RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
मुकेश ने आंख खोली तो उसे क्लब के माहौल में सब कुछ बदला लगा ।
क्यों ? - तत्काल उसके जेहन में घंटी बजी - क्यों था ऐसा ?
उसने सबसे पहले सामने अपनी टेबल पर निगाह डाली तो टेबल को खाली पाया । वहां एक ऐश ट्रे के अलावा कुछ भी मौजूद नहीं था ।
उसकी निगाह हॉल की तरफ उठी तो उसने मेहर करनानी और रिंकी शर्मा की टेबल को खाली पाया ।
बैंड उस घड़ी खामोश था, डांस फ्लोर खाली था और मीनू सावन्त भी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी ।
तभी उसकी निगाह उस वेटर पर पड़ी जो कि उन्हें सर्व करता रहा था । उसने हाथ के इशारे से उसे करीब बुलाया ।
“मिस्टर देवसरे कहां गये ?” - उसने पूछा ।
“वो तो चले गये ।” - वेटर बोला ।
“चले गये ! कब चले गये ?”
“बहुत टेम हो गया, साहब ।”
“कमाल है ! मेरे बिना चले गये ।”
“आप सोये पड़े थे, साहब ।”
“सोया पड़ा था ?”
“हां ।”
“यहां सोया पड़ा था ?”
“हां ।”
“जगाया क्यों नहीं मुझे ?”
“साहब ने मना किया था ।”
“साहब ने मना किया था !” - मुकेश ने यूं दोहराया जैसे अपने कानों पर यकीन न कर पा रहा हो ।
“हां । उन्होंने कैसीनो से यहां आकर आपको सोया पड़ा देखा तो बिल भरा और मेरे को खास करके बोला कि आपको जगाने का नहीं था ।”
“ओह !”
“मैं आपके लिये कुछ लाये, साहब ?”
“क्या ? नहीं । नहीं । कुछ नहीं मांगता । थैंक्यू ।”
वेटर वहां से चला गया ।
पीछे मुकेश महसूस कर रहा था कि उससे भारी कोताही हुई थी । उसके बॉस को पता चलता कि उसने अपने क्लायन्ट की निगाहबीनी में ऐसी लापरवाही और अलगर्जी दिखाई थी तो उसकी खैर नहीं थी । मन ही मन ये दुआयें करते कि नकुल बिहारी आनन्द को उस बात की खबर न लगे, वो अपने स्थान से उठा और हॉल पार करके उस गलियारे में पहुंचा जिसके सिरे पर मिनी कैसीनो था ।
कैसीनो में जुए के रसिया काफी लोग मौजूद थे लेकिन देवसरे उनमें नहीं था ।
फिर उसे आरलोटो दिखाई दिया ।
आरलोटो महाडिक का खास आदमी था और कैसीनो का मैनेजर था ।
वो उसके करीब पहुंचा ।
“मैं मिस्टर देवसरे को ढूंढता था ।” - वो बोला ।
“इधर आया था ।” - आरलोटो बोला - “चला गया ।”
“कब गये ?”
“कैसे बोलेंगा ! इधर इतना बिजी । टेम को वाच करके नहीं रखा ।”
वो वापिस घूमा और पूर्ववत् लम्बे डग भरता इमारत से बाहर निकला ।
पार्किंग में देवसरे की सफेद मारुति एस्टीम मौजूद नहीं थी ।
देवसरे की कार को वो खुद चला कर वहां लाया था और उसने उसे प्रवेश द्वार के करीब महाडिक की जेन की बगल में खड़ा किया था ।
अब कार वहां नहीं थी ।
महाडिक की जेन भी वहां नहीं थी ।
उन दोनों की जगह वहां कोई और ही दो गाड़ियां खड़ी थीं ।
उसने पार्किंग में तैनात वाचमैन को करीब बुलाया ।
“मिस्टर देवसरे को जानता है ?” - उसने पूछा ।
“हां, साहब । पण वो तो चले गये ।”
“कब गये ?”
“बहुत टेम हो गया, साहब ।” - वेटर वाला हा जवाब चौकीदार ने भी दिया - “एक घंटे से भी ऊपर हो गया ।”
“हूं ।”
तत्काल मुकेश ने कोकोनट ग्रोव के रास्ते पर कदम बढाया ।
वहां किसी वाहन का इन्तजाम करने में जो वक्त जाया होता उतने से कम में तो वो रिजॉर्ट और क्लब के बीच का आधा मील का फासला पैदल चल कर तय कर लेता ।
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