RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
मुकेश ने सहमति में सिर हिलाते हुए कागज उठाया और उसे खोल कर उसका गम्भीर अध्ययन किया ।
“ये” - आखिरकार वो बोला - “आपकी बेटी की इसके हक में ऐन चौकस वसीयत है ।”
“पक्की बात ?” - देवसरे संजीदगी से बोला ।
“जी हां ।”
“हूं ।”
वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बड़े यत्न से अपने स्थान से उठकर ड्राईंगरूम और बैडरूम के बीच का खुला दरवाजा लांघकर अपने बैडरूम में पहुंचा । वो बैडरूम की सामनी दीवार के करीब पहुंचा जो कि सागवान की चमचमाती लकड़ी की पैनलों से ढंकी हुई थी, उसने वहां कहीं लगा एक खुफिया बटन दबाया जिसके नतीजे के तौर पर जमीन से चार फुट ऊंची दो गुणा दो फुट की एक पैनल अपने स्थान से हट गयी और उसके पीछे से एक वाल सेफ नुमायां हुई । सेफ पर एक पुश बटन डायल लगा हुआ था, उसने उस पर उसका कम्बीनेशन पंच किया और उसका हैंडल घुमा कर सेफ का दरवाजा खोला । सेफ के भीतर एक और दरवाजा था जिसे उसने अपनी जेब से एक चाबी निकाल कर खोला । यूं खुले दूसरे दरवाजे से भीतर हाथ डाल कर उसने एक दस्तावेज बरामद की और उसे मुकेश को सौंप दिया ।
“जिस जमीन पर ये रिजॉर्ट खड़ा है” - फिर वो यूं बोला जैसे किसी व्यक्तिविशेष से सम्बोधित न हो - “वो मैंने कई साल पहले कौड़ियों के मोल खरीदी थी । तीन साल पहले मैंने इस पर टूरिस्ट रिजॉर्ट बनाने का मन बनाया था तो ऐसा मैंने कमाई को मद्देनजर रख कर नहीं, अपनी और अपने यार दोस्तों और सगे सम्बन्धियों की सुविधा को मद्देनजर रख कर किया था । ये काम मुझे तब इसलिये भारी नहीं पड़ा था क्योंकि तब जो कुछ किया था मेरे लिये भरपूर वफादारी दिखाते हुए माधव घिमिरे ने किया था । उसी वफादारी के ईनाम के तौर पर मैंने घिमिरे को मैनेजर बनाया था और सुनन्दा की तरह उसे भी कमाई के एक चौथाई हिस्से का हकदार बनाया था । अब तुम इस खुशफहमी से मुब्तला यहां आन पहुंचे हो कि सुनन्दा का एक चौथाई का हिस्सा तुम हथिया सकते हो ।”
“खुशफहमी !” - पाटिल विद्रुपपूर्ण स्वर में बोला ।
“यकीनन खुशफहमी । जो कि अभी दूर होती है ।” - वो मुकेश की तरफ घूमा - “वकील साहब, तुम्हारे हाथ डाकूमेंट है वो इन्हीं शर्तों की तसदीक करता एग्रीमेंट है । जरा इस खुशफहम और लालच के हवाले शख्स को बताओ कि एग्रीमेंट क्या कहता है ?”
तब तक मुकेश सरसरी तौर पर एग्रीमेंट की तहरीर से वाकिफ हो चुका था ।
“इसमें रिजॉर्ट के मुनाफे के चार हिस्सों में बंटवारे का प्रावधान है” - मुकेश बोला - “जिनमें से दो हिस्से देवसरे साहब के हैं, एक हिस्सा माधव घिमिरे का है, एक हिस्सा सुनन्दा देवसरे का है - जो कि अब सुनन्दा की वसीयत के तहत उसके पति विनोद पाटिल का है - हिस्से की अदायगी साल में चार बार हर तिमाही के मुकम्मल होने पर होने का प्रावधान है । साथ में ये कनफर्मेशन है कि प्रापर्टी के मालिकाना हकूक इनकी जिन्दगी में सिर्फ और सिर्फ बालाजी देवसरे के होंगे अलबत्ता इनकी मौत की सूरत में प्रापर्टी के पच्चीस पच्चीस फीसदी हिस्से पर घिमिरे और - अब - पाटिल अपना हक कायम कर सकते हैं ।”
“क्या मतलब हुआ इसका ?” - पाटिल हकबकाये स्वर में बोला ।
“मतलब समझ, बेटा ।” - देवसरे व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “इतना नासमझ तो नहीं दिखाई देता तू । या शायद मैं सूरत से धोखा खा रहा हूं ।”
“मिस्टर देवसरे, पहेलियां न बुझाइये, कानूनी नुक्ताचीनी न कीजिये, न किसी दूसरे से कराइये और साफ बोलिये क्या कहना चाहते हैं !”
“ठीक है, साफ सुनो । मेरे जीते जी तुम इस प्रापर्टी के मालिकाना हकूक में हिस्सेदार नहीं बन सकते, तुम सिर्फ इस साल की पहली तिमाही के मुनाफे में से पच्चीस फीसदी का हिस्सा क्लेम कर सकते हो जो मैं तुम्हारे मुंह पर मारने को तैयार हूं लेकिन आइन्दा तुम्हें वो हिस्सा भी नहीं मिलेगा ।”
“क्यों ? क्यों नहीं मिलेगा ?”
“क्योंकि मैं ऐसा इन्तजाम करूंगा ।”
“क्या करेंगे आप ?”
“अभी पता चलता है । माथुर, जरा नेशनल बैंक के मैनेजर अशोक पटवर्धन को फोन लगाओ । इस वक्त” - देवसरे ने वाल क्लॉक पर निगाह डाली - “वो अपने घर पर होगा ।”
सहमति में सिर हिलाता मुकेश माथुर टेलीफोन के हवाले हुआ । बैंक का मैनेजर जब लाइन पर आ गया तो उसने रिसीवर देवसरे को थमा दिया ।
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