RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“देखिये, मैडम ।” - वह बड़े दीन स्वर से बोला - “आज की तारीख में आपका और जेपी सेठ के लड़के अशोक का सम्बन्ध बम्बई की सबसे सैन्सेशनल न्यूज है । फिल्मी अखबारों में आपकी न्यूज भी छपेगी और तसवीरें भी । आपके पास पहुंचने वाला मैं पहला फोटोग्राफर हूं लेकिन विश्वास कीजिये अभी यहां कई आयेंगे । आम तौर पर फिल्मी अखबारों वाले किसी विशेष समाचार को कवर करने वाली उन्हीं तसवीरों को छाप देते हैं जो उनकी टेबल पर सबसे पहले जाती है । इसीलिये मैं सबसे पहले आपके पास पहुंचा हूं । मैडम, आपको तो कई फोटोग्राफरों को ओब्लाइज करना पड़ेगा । इसलिये आपको तो कुछ फर्क पड़ेगा नहीं, मुझे चार पैसे मिल जायेंगे ।”
“लेकिन मैंने तसवीरें नहीं खिंचवानी हैं, मैंने न्यूज नहीं बनना है ।” - आशा कड़े स्वर से बोली ।
“देखिये, नाराज मत होइये । अगर आपकी नाराजगी की वजह मेरा व्यवहार है तो मैं आपसे हजार माफी चाहता हूं । अगर आप इस समय मुझसे बात करने के मूड में नहीं हैं तो मैं फिर आ जाऊंगा, लेकिन मुझ पर इतना अहसान जरूर कीजिये कि मेरे इलावा किसी दूसरे फोटोग्राफर को अप्वायन्टमैन्ट मत दीजियेगा । इतना जरूर याद रखियेगा कि सब से पहले मैं आपके पास आया था ।”
आशा चुप रही ।
“अच्छा नमस्ते, आशा जी ।” - कामतानाथ उठ खड़ा हुआ ।
आशा ने छुटकारे गहरी सांस ली ।
उसी क्षण केबिन में चपरासी प्रविष्ट हुआ । चपरासी के साथ लगभग दस वर्ष का एक मैला कुचैला लड़का था ।
“बीबी जी ।” - चपरासी बोला - “यह एक छोकरा आपको पूछ रहा है ।”
“क्या है ?” - आशा ने छोकरे से पूछा ।
“आपको यह पैकेट देने का है ।” - छोकरा बोला और उसने एक भूरे कागज में लिपटा हुआ छोटा सा पैकेट आशा के सामने रख दिया ।
“किसने भेजा है तुम्हें ?” - आशा ने पूछा ।
“अपुन को उसका नाम नहीं माजूम ।” - छोकरा बोला - “अपुन तो सामने ईरानी की चाय की दुकान में वेटर है । साब अपुन को बोला कि यह पैकेट ऊपर दूसरे माले में सिन्हा एन्ड सन के दफ्तर में आशा बीबी को दे के आने का है । सौ अपुन चला आया । इतना सा काम का साबने अपुन को रुपया दियेला है ।”
आशा उत्सुकतापूर्ण ढंग से पैकेट खोलने लगी ।
आशा का ध्यान अपनी ओर से बंटते देखकर छोकरा चुपचाप खिसक गया ।
भूरे कागज की डबल पैकिंग हटा देने के बाद जो वस्तु प्रकट हुई वह सफेद कागज में लिपटा हुआ एक चाकलेट का पैकेट था ।
आशा का दिल धड़कने लगा । उसने कांपते हाथों से चाकलेट की बार को कागज से अलग किया और खोल लिया ।
कागज पर अमर के चिर परिचित हैड राइटिंग में में था:
मुबारक हो । अगूठी बहुत खूबसूरत थी । या शायद आप की उंगली में थी, इसलिये खूबसूरत लग रही थी । आशा है, जल्दी ही दुल्हन के लिबास में भी आपकी तसवीर देखने को मिलेगी ।
आशा ने कागज को उलट पलट कर देखा । और कुछ नहीं लिखा था ।
एकाएक वह अपनी सीट से उठी और बाहर की ओर भागी । दफ्तर के बाकी लोग आश्चर्य से उसे देखने लगे । आशा लपकती हुई बाहर निकली और सीढियों के रास्ते नीचे भागी ।
छोकरे को उसने इमारत के मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय पकड़ लिया ।
“क्या है, बीबी जी ?” - छोकरा हड़बड़ाकर बोला - “क्या कमाल है ?”
“सुनो ।” - आशा हांफती हुई बोली - “वो साहब कहां हैं जिन्होंने तुम्हें पैकेट दिया था ?”
“वह साहब तो तभी चला गया था ।” - छोकरा बोला ।
“कहां ?”
“अपुन को क्या मालूम ?”
“शायद चाय की दुकान में ही ?”
“नहीं है, बाबा, अपुन ने खुद उसको बस में चढते देखा था ।”
लेकिन फिर भी आशा ईरानी के रेस्टोरेन्ट में पहुंची ।
अमर वहां नहीं था ।
आशा ने हेनस रोड के दोनों ओर दूर दूर तक द्दष्टि दौड़ाई । अमर उसे कहीं दिखाई नहीं दिया ।
आशा भारी कदमों से चलती हुई वापिस लौट आई ।
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