Hindi Antarvasna - आशा (सामाजिक उपन्यास)
10-12-2020, 01:30 PM,
#43
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
अगली सुबह तिवारी जी सचमुच ही आशा के घर पहुंच गये । आशा उन्हें देखकर हैरान हो गई ।
“आप यहां कैसे पहुंच गये ?” - आशा बोली ।
“बस, ढूंढता चला आया ।” - तिवारी जी मुस्कराकर बोले ।
“आइये ।” - आशा घर से एक ओर हटती हुई बोली ।
तिवारी जी चेहरे पर विनयपूर्ण मुस्कराहट लिये भीतर प्रविष्ट हो गये ।
“तशरीफ रखिये ।” - आशा ने एक कुर्सी की ओर संकेत किया ।
“धन्यवाद ।” - तिवारी जी निर्दिष्ट कुर्सी पर बैठते हुए बोले ।
“आप चाय पियेंगे ?”
“पी लूंगा !”
उसी क्षण सरला चाय को केतली और दो प्याले लेकर किचन में से निकली ।
“आहा, तिवारी जी हैं ।” - सरला तिवारी जी पर दृष्टि पड़ते ही बोली ।
तिवारी जी मुस्कराये ।
“आप इधर कैसे भूल पड़े, तिवारी जी !” - सरला हाथ का सामान मेज पर रखती हुई बोली ।
“आशा से मिलने आया हूं ।” - तिवारी जी तनिक नर्वस स्वर से बोले - “तुम भी आशा के साथ ही रहती हो ?”
“हां । अरसा हो गया ।”
“तुम तिवारी जी को जानती हो, सरला ?” - आशा ने पूछा ।
“अरे, खूब अच्छी तरह से जानती हूं ।” - सरला बोली - “आज तक जो मुझे फिल्मों में सबसे लम्बा रोल मिला है, उसकी टोटल ड्यूरेशन दस मिनट थी और वह रोल लगभग एक साल पहले मुझे तिवारी जी ही ने दिया था अपनी फिल्म में क्यों तिवारी जी ?”
“हां ।” - तिवारी जी स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाते हुए बोले ।
“चाय तिवारी जी भी पियंगे ।” - आशा ने बताया ।
“जरूर पियेंगे ।” - सरला बोली । उसने दो प्यालों में चाय डालकर आशा और तिवारी जी के सामने रख दी । और फिर किचन में जाकर एक कप और एक प्लेट और ले आई ।
सरला ने भी अपना कप भरा और गर्म-गर्म चाय का एक लम्बा घूंट से नीचे उतारने के बाद आशा से सम्बोधित हुई - “बहुत भले आदमी हैं, तिवारी जी । बहुत ऊंचे दर्जे की फिल्म बनाते हैं लेकिन तकदीर की मार है फिल्म बाक्स आफिस पर पिट जाती है । पिछले साल इन्होंने तीन फिल्में बनाईं, तीनों का यही हाल हुआ । अखबार में फिल्मों की तारीफ छपी, प्रशंसा पत्र भी मिले लेकिन फिल्मों ने बिजनेस नहीं किया । अब हालत यह है कि कोई इनकी नई फिल्म पर पैसा लगाने के लिये तैयार नहीं है । बेचारे बड़े परेशान हैं आजकल ।”
आशा ने आश्चर्यपूर्ण ढंग से तिवारी जी की ओर देखा ।
तिवारी जी के चेहरे की रंगत बदल गई थी । सरला की वाकचलता ने उन्हें आशा के सामने एक्सपोज करके रख दिया था ।
कितनी ही देर कोई कुछ नहीं बोला ।
अन्त में तिवारी जी ने चाय पीकर खाली कप मेज पर रख दिया और आशा से बोले - “फिर तुमने सोचा कुछ ?”
“तिवारी जी” - आशा गम्भीर स्वर से बोली - “मैं...”
“किस बारे में ?” - सरला बीच में बोल पड़ी - “किस्सा क्या है ?”
“तिवारी जी मुझे अपनी नई फिल्म में हीरोइन का रोल देना चाहते हैं ।” - आशा ने बताया ।
“पैसे का इन्तजाम हो गया तिवारी जी ?” - सरला ने पूछा - “कोई फाइनेन्सर भिड़ गया क्या ?”
तिवारी जी बगलें झांकने लगे । उन्होंने उत्तर नहीं दिया ।
“किस्सा क्या है तिवारी जी ?” - सरला आग्रहपूर्ण स्वर से बोली - “देखिये, अगर पटड़ी कहीं बैठ रही है तो मेरे लिये भी बड़ा सा रोल निकालियेगा इस बार ।”
तिवारी जी कुछ क्षण चुप रहे और फिर गहरी सांस लेकर बोले - “वह सब तो तभी होगा जब तुम्हारी सहेली हां करेगी ।”
“आशा ?”
“हां !”
“आशा की हां का फिल्म के लिये फाइनान्स से क्या सम्बन्ध है ?”
“बड़ा गहरा सम्बन्ध है” - तिवारी जी धीरे से बोले - “अगर आशा मेरी फिल्म की हीरोइन बनना स्वीकार कर लेगी तो फाइनान्स मैं जेपी सेठ से हासिल कर लूंगा । मेरी फिल्म में पैसा लगाना जेपी सेठ के लिये मामूली बात है । जितने पैसे में उसकी ऊंचे बजट वाली फिल्म का एक सैट तैयार होता है उतने में तो मेरी फिल्म बन जाती है । मुझे विश्वास है अगर आशा मेरी फिल्म में थोड़ी सी दिलचस्पी जाहिर कर देगी तो जेपी सेठ इनकार नहीं करेंगे । मेरी खातिर नहीं, आशा की खातिर इनकार नहीं करेंगे ।”
“तो यह बात है ।” - आशा के मुंह से निकल गया ।
तिवारी जी चुप रहे ।
“कल जब आप मेरे पास आये थे” - आशा बोली - “तो मुझे इतनी समझ तो आ गई थी कि आप मेरे और अशोक के सम्बन्ध की चर्चा सुन कर ही मेरे पास खिंचे चले आये हैं लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि उस सम्बन्ध के सन्दर्भ में मुझे अपने फिल्म की हीरोइन बनाकर आपको फायदा क्या होगा ? मुझे अब समझ में आया ।”
तिवारी जी सिर झुकाये चुपचाप बैठे रहे ।
“तिवारी जी ।” - आशा एकदम बदले स्वर से बोली - “अभिनेत्री बनने का शौक न मुझे पहले था, न अब है । जो बात मैंने कल दफ्तर में आपसे कही थी, वही बात मैं दुबारा आपके सामने दोहरा रही हूं । फिलहाल मेरा अशोक से शादी करने का कोई इरादा नहीं है । भविष्य में अगर मेरा इरादा बदल गया और कभी मैं ऐसी स्थिति में हुई कि मैं किसी की सहायता कर सकूं तो मैं आपसे वादा करती हूं कि आपकी सहायता जरूर करूंगी ।”
“लेकिन बेटी ।” - तिवारी जी बोले - “तुम ऐसा महसूस नहीं करती हो कि अशोक जैसे लड़के से शादी न करने का इरादा करके तुम भारी गलती कर रही हो । अगर तुम अशोक से शादी...”
“तिवारी जी” - आशा तनिक कठोर स्वर से बोली - “यह मेरा निजी मामला है, इसमें मुझे किसी की राय की जरूरत नहीं । मैं अपने भविष्य का फैसला खुद ही करना चाहती हूं ।”
तिवारी जी क्षमा याचना करते हुए चुप हो गये ।
सरला ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर होंठ भींच लिये ।
एकाएक तिवारी जी उठ खड़े हुए और बोले - “अच्छा, मैं चलता हूं ।”
“नमस्ते ।” - आशा बोली ।
तिवारी जी भारी कदमों में चलते हुए कमरे से बाहर निकल गये ।
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