RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
अगले दिन शाम को अशोक का टेलीफोन आया ।
“अशोक बोल रहा हूं ।” - उसे अशोक का सतर्क स्वर सुनाई दिया ।
“हल्लो, अशोक !” - आशा बोली ।
“आज बहुत डरते फोन किया है आपको ।”
“क्यों ?”
“मुझे भय था कि कहीं आज भी आप कल की तरह मेरी आवाज सुनते ही टेलीफोन को क्रेडिल पर न पटक दें । कल तो आपने यूं भड़ाक से टेलीफोन बन्द कर दिया था जैसे दूसरी ओर से शैतान की आवाज सुनाई दे गई हो ।”
“अशोक, वो दरअसल बात यह थी...”
“कि मुझसे कोई गुस्ताखी हो गई थी ?”
“नहीं तो ।”
“तो फिर ?”
आशा चुप रही ।
“खैर छोड़िये मत बताईये । आप यह बताई आपकी तबीयत कैसी है ?”
“तबीयत !”
“हां कल आपकी तबीयत खराब थी न ?”
“ओह हां ! हां, अब ठीक है तबीयत ।”
“तो फिर आज कहीं मुलाकात हो सकती है ?”
“तुम बोल कहां से रहे हो ?”
“आप से ज्यादा दूर नहीं हूं ।”
“फिर भी कहां हो ?”
“आर्थर रोड जेल में ।”
“क्या ?”
“घबराइये नहीं । गिरफ्तार नहीं हो गया हूं मैं । यहां भी धन्धे, दफ्तर के लिए ही आया हूं ।”
“ओह !”
“फिर ? होती है कहीं मुलाकात आज ?”
“सुनो, तुम यहां या जाओ ।”
“यहां कहां ? दफ्तर में ?”
“नहीं, दफ्तर की तो छुट्टी होने वाली है । नीचे हेनस रोड के बस स्टैण्ड पर ।”
“ओ के मैडम । आता हूं ।”
आशा ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
पांच बजे के बाद जब वह बस स्टैण्ड पर पहुंची तो अशोक वहां पहले से ही मौजूद था ।
अशोक उसे देखकर मुस्कराया ।
“कर आये बिजनेस ?” - आशा ने पूछा ।
“जी हां । कर आया ।”
“कोई बात बनी ?”
“नहीं बनी । बन जायेगी, जल्दी क्या है ? जब तक पचास हजार रुपये के बीमे का नशा नहीं उतर जाता । तब तक मुझे कोई नई पालिसी बेचने की जल्दी नहीं है ।”
आशा मुस्कराई और फिर बोली - “आओ, कहीं चलकर चाय पीयें ।”
“आप इनवाइट कर रही हैं ?” - अशोक बड़े नाटकीय स्वर से बोला ।
“हां, हां, क्यों नहीं । मैं क्या कमाती नहीं । हां, इतना फर्क जरूर है कि मैं तुम्हारी तरह शाह खर्च नहीं हूं ।”
“शाह खर्च क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि मैं तुम्हारी तरह बड़े बड़े होटलों के नाम नहीं ले सकती । मैं तो तुम्हें यहीं हेनस रोड पर ईरानी के रेस्टोरैन्ट की चवन्नी मार्का चाय पिलाऊंगी ।”
“बड़ी कंजूस है आप ?”
“इसमें कंजूसी की क्या बात है ? मेरा नजर में चाय तो सभी जगह एक जैसी होती है ।”
“अच्छी बात है, साहब । आप चाय पिलाइये । चाहे फुटपाथ मार्का पिलाइये ।”
दोनों रैस्टोरेन्ट में आकर बैठ गये ।
आशा ने चाय का आर्डर दे दिया ।
वेटर चाय ले आया ।
दोनों चाय पीने लगे ।
चाय के दौरान में न जाने कब अशोक ने अपना रिकार्ड चालू कर दिया और फिर संसार के हर विषय पर अपनी राय चाहिए करनी आरम्भ कर दी । अपने लगभग एक तरफा वार्तालाप के दौरान में उसने आशा को चुटकले सुनाये, ऐसी हास्यस्पद हरकतें करके दिखाई कि आशा हंसते हंसते बेहाल हो गई ।
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