RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“कौन ?”
“जो कॉटेज में था ।”
“पुटड़े, क्या पहेलियां बुझा रहा है । ठीक से बोल, क्या माजरा है ?”
मुकेश ने बोला ।
करनानी भौचक्का सा उसका मुंह देखने लगा ।
रिंकी भी ।
तभी कहीं एक कार स्टार्ट हुई और फिर उसके गियर पकड़ने की आवाज हुई ।
“चलो ।” - करनानी सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
तीनों वापिस डबल कॉटेज पर पहुंचे ।
इस बार मुकेश बत्तियां जलाता भीतर दाखिल हुआ ।
तीनों उस कुर्सी के करीब पहुंचे जिस पर देवसरे पूर्ववत पसरा पड़ा था ।
करनानी ने आगे बढ कर उसकी एक कलाई थामी और नब्ज टटोली ।
तभी टी.वी. पर म्यूजिक बन्द हुआ और न्यूज की सिग्नेचर ट्यून बजने लगी ।
फिर न्यूज रीडर स्क्रीन पर प्रकट हुई और बोली - “नमस्कार । मैं हूं कुसुम भटनागर । अब आज के मुख्य समाचार सुनिये...”
“बन्द कर, यार ।” - करनानी झुंझलाया सा बोला ।
मुकेश ने टी.वी. आफ कर दिया ।
करनानी ने कलाई छोड़ी, झुक कर उसके दिल के साथ अपना कान सटाया, शाहरग टटोली और फिर सीधा हुआ ।
“खत्म !” - वो बोला ।
“क्या !” - मुकेश हौलनाक लहजे से बोला ।
“मर गया ।”
“लेकिन क - कैसे ? कैसे ?”
“जरा सहारा दो । दूसरी ओर से बांह थामो ।”
दोनों तरफ से बांहें थामकर उन्होंने उसे कुर्सी से उठाया तो कैसे का जवाब सामने आया ।
कन्धों के बीच उसकी पीठ खून से लथपथ थी ।
“गोली !” - करनानी बोला - “गोली लगी है ।”
“कोई” - मुकेश के मुंह से निकला - “खुद अपनी पीठ में गोली मार के आत्महत्या नहीं कर सकता है ।”
“दुरुस्त । इसे वैसे ही वापिस पड़ा रहने दो । ये कत्ल का मामला है । पुलिस को खबर करना होगा ।”
“ओह !”
“तुम फोन करो, हम कपड़े पहन कर आते हैं ।”
मुकेश का सिर स्वयंमेव सहमति में हिला ।
***
नजदीकी पुलिस स्टेशन से जो इन्स्पेक्टर वहां पहुंचा उसका नाम सदा अठवले था । उसके साथ सोनकर नाम का एक सब-इन्स्पेक्टर था और आदिनाथ और रामखुश नाम के दो हवलदार थे ।
बाद में पुलिस का एक डॉक्टर, कैमरामैन और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी वहां पहुंचे ।
कोई पौना घन्टा पुलिस वालों ने मौकायवारदात और लाश के मुआयने में गुजारा । उस दौरान मुकेश माथुर, मेहर करनानी और रिंकी शर्मा कॉटेज के मुकेश वाले हिस्से में बन्द रहे । पौने घन्टे बाद एक हवलदार वहां पहुंचा और उन्हें दूसरी तरफ लिवा ले गया जहां से कि लाश हटाई जा चुकी थी और डॉक्टर, फिंगरप्रिंट और कैमरामैन रुखसत हो चुके थे ।
वहां पुलिस वालों के साथ माधव घिमिरे मौजूद था जो कि उन्हें रिजॉर्ट में ठहरे मेहमानों के रजिस्ट्रेशन कार्ड चैक करवा रहा था ।
“दो रजिस्ट्रेशंस में” - अठवले बोला - “कार का नम्बर नहीं है ।”
“क्योंकि वो दो साहबान कार पर नहीं आये थे ।” - घिमिरे ने संजीदगी से जवाब दिया - “एक - विनोद पाटिल - बस पर यहां पहुंचा था और दूसरे साहबान - मेहता फैमिली - टैक्सी पर आये थे ।”
“हूं ।” - इन्स्पेक्टर ने कार्ड सब-इन्स्पेक्टर को थमा दिये - “सब को चैक करो । शायद किसी ने कुछ देखा हो या कुछ सुना हो । कोई ऐसा कुछ बोले तो उसे मेरे पास लेकर आना, मैं खुद उससे सवाल करूंगा । और इस जगह के दायें बायें जो दो कॉटेज हैं, उनमें ठहरे साहबान से भी मैं खुद पूछताछ करूंगा ।”
सहमति में सिर हिलाता सब-इन्स्पेक्टर एक हवलदार - रामखुश - के साथ वहां से रुखसत हो गया ।
“तो आप” - इन्स्पेक्टर पीछे मुकेश से सम्बोधित हुआ - “वकील हैं और यहां मकतूल के कांसटेंट कम्पेनियन थे ?”
“जी हां ।” - मुकेश बोला ।
“वजह ?”
मुकेश ने बयान की ।
“काफी अनोखी वजह है ।” - इन्स्पेक्टर बोला ।
मुकेश खामोश रहा ।
“तभी पहले आपने समझा था कि मकतूल खुदकुशी के अपने मिशन में कामयाब हो गया था ?”
“हां ।”
“लेकिन असल में ऐसा नहीं हुआ । कोई खुद को पीठ में गोली मार कर खुदकुशी नहीं करता । किसी ने कत्ल किया ?”
“जाहिर है ।”
“किसने ?”
“मालूम कीजिये । इसीलिये तो आप यहां हैं ।”
“वो तो मैं करूंगा ही लेकिन सोचा शायद किसी को पहले मालूम हो ।”
“खामखाह !”
“मकतूल की इस आत्मघाती प्रवृत्ति की किस किस को खबर थी ?”
“मेरे खयाल से तो सबको खबर थी ।” - मुकेश एक क्षण हिचका और फिर बोला - “सिवाय विनोद पाटिल के ।”
“उसे क्यों नहीं ?”
“क्योंकि वो आज शाम को ही यहां पहुंचा था ।”
“आपकी बातों से लगता है कि ये शख्स कोई तफरीहन यहां पहुंचा शख्स नहीं था, इसका कोई और भी किरदार है ।”
“है ।”
“क्या ?”
“वो मकतूल की जन्नतनशीन बेटी की जिन्दगी में उसका पति था ।”
“यानी कि मकतूल का दामाद था ?”
“हां ।”
“आप ये कहना चाहते हैं कि मकतूल का दामाद होते हुए भी उसे नहीं मालूम था कि बेटी की मौत के बाद बाप के दिल पर क्या गुजरी थी !”
“वो शादी मकतूल की रजामन्दगी से नहीं हुई थी । मिस्टर देवसरे ने विनोद पाटिल को कभी अपना दामाद तसलीम नहीं किया था । वो पाटिल को अपने करीब भी फटकने देने को तैयार नहीं थे । फिर उनकी बेटी की मौत हो गयी थी तो वो सिलसिला कतई खत्म हो गया था ।”
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