RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
बालाजी देवसरे टी.वी. पर सात बजे की खबरें देख रहा था जबकि ऑफिस का एक कर्मचारी वहां पहुंचा ।
देवसरे की वो नियमित रुटीन थी, भले ही दुनिया इधर से उधर हो जाये वो शाम सात बजे और ग्यारह बजे की खबरें देखने के लिये अपने कॉटेज में जरूर मौजूद होता था । अपना शाम का हर प्रोगाम - भले ही वो डिनर का हो या ब्लैक पर्ल क्लब जाने का हो - वो इस बात को खास ध्यान में रख कर बनाता था कि खबरें देखने के उसके उस दो बार के प्रोग्राम में कोई विघ्न न आये ।
सात बजे वो ‘आजतक’ पर हिन्दी की खबरें देखता था और ग्यारह बजे ‘स्टार-न्यूज’ पर अंग्रेजी की ।
“आपकी” - कर्मचारी मुकेश से बोला - “ऑफिस के टेलीफोन पर ट्रंककॉल है ।”
“कहां से ?” - मुकेश ने पूछा ।
“मुम्बई से ।”
तत्काल उसके जेहन पर दो अक्स उबरे; एक उसके बॉस का और दूसरा उसकी बीवी का ।
“कौन है ?” - उसने पूछा ।
“पता नहीं साहब । नाम नहीं बताया ।”
“बोलने वाला कोई आदमी था या औरत ?”
“औरत ।”
फिर तो जरूर मोहिनी की कॉल थी ।
“कॉल सुनकर आता हूं ।” - वो देवसरे से बोला ।
देवसरे ने बिना टी.वी. स्क्रीन पर से निगाह हटाये सहमति में सिर हिला दिया ।
मुकेश ने ऑफिस में जाकर कॉल रिसीव की ।
“मिस्टर माथुर ?” - पूछा गया ।
“स्पीकिंग ।”
“लाइन पर रहिये, बड़े आनन्द साहब बात करेंगे ।”
मुकेश ने बुरा सा मुंह बनाया । जो आवाज वो सुन रहा था, वो उसकी बीवी की नहीं उसके बॉस की सैक्रेट्री श्यामली की थी ।
“होल्डिंग ।” - वो बोला ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“माथुर !” - फिर एकाएक उसके कान में नकुल बिहारी आनन्द का रोबीला, कर्कश स्वर पड़ा ।
“यस, सर ।” - मुकेश तत्परता से बोला - “गुड ईवनिंग, सर ।”
“क्या कर रहे हो ?”
“आपकी कॉल सुन रहा हूं, सर ।”
“अरे, वो तो मुझे भी मालूम है । ऐसी अन्डरस्टुड बात कहने का क्या मतलब ? वो भी ट्रंककॉल पर ! ट्रंककॉल कास्ट्स मनी । मालूम है या भूल गये ?”
“मालूम है, सर ।”
“हमारा क्लायन्ट कैसा है ?”
“मिस्टर देवसरे एकदम ठीक हैं, सर, और अब इतने नार्मल हैं कि मेरे से बेजार दिखाई देने लगे हैं ।”
“बेजार दिखाई देने लगे हैं ! क्या मतलब ?”
“अब वो यहां अपने साथ मेरी मौजूदगी नहीं चाहते ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है !”
“सर, ऐसा ही है ।”
“मेरा मतलब है, हमारी तरफ से ऐसा कैसे हो सकता है !”
“जी ! क्या फरमाया ?”
“ये एक नाजुक मामला है । इसमें ये फैसला हमने करना है कि उनके लिये क्या मुनासिब है, और क्या नहीं मुनासिब है । समझे ?”
“जी हां ।”
“मेरे समझाने से समझे तो क्या समझे ? ये बात तुम्हें खुद समझनी चाहिये थी ।”
“अब पीछा छोड़, कमबख्त ।” - मुकेश दान्त पीसता होंठों में बुदबुदाया ।
लेकिन बुढऊ के कान बहुत पतले थे ।
“माथुर ! ये अभी मैंने क्या सुना ?”
“क्या सुना, सर ?”
“तुम मुझे कोस रहे थे ।”
“आई कैन नाट डेयर, सर ।”
“लेकिन मैंने साफ सुना कि.... “
“सर, क्रॉस टाक हो रही होगी ।”
“क्रॉस टॉक !”
“ट्रंक लाइन पर अक्सर होने लगती है ।”
“मैं और जगह भी तो ट्रंककॉल पर बात करता हूं । तब तो नहीं होती क्रॉस टाक । ये सो काल्ड क्रास टाक मेरी तुम्हारे से बात के दरम्यान ही क्यों होती है ?”
“तफ्तीश का मुद्दा है, सर । मेरे खयाल से हमें इस बाबत बुश को चिट्ठी लिखनी चाहिये ।”
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