RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
जैसा देवसरे का उन दिनों का मूड था उसके मद्देनजर मुकेश कभी नहीं मान सकता था कि वो फिर आत्महत्या की कोशिश कर सकता था लेकिन अब उसे ये चिन्ता सता रही थी कि उसका वो मूड भी तो कहीं कोई धोखा या फरेब नहीं था ! कहीं वो उसे यूं उसकी ड्यूटी से, जिम्मेदारी से गाफिल तो नहीं करना चाहता था ! वहां मुकेश ने हर मुमकिन इन्तजाम किया हुआ था कि आत्महत्या का कोई जरिया उसे हासिल न हो पाये । वो कहीं से कूद नहीं सकता था, तैरना जानते होने की वजह से डूब नहीं सकता था । उसकी नींद की दवा के कैप्सूल मुकेश अपने कब्जे में रखता था और बवक्तेजरूरत उसे एक ही सौंपता था । यहां तक कि वो ये भी सुनिश्चित करके रखता था कि वो शेव इलैक्ट्रिक शेविंग मशीन से करे और ब्लेड या उस जैसा कोई तीखा औजार उसके हाथ में न पड़ने पाये । इस लिहाज से देवसरे की वो हरकत एक मसखरी, एक प्रैक्टीकल जोक, ही हो सकती थी लेकिन फिर भी उसका चित्त चलायमान था और कलेजा किसी अज्ञात आशंका से लरजता था ।
आखिरकार वो रिजॉर्ट के परिसर में दाखिल हुआ ।
तभी रेस्टोरेंट की तरफ से एक कार की हैडलाइट्स ऑन हुईं और तीखी रोशनी से उसकी आंखें चौंधिया गयीं । कार आगे बढी, उसके करीब से गुजरने तक उसने काफी रफ्तार पकड़ ली थी, फिर भी उसने नोट किया कि वो सलेटी रंग की फोर्ड आइकान थी । फिर कार परिसर से बाहर निकल गयी और मेन रोड पर दौड़ती उसकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
क्षण भर को ठिठका वो आगे बढा ।
उस घड़ी तकरीबन कॉटेज अन्धेरे में डूबे हुए थे, केवल माधव घिमिरे के कॉटेज में रोशनी थी या फिर खुद उसके डबल कॉटेज के देवसरे की ओर वाले हिस्से की एक खिड़की रोशन थी ।
वो डबल कॉटेज पर पहुंचा ।
उसकी पार्किंग में देवसरे की सफेद एस्टीम मौजूद नहीं थी ।
तो फिर खिड़की क्यों रोशन थी ? भीतर कौन था ?
वो दायें प्रवेशद्वार पर पहुंचा ।
रोशन खिड़की उसके पहलू में थी । एकाएक उस पर यूं एक काली परछाई पड़ी जैसे भीतर खिड़की के सामने से कोई गुजरा हो ।
फिर उसे अहसास हुआ कि भीतर से टी.वी. चलने की आवाज भी आ रही थी ।
लेकिन वो तो म्यूजिक की आवाज थी !
देवसरे को तो म्यूजिक सुनने का कोई शौक नहीं था ! खबरें सुनने की मंशा के बिना तो वो कभी टी.वी. ऑन करता ही नहीं था !
जरूर भीतर देवसरे के अलावा कोई था ।
उसने दरवाजे का हैंडल ट्राई किया तो उसे मजबूती से बन्द पाया । तत्काल वो वहां से हटा, तीन सीढियां उतरा और बगल की तीन सीढियां चढ कर अपने वाले हिस्से के प्रवेशद्वार पर पहुंचा । उसने वो द्वार खोला, भीतर दाखिल हुआ और फिर दोनों कॉटेजों के बीच का दरवाजा पार करके देवसरे वाले हिस्से में पहुंचा जहां कि रोशनी थी ।
देवसरे टी.वी. के करीब एक कुर्सी पर मौजूद था । उसका सिर कुर्सी की पीठ से टिका हुआ था, आंखें बन्द थीं और दोनों बांहे यूं कुर्सी के हत्थों से नीचे लटक रहीं थीं जैसे निढाल होकर कुर्सी पर ही पड़ा पड़ा सो गया हो ।
उसने आगे कदम बढाया ।
एकाएक वो ठिठका ।
बैडरूम के खुले दरवाजे में से उसे वो पैनल दिखाई दी जिसके पीछे कि वाल सेफ थी । ये देख कर वो हकबकाया कि पैनल अपने स्थान से हटी हुई थी और सेफ खुली हुई थी ।
क्या माजरा था ?
“मिस्टर देवसरे !” - सशंक भाव से उसने आवाज लगायी - “सर !”
कोई जवाब न मिला ।
उसने करीब पहुंच कर हौले से उसका कन्धा झिंझोड़ा तो भी उसके जिस्म में कोई हरकत न हुई लेकिन उसने महसूस किया कि जिस्म गर्म था ।
नींद के कैप्सूल ।
कहीं वो उसने चुरा के खा तो नहीं लिये थे ?
तसदीक के लिये कि नींद की दवा के कैप्सूलों की शीशी वहीं थी जहां उसने रखी थी, वो अपने कॉटेज की ओर लपका जहां कि तब भी अन्धेरा था ।
तभी अप्रत्याशित घटना घटित हुई ।
अन्धेरे में किसी ने उसके पीछे से उसके सिर पर वार किया जिसकी वजह से उसका सन्तुलन बिगड़ गया, उसके घुटने मुड़ने लगे और फिर वो फर्श पर लुढक गया ।
तब उसे अपनी नादानी पर अफसोस होने लगा । उसे बराबर अन्देशा था कि भीतर कोई था फिर भी उसने गफलत से काम लिया था ।
लेकिन ऐसा इसलिये हुआ था क्योंकि उसके जेहन पर अपने क्लायन्ट का वैलफेयर हावी था ।
कांखता कराहता और ये सोचता कि कौन उस पर आक्रमण करके वहां से भागा था, वो उठकर खड़ा हुआ और लड़खड़ाता सा बाहर को लपका । अपने दरवाजे से उसने बाहर कम्पाउन्ड में दायें बायें निगाह दौड़ाई तो उसे कहीं दिखाई न दिया लेकिन कॉटेजों की कतार के एक पहलू से बीच की ओर भागते कदमों की आवाज आ रही थी ।
तत्काल वो भी उधर दौड़ चला ।
अब वो आक्रमण की मार से उबर चुका था और पूरी तरह से चौकस था ।
बीच की रेत पर उसके पांव पड़े ।
सामने सन्नाटा था ।
कहां गया दौड़ते कदमों का मालिक ?
कहीं छुप गया था या ये उसका वहम था कि वो बीच की तरफ भागा था ?
एकाएक अपने दायें बाजू उसे तनिक हलचल का आभास हुआ । अन्धेरे में आंखें फाड़ कर उसने उधर देखा तो दो सायों को अपनी तरफ बढते पाया ।
वो अपलक उधर देखता प्रतीक्षा करने लगा ।
वो करीब पहुंचे तो उसने सूरतें पहचानीं ।
वो रिंकी शर्मा और मेहर करनानी थे । दोनों स्विम सूट पहने थे और उनके नम जिस्म उनके समुद्र स्नान करके आये होने की चुगली कर रहे थे ।
“माथुर !” - करनानी के मुंह से निकला ।
“आप लोगों ने किसी को देखा ?” - मुकेश ने व्यग्र भाव से पूछा ।
“किसको ।”
“किसी को भी ।”
“तुम्हें ही देखा, भई ।”
“मेरे अलावा किसी को ? जिसके कि मैं पीछे था । जो कि भाग कर इधर ही आया था ।”
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