशोक एकदम हड़बड़ा कर बोला ।
“तुम इतने हड़बड़ाये क्यों रहते हो ?”
“सच बताऊं ?”
“हां ।”
“मैं केवल आप ही के सामने हड़बड़ा जाता हूं आप ऐसे एकाएक सवाल कर देती हैं जैसे कोई छुपकर हमला कर देता है ।”
“अच्छी बात है अब मैं कोई सवाल करने से पहले तुम्हें नोटिस दे दिया करूंगी ।”
“आप क्या पूछ रही थीं ?
“मैं कह रही थी, तुम अपने बारे में कुछ बताओ ।”
“क्या बताऊं ?”
“तुम रहते कहां हो ?”
“नेपियन सी रोड पर ।” - अशोक ने सहज स्वर से उत्तर दिया ।
“अच्छा ।”
“इसमें हैरानी की क्या बात है ?”
“वहां तो सिर्फ रईस आदमी ही रहते हैं ।”
“सिर्फ रईस आदमी तो कहीं भी नहीं रह सकते । उनकी सेवा के लिये उनके साथ रहने वाले नौकर-चाकर, बेयरे-खानसामे, ड्राईवर वगैरह तो गरीब ही होंगे ।”
“लेकिन तुम तो किसी रईस आदमी के बेयरे-खानसामे या ड्राइवर नहीं हो ।”
“मैं नहीं हूं । मेरा एक दोस्त नेपियन सी रोड की चार नम्बर कोठी के साहब का ड्राइवर है और कोठी के गैरेज के ऊपर रहता है । मैं भी उसी के साथ रहता है ।”
“बम्बई में अकेले रहते हो ?”
“नहीं, मेरे डैडी भी यहीं रहते हैं ।”
“तुम्हारे साथ ?”
“मेरे साथ कैसे रह सकते हैं ? मैं तो तो खुद किसी के साथ रहता हूं ।”
“तो फिर वे कहां रहते हैं ?”
“भायखला में ।”
“तुम भी भायखला में क्यों नहीं रहते ?”
“मैं अपने वर्तमान निवास स्थान पर रहने में ज्यादा सुविधा का अनुभव करता हूं । अमीर लोगों में रहने से अच्छा बिजनेस मिलने की सम्भावना रहती है ।”
“तुम्हारा बाकी परिवार भायखला में रहता है ?”
“बाकी परिवार है ही नहीं । मां मेरी मर चुकी है और मैं अपने बाप का अकेला लड़का हूं ।”
“ओह ।”
अशोक चुप रहा ।
“तुम्हारे डैडी क्या करते हैं ?”
“कुछ नहीं करते । वे दरअसल जिन्दगी की उस स्टेज पर पहुंच चुके हैं जहां इनसान को कुछ करने की जरूरत भी नहीं होती ।”
“अच्छा ! बहुत बूढे हो गये हैं क्या ?”
“हां शरीर तो बूढा हो ही गया है ।”
“यही समझ लीजिये । कभी आप मेरे साथ उनसे मिलने चलियेगा फिर आपको कोई सवाल पूछने की जरूरत नहीं रहेगी ।”
“खाना होटल में खाते हो ?”
“जी हां । मेरी कौन सी अम्मा या बीवी बैठी है जो मुझे पकाकर खिलायेगी ।”
“तुम शादी कर लो ।”
“सोच तो मैं भी रहा हूं कि शादी कर ही लूं । बहुत सहूलियत हो जायेगी फिर ।”
“हां ।”
“लेकिन सवाल तो यह है कि कोई लड़की मुझसे शादी करेगी ?”
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