RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“वजह ?”
“मिस्टर पाटिल, आप इस बाबत कुछ ज्यादा ही सवाल कर रहे हैं !”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” - पाटिल लापरवाही से बोला - “आपको ऐसा लगता है तो... तो लीजिये, मैं खामोश हो जाता हूं ।”
देवसरे के कॉटेज के जालीदार दरवाजे के पीछे से मुकेश माथुर वो तमाम नजारा कर रहा था अलबत्ता उस घड़ी उसे मालूम नहीं था कि बाहर मैनेजर के साथ मौजूद शख्स देवसरे का दामाद विनोद पाटिल था । देवसरे उस वक्त उसके पीछे ड्राइंगरूम में मौजूद था । उसका उस रोज का फिशिंग का साथी मेहर करनानी भी वहां मौजूद था । दोनों उस घड़ी जिन एण्ड टॉनिक का आनन्द ले रहे थे ।
देवसरे अपनी उम्र के लिहाज से एक तन्दुरुस्त शख्स था जिसे प्रत्यक्षतः कोई अलामत, कोई बीमारी नहीं थी । वो जिस्मानी तौर से नहीं, जेहनी तौर से बीमार था इसलिये उस पर वो पाबन्दियां लागू नहीं होती थीं जो कि किसी जिस्मानी तौर पर बीमार शख्स पर होना लाजमी होता था । लिहाजा वो शाम की चाय की जगह जिन एण्ड टॉनिक भी एनजाय कर सकता था ।
देवसरे एक कामयाब व्यवसायी था और अपनी व्यवसायिक प्रवृत्ति की वजह की वजह से ही मिजाज का कठोर, बेगरज, बेएतबार और कदरन बेरहम था । उसकी जिन्दगी की कभी कोई कमजोर कड़ी थी तो वो उसकी बिन मां की बेटी सुनन्दा थी जिसकी मां बन के उसने परवरिश की थी । लेकिन फिर भी पता नहीं कहां कसर रह गयी थी कि जब वो मुम्बई में एलफिंसटन कॉलेज में पढती थी तो विनोद पाटिल नामक एक नाकाम थियेटर एक्टर से दिल लगा बैठी थी और वो दिल की लगी उसकी मर्जी के खिलाफ कोर्ट मैरेज की वजह बनी थी । देवसरे वो झटका किसी तरह झेल ही चुका था जबकि उसे अपनी जिन्दगी का सबसे बड़ा झटका लगा ।
सुनन्दा एक रोड एक्सीडेंट में - जो कि सरासर उसके नामुराद खाविंद का लापरवाही से हुआ था - जान से हाथ धो बैठी ।
वो ही एक झटका था जो देवसरे बर्दाश्त न कर सका, जिसने उसके मुकम्मल वजूद को तिनका तिनका करके बिखरा दिया । तब उसे फौरन नर्सिंग होम में भरती न कराया गया होता तो शायद वो दीवारों से सिर टकरा टकरा के मर जाता । नार्सिंग होम में वो एक मनोचिकित्सक की देखरेख में रखा गया कुछ दिनों बाद जिसने उसकी हालत में सुधार की बड़ी तसल्लीबखश रिपोर्ट दाखिलदफ्तर की ।
जल्दी ही उस तसल्लीबख्श रिपोर्ट का खोखलापन उजागार हो गया ।
देवसरे ने अपने नर्सिंग होम के आठवीं मंजिल के कमरे की बालकनी से बाहर कूद जाने की कोशिश की ।
ऐन वक्त पर नर्स वहां न पहुंच गयी और उसने बला की फुर्ती दिखाते हुए पीछे से उसकी कमीज न जकड़ ली होती तो देवसरे अपनी जन्नतनशीन बेटी के रुबरु उसका हालचाल पूछ रहा होता ।
फौरन उसे ग्राउन्ड फ्लोर के एक कमरे में शिफ्ट किया गया जहां तीन दिन वो ठीक रहा फिर एक रात नर्सिंग स्टेशन से सिडेटिव की गोलियों से तीन चौथाई भरी एक शीशी चुराने में और तमाम गोलियां निगल जाने में कामयाब हो गया । तब भी किसी तरीके से उसकी वो हरकत नाइट डयूटी पर तैनात हाउस सर्जन की जानकारी में आ गयी और तत्काल स्टोमक पम्प से उसका पेट खाली करके उसे बचा लिया गया ।
उस दूसरी वारदात के बाद नर्सिग होम वालों ने हाथ खड़े कर दिये तो उसे उसे मानसिक विकारों के स्पैशलिटी हस्पताल ट्रॉमा सेन्टर में शिफ्ट किया गया जहां की दो महीने की मेडिकल और साईकियाट्रिक देखभाल के बाद वो नार्मल हुआ । तब डाक्टरों ने उसे सलाह दी कि वो किसी ऐसे कारोबार में मन लगाये जो कि आमदनी का जरिया हो न हो, मसरुफियत और मनबहलाव का जरिया बराबर हो ।
नतीजतन वो उस हॉलीडे रिजॉर्ट में पहुंच गया जो कि उसकी बेटी की मौत से पहले से उसकी मिल्कियत था । डॉक्टरों ने भले ही उसकी ‘कम्पलीट रिकवरी’ को सर्टिफाई कर दिया था लेकिन उसके सालीसिटर्स और वैलविशर्स आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेटस को फिर भी अन्देशा था कि अभी वो फिर आत्महत्या की कोशिश कर सकता था । वो ऐसी कोशिश न कर पाये, इसी बात को सुनिश्चित करने के लिये मुकेश माथुर को उसके साथ अटैच किया गया था क्योंकि, बकौल, बड़े आनन्द साहब, उसकी वकालत अभी बहुत कमजोर थी लेकिन एक उम्रदराज शख्स की निगाहबीनी करने का काम तो वह कर ही सकता था या वो भी नहीं कर सकता था ।
गोली लगे कम्बख्त को - मुकेश माथुर दांत पीसता सोचता रहा था - जो वकालत और चौकीदारी में कोई फर्क ही नहीं समझना चाहता था, जिसको इस बात भी लिहाज नहीं हुआ था कि उसकी शादी हुए सिर्फ छः महीने हुए थे और उसकी बीवी और चार महीनों पहला बच्चा जनने वाली थी ।
बहरहाल उस रिजॉर्ट ने, वहां के खूबसूरत बीच ने और आसपास उपलब्ध मनोनंजन के साधनों ने देवसरे पर अपना अच्छा असर दिखाया था; वो टेनिस खेलने में, फिशिंग में और नजदीकी ब्लैक पर्ल में काडर्स खेलने या रौलेट व्हील पर दांव लगाने में मशगूल रहता था और साफ जाहिर होता था कि अपनी बेटी के साथ हुई ट्रेजेडी को वो धीरे धीरे भूलता जा रहा था । इसका ये भी सबूत था कि अब वो माथुर के हमेशा ‘अपनी पूंछ से बन्धे रहने’ से एतराज करने लगा था और ऐसी किसी तवज्जो को गैरजरूरी बाताने लगा था । और तो और वो लोगों के सामने मुकेश माथुर को ‘मेल नर्स’ या ‘शरीकेहयात’ कह कर हलकान करने लगा था । जवाब में अभी कल ही मुकेश माथुर ने बड़ी संजीदगी से उसे समझाया था कि उसकी सोहबत को दरकिनार करने का अख्तियार उसे नहीं था, अगर वो उससे इतना ही बेजार था तो उस बाबत बड़े आनन्द साहब से बात करनी चाहिये थी जो कि उसके दोस्त और मोहसिन थे और माथुर के बॉस थे । उसने ये तक कहा था कि अगर देवसरे उसे वाहियात, नाकाबिलेबर्दाश्त असाइनमेंट से निजात दिला पाता तो वो जाती तौर पर उसका अहसानमन्द होता । जवाब में अगली सुबह ही देवसरे ने नकुल बिहारी आनन्द से बात करने की पेशकश की थी लेकिन पता नहीं कि उसने ऐसा किया था या नहीं ।
बहरहाल अब खुद वो भी अपनी रिपोर्ट पेश कर सकता था कि देवसरे अब बिल्कुल ठीक था और उसे किसी कि मुतवातर निगाहबीनी की जरुरत नहीं थी ।
उस रमणीय बीच रिजॉर्ट से जल्दी निजात पाने की एक वजह और भी थी ।
उस वजह का नाम रिंकी शर्मा था ।
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