RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“नमस्ते जी ।” - आशा उसके समीप पहुंचकर शिष्ट स्वर से बोली ।
“आओ ।” - माथुर हाथ बढाकर दूसरी ओर का द्वार खोलती हुई बोली ।
आशा हिचकिचाई ।
“अरे आओ न ।” - अर्चना माथुर आग्रहपूर्ण स्वर से बोली - “घर तो जाओगी न !”
आशा कार के सामने से घूमकर दूसरी दिशा में आई और कार में अर्चना माथुर की बगल में आ बैठी ।
अर्चना माथुर ने कार स्टार्ट कर दी ।
कार जेकब सर्कल की ओर बढ गई ।
“तुम तो कोलाबा रहती हो न ?”
“जी हां ।”
“अशोक से दुबारा मुलाकात हुई तुम्हारी ?”
“नहीं ।”
“तुम्हारी बहुत तारीफ करता है ।”
आशा चुप रही ।
“तुम से बहुत मुहब्बत करता है । जेपी के सामने अड़ गया कि अगर शादी करूंगा तो आशा से नहीं तो उम्र भर कुंआरा बैठा रहूंगा । अशोक जेपी का इकलौता लड़का है । जेपी ने आज तक अशोक की अच्छा नहीं टाली लेकिन फिर भी जेपी यह नहीं चाहता था कि अशोक किसी कामगर [साधारण लड़की] से शादी करे । लेकिन अब वह खुश मालूम होता है । तुम्हारी सूरत भर देख लेने से, लगता है, उसकी सारी शिकायतें मिट गई हैं, सारे एतराज खतम हो गये हैं । तुम वाकेई बहुत खुशकिस्मत हो ।”
आशा चुप रही ।
“तुम बोलती बहुत कम हो ।” -अर्चना माथुर एक उचटती हुई दृष्टि उस पर डालकर बाहर सड़क पर झांकती हुई बोली ।
“नहीं तो ।” - आशा शिष्ट स्वर से बोली ।
“मुझ से नाराज हो ?”
“आप से क्यों नाराज होने लगी भला मैं ।”
“अरी, बहना, मेरी किसी बात का बुरा मत मानना । ऊपर से मैं तुम्हें कुछ भी दिखाई दूं लेकिन दिल की बड़ी साफ औरत हूं मैं । यह तो कम्बख्त फिल्म लाइन ही ऐसी है कि हर वक्त आदमी का भेजा फिरा रहता है । व्यस्तता इतनी रहती है कि दो घड़ी चैन से सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती । हर समय दिमाग डिस्टर्ब रहता है और उसी झुंझलाहट में मुंह से पता नहीं किसके लिये क्या निकल जाता है । अगर मैंने तुमसे कभी कोई ऊल-जलूल बात कह दी हो या भविष्य में कभी कह दूं तो मुझे माफ कर देना ।”
“आप तो शर्मिन्दा कर रही हैं मुझे ।” - आशा धीरे से बोली । एकाएक वह बड़ी बेचैनी का अनुभव करने लगी थी ।
अर्चना माथुर कुछ नहीं बोली । कितनी ही देर वह चुपचाप गाड़ी चलाती रही ।
“तुम मेरा एक काम करो, बहना ।” - एकाएक वह बोली ।
“क्या ?” - आशा ने संशक स्वर से पूछा ।
“करोगी ?”
“अगर मेरे करने लायक हुआ तो जरूर करूंगी ।”
“तुम्हारे करने लायक है ।”
“बताइये ।”
“मैंने लोनावला में एक फार्म खरीदा है । फार्म के साथ मैंने एक छोटा सा बंगला बनवाया है । कल मैं वहां पहली बार जा रही हूं । वहां मैंने एक पार्टी का आयोजन किया है । फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी जाने-माने लोग कल शाम को वहां आ रहे हैं । जेपी सेठ और अशोक भी आ रहे हैं । कल तुम भी वहां आना । आओगी न ?”
“लेकिन लोनावला तों बहुत दूर है ।”
“तुम फासले की चिन्ता मत करो । तुम्हें वहां पहुचने में या वहां से लौटने में तकलीफ न हो, इस बात का इन्तजाम मैं कर दूंगी ।”
“लेकिन मैं ऑफिस से छुट्टी नहीं लेना चाहती ।”
“वैसे तो तुम्हें चाहिये कि अब तुम आफिस को भाड़ में झोंक दो लेकिन अगर कोई टैक्नीकल दिक्कत है तो तुम्हें छुट्टी लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । पांच बजे के बाद या अशोक तुम्हें लेने आ जायेगा या मैं गाड़ी भेज दूंगी ।”
“अच्छा !” - आशा अनिच्छापूर्ण स्वर से बोली ।
“लोनावला में मैं किसी बहाने से जेपी के सामने उसकी नई फिल्म सपनों की दुनिया का जिक्र शुरू करवा दूंगी । उस सन्दर्भ में तुम एक बार जेपी के सामने यह कह देना कि इतने ऊंचे बजट पर बनने वाली फिल्म में अर्चना माथुर ही हीरोइन होनी चाहिए ।”
आशा चुप रही ।
“फिर कभी एक बार तुम मेरे इन्टरेस्ट की बात जेपी से या अशोक से अकेले में कह देना । बस, मेरा काम बन जायेगा ।”
उसी क्षण अर्चना माथुर की गाड़ी वेलिंगटन सर्कल पर पहुंची और स्ट्रेंड सिनेमा के लिये भगतसिंह रोड पर जाने के स्थान पर अपोलो पायर रोड की ओर घूम गई ।
“इधर कहां ?” - आशा ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“ताजमहल होटल में चलते हैं” - अर्चना माथुर बोली - “कुछ चाय वाय पियंगे ।”
“लेकिन...”
“जल्दी क्या है तुम्हें ? घर जाकर भी क्या करोगी ?”
आशा चुप हो गई ।
“फिर ठीक है न ? कल लोनावला आ रही हो न ?”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
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