RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
Chapter 3
सोमवार को आशा दफ्तर पहुंची ।
शनिवार रात की घटनाओं को वह काफी हद तक भूल चुकी थी । लेकिन फेमस सिने बिल्डिंग में प्रवेश करते ही उसे ऐसा अनुभव होने लगा कि उस के द्वारा भुलाई हुई बातें सारी बम्बई को मालूम हो चुकी हैं । हर कोई उसे विचित्र नेत्रों से घूर रहा था । अजनबी भी आशा को विश कर रहे थे । कई लोग तो उसके साथ यूं पेश आ रहे थे कि जैसे उसे वर्षों से जानते हों ।
शुरुआत दफ्तर के चपरासी से हुई ।
आशा को देखकर वह चाबी लगे खिलौने की तहर सीट से उछल कर खड़ा हो गया और एक कान से दूसरे कान तक खींसे निपोरता हुआ बोला - “नमस्ते बीबी जी ।”
“नमस्ते ।” - आशा बोली ।
उसने बड़ी तत्परता से आशा के लिये उसके केबिन का द्वार खोला ।
चपरासी के व्यवहार का अन्तर आशा से छुपा नहीं रहा ।
“आज क्या बात है, भई ।” - आशा केबिन में प्रवेश करते हुई बोली ।
“कुछ नहीं बीबी जी ।” - चपरासी भी उसके साथ साथ ही भीतर आ गया ।
“आज छापे में आपकी तसवीर छपी है ।”
“अच्छा ।”
“जी हां । अशोक बाबू के साथ, जे.पी. सेठ के साथ, अर्चना माथुर के साथ । साथ ही खबर भी छपी है कि आप जल्दी ही अशोक बाबू के साथ शादी करने वाली हैं ।”
“कहां छपा है यह ?” - आशा हैरानी से बोली ।
“फिल्मी धमाका में, दिखाऊं ?”
“दिखाओ ।”
चपरासी लपकता हुआ केबिन से बाहर निकला और उल्टे पांव वापिस लौटा ।
उसने फिल्मी धमाका का नया अंक आशा के सामने रख दिया ।
आशा देव कुमार और उसके द्वारा खींची हुई तसवीरों को एकदम भूल चुकी थी । उसने अखबार देखा । मुख पृष्ठ पर वही सुर्खी छपी हुई थी जिसका अर्चना की पार्टी में देवकुमार ने जिक्र किया था । बैनर हैडलाइन्स में छपा हुआ था ।
फिल्म वर्ल्ड्स ग्रेटैस्ट शोमैन्स ओनली सन ऐन्गैज्ड टू मैरी ए स्टैनो टाइपिस्ट ।
तस्वीरों में आशा के हाथ में पहन हुई हीरे की अंगूठी विशेष रूप से जगमगा रही थी ।
आशा एक ही सांस में नीचे छपा सारा विवरण पढ गई ।
अन्त में उसने अखबार रख दिया और अपना सिर थाम लिया । ‘फिल्मी धमाका’ में देव कुमार ने अनजाने में भी जानबूझ कर भारी शरारत कर दी थी । समाचार पढकर ऐसा मालूम होता था जैसे वह और अशोक बड़े लम्बे अरसे से एक दूसरे से इश्क लड़ा रहे हों और दोनों ने बहुत सोच समझ कर भविष्य में होने वाली शादी का ऐलान किया है । यही नहीं ‘फिल्मी धमाका’ में छपे विवरण से ऐसा मालूम होता था जैसे आशा और अशोक विशेष रूप से अपने सम्बन्ध को लोगों की जानकारी में लाने के लिये ही अर्चना माथुर की पार्टी में गये थे । सबसे बखेड़े वाली बात यह थी कि पार्टी में जेपी सेठ ने खुद घोषित किया था कि आशा उसके बेटे की होने वाली बहू है । इस बात का पार्टी में आशा ने कितना विरोध किया था इसका जिक्र कहीं भी नहीं था ।
चपरासी अखबार ले कर चला गया ।
आशा परेशान हो उठी । उसके और अशोक के सम्बन्ध की पहले ही पिछले दिन जेपी और स्वयं अशोक द्वारा बहुत पब्लिसिटी हो चुकी थी । अशोक तो अपने ड्राइवर तक से उसका परिचय ड्राइवर की होने वाली मालकिन के रूप में करवा चुका था । रही सही कसर फिल्मी धमाका ने पूरी कर दी थी । आशा को चिन्ता थी कि अगर इसी प्रकार हर किसी को इस आधारहीन बात की जानकारी होती गई तो उसके लिये अशोक को शादी से इन्कार करना दूभर हो जायेगा ।
दफ्तर के सारे कर्मचारियों ने बारी बारी और झुण्डों में आकर उसे बधाई दी । आरम्भ में तो आशा ने लोगों को बड़ी नम्रता से यह समझाने की कोशिश की कि वह अशोक से शादी नहीं कर रही है । एक भारी गलतफहमी की वजह से ही इतना बड़ा हंगामा हो गया है लेकिन कौन सुनता था ? हर कोई यही समझता था कि आशा बात को टालने के लिये ऐसा कर रही है । अन्त में आशा ने लोगों को समझाने का प्रयत्न ही छोड़ दिया । जहां तक बधाई का सवाल था, वह चुपचाप सुन लेती थी लेकिन जब लोग और ऊट-पटांग प्रश्न पूछने लगते थे तो इसके लिये स्वयं को नियोजित करना कठिन हो जाता था जैसे -
“शादी कब हो रही है ?”
“इश्क कैसे लड़ा ?”
“किस ने किस को फंसाया ?”
“अभी भी वह दफ्तर में क्यों बैठी है ?”
“कब तक बैठेंगे ?”
“वह अभी से कोलाबा छोड़कर अशोक की कोठी पर रहने लगेगी या शादी तक इन्तजार करेगी ।”
वगैरह...
और एक शिकायत ऐसी थी जो हर जुबान पर जरूर-जरूर आती थी ।
तुमने हमें पहले कभी बताया ही नहीं ।
इस शिकायत के उत्तर में उसका जी चाहता कि वह कह दे - जी हां मेरे से गलती हो गई । लेकिन अगली बार ऐसी गलती नहीं करूंगी । अगली बार जब कोई ऐसी या इससे मिलती जुलती घटना हो गई तो मैं इश्तहार छपवा कर सारी बम्बई में बंटवा दूंगी ।
आखिर में बारी आई सिन्हा साहब की ।
सिन्हा साहब ने उसे अपने दफ्तर में बुलाया सम्मानपूर्वक कुर्सी पर बिठाया - नहीं नहीं डिक्टेशन लेने की कोई जरूरत नहीं है । कहा और फिर मुस्कराते हुए भारी तकल्लुफपूर्ण स्वर से बोले - “तुम ने हमें पहले कभी बताया ही नहीं ।”
“क्या सर ?” - आशा ने सहज स्वर से पूछा ।
“यही कि तुम अशोक को जानती हो और उसके और तुम्हारे सम्बन्ध इस हद तक आगे बढ चुके हैं । शायद यही वजह थी कि तुम ने हम में कभी दिलचस्पी नहीं ली ।”
“ऐसी कोई बात नहीं है सर ।”
“खैर छोड़ो । हमारी भी बधाई स्वीकार करो । अब तो हमें फौरन ही नई सेक्रेटरी तलाश करनी पड़ेगी ।”
“लेकिन मैं नौकरी तो नहीं छोड़ रही हूं ।” - आशा उतावले स्वर में बोली ।
“क्यों बच्चों जैसी बात करती हो !” - सिन्हा हंसता हुआ बोला ।
“एक करोड़पति के लड़के से ब्याह करने के बाद तुम साढे तीन सौ रुपये की नौकरी किया करोगी क्या ? तुम्हारी आंख एक इशारे पर जेपी सेठ तो वह एस्टब्लिशमेंट खरीद लेगा जहां तुम काम करती हो ।”
“सिन्हा साहब एक मिनट मुझे अपनी बात कहने का मौका तो दीजिये ।” - आशा विनयपूर्ण स्वर से बोली ।
“क्या कहना चाहती हो तुम ?” - सिन्हा के स्वर में मजाक का पुट था ।
“आप किसी गलतफहमी में मत पड़िये, मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं । इसलिये आप सचमुच ही कोई नई सैक्रेट्री तलाश करनी आरम्भ मत कीजियेगा ।”
केवल एक क्षण के लिये सिन्हा के चेहरे पर गम्भीरता के लक्षण दिखाई दिये और वह ठठा कर हंस पड़ा ।
“भई वाह ।” - वह हंसता हुआ बोला - “यह बम्बई के फिल्म उद्योग का स्टैन्डर्ड पब्लिसिटी स्टंट कहां से सीख लिया तुमने ?”
“पब्लिसिटी स्टंट !” - आशा के मुंह से निकला ।
“और क्या ? यह तो बम्बई का सबसे अधिक घिसा-पिटा पब्लिसिटी स्टंट है । यानी कि जो बात सारी बम्बई कहती है उस से एक सांस में दस बार की रफ्तार से इनकार किये जाओ । आज सारी बम्बई में तुम्हारा ही चर्चा हो रहा है, मैडम, और तुम हो कि बात की हकीकत को सरासर झुठलाने की कोशिश कर रही हो ।”
“लेकिन मैं सत्य बोल रही हूं ।”
“खैर छोड़ो । यह वक्तव्य तुम प्रेस वालों को देना । फिल्मी क्लाइमैक्स के बाद यह फिल्मी ऐण्टी क्लाइमैक्स उन्हें बहुत पसन्द आयेगा । मुझे तो एक बात बताओ ?”
“पूछिये ।”
“अशोक को फांस कैसे लिया तुमने ।”
आशा का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।
“ओह, आई एम सॉरी ।” - सिन्हा अपने प्रश्न की प्रतिक्रिया देखकर एक क्षमा क्षमायाचनापूर्ण स्वर से बोला - “मेरा यह मतलब नहीं था । बाई गॉड आई डिड नाट मीन ऐनी ओफेन्स आई एम सॉरी अगेन ।”
आशा चुप रही । सिन्हा ही नहीं हर कोई बात को सुनते ही कूदकर इस नतीजे पर पहुंच जाता था जरूर आशा ने ही अशोक को फांसा होगा ।
आशा उठ खड़ी हुई और बोली - “मैं जाऊं ?”
“हां, हां ।” - सिन्हा जल्दी से बोला - “शौक से । शौक से ।”
आशा बाहर निकल आई ।
बारह बजे के लगभग एक लम्बा-तगड़ा आदमी आशा से मिलने आया । उस ने अपने गोद मे भारी भरकम कैमरा लटकाया हुआ था ।
“मेरा नाम कामतानाथ है ।” - उसने बताया ।
“अच्छा ।” - आशा अनिश्चित स्वर से बोली ।
“मैं हिन्दोस्तान का नम्बर वन फोटोग्राफर हूं ।” - कामतानाथ गर्वपूर्ण स्वर से बोला - “हिन्दोस्तान की तमाम फिल्मी पत्रिकाओं में मेरी खींची हुई तस्वीरें छपती हैं । फैनफेयर वाले तो अपने स्टाफ फोटोग्राफरों की तसवीरें रिजेक्ट करके मेरी तसवीरें छापते हैं । बम्बई के सारे बड़े फिल्मी कलाकर तसवीरें खिंचवाने के लिये मुझे विशेष रूप से फोन करके अपनी कोठी पर बुलवाते हैं ।”
“यहां कैसे तशरीफ लाये आप !” - आशा तनिक उकताये स्वर से बोली ।
“मैं अपने स्टूडियो में आप की कुछ तसवीरें खीचना चाहता हूं ।” - कामनानाथ का कहने का ढंग ऐसा था जैसे वह आशा को फोटोग्राफी के लिये सब्जैक्ट चुन कर उस पर भारी अहसान कर रहा हो - “आप पर फीचर तैयार करना चाहता हूं । इसलिये आप से अपॉइंटमेंट चाहता हूं ।”
“कैसे फीचर ?”
“यह अभी मत पूछिये । बाईगाड, आशा जी, मेरे दिमाग में आप की तसवीरों के लिये ऐसे धाकड आइडिया आये हैं कि एक बार जो आपकी तसवीर देख लेगा उसी का उड़नतख्ता हो जायेगा और उसे मजबूरन कहना पड़ेगा कि कामतानाथ मान गये तुम्हें । तुम वाकई हिन्दोस्तान के नम्बर वन फोटोग्राफर हो । कहिये, क्या ख्याल है ।”
और कामतानाथ ने भवें कपाल पर चढा कर आंखें मटकाई ।
“लेकिन आप एकाएक मुझ पर इतने मेहरबान क्यों हो रहे हैं ?”
“क्या मतलब ?”
“आप मेरी तसवीरें क्यों खीचना चाहते हैं ?”
“क्योंकि कि आप बेहद खूबसूरत हैं और आप का चेहरा बेहद फोटोजेनिक है ।”
“आपकी मुझसे इस अक्समात दिलचस्पी की यही एक वजह है ।”
“जी हां ।” - कामता नाथ बोला । उसके स्वर में मौजूद हिचकिचाहट आशा से छुप न सकी ।
“खूबसूरत तो मैं पहले भी थी, चेहरा भी मेरा अब फोटोजेनिक नहीं हुआ है लेकिन पहले तो अपने कभी दर्शन नहीं दिये ।”
“पहले मुझे आपके बारे में जानकारी नहीं थी ।” - कामतानाथ के मुंह से बरबस निकल गया ।
“अब कैसे हो गई है ?”
कामता नाथ को जवाब नहीं सूझा । वह आशा के सीधे हमले से काफी हद तक बौखला गया था । शायद उसने तो सोचा था कि आशा अपने फोटोफीचर के नाम पर बल्लियों उछलने लगेगी और उसका अच्छा खासा अहसान मानेगी कि उतने आशा को तसवीर खींचने के काबिल समझा ।
“आपको एकाएक मेरी जानकारी इसलिये हो गई है ।” - आशा कठोर स्वर से बोली - “क्योंकि अब मैं एक मामूली स्टैनो टाइपिस्ट नहीं रही हूं, क्योंकि मैं करोड़पति फिल्म निर्माता जेपी सेठ की बहू बनने वाली हूं और यह बात पिछले चौबीस घन्टे में बम्बई के फिल्म उद्योग में जंगल की आग की तरह फैल गई है । आपको मेरी खूबसूरती में और मेरे फोटोजेनिक फेस में इतनी दिलचस्पी नहीं है, जितनी दिलचस्पी आपको मेरे सम्भावित रुतबे में है । कहिये, यही बात है ।”
“यही बात है ।” - कामतानाथ कठिन स्वर से बोला ।
आशा फिर नहीं बोली ।
कामतानाथ कुछ क्षण पिटा हुआ सा मुंह लेकर बैठा रहा ।
दूसरी बार जब कामतानाथ बोला तो उसके स्वर में से दबदबे और आत्मप्रशंसा का पुट एकदम गायब हो चुका था ।
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