RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“मालिक तो वो थे लेकिन एक कान्ट्रैक्ट के तहत हमारे में जो पार्टनरशिप स्थापित थी उस की रू में मुझे भी मालिकाना अख्तियारात हासिल थे ।”
“अख्तियारात हासिल होना और सच में मालिक होना एक ही बात नहीं होती ।”
“एक तरह से नहीं होती तो एक तरह से होती भी है ।”
“ये गोलमोल जवाब है । बहरहाल क्या पार्टनरशिप थी ?”
“रीयल एस्टेट के यानी कि प्लाट और इमारत के मालिक मिस्टर देवसरे थे, फर्नीचर और बार और कैसीनो का साजोसामान मेरा था, मैनेजमेंट मेरा था और टोटल बिजनेस में हमारी फिफ्टी-फिफ्टी की पार्टनरशिप थी ।”
“ये कान्ट्रैक्ट कितने अरसे का था ?”
“तीन साल का ?”
“तीन साल कब मुकम्मल होंगे ।”
वो हिचकिचाया, उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“जवाब दीजिये ।”
“दस जुलाई को ।”
“यानी कि सिर्फ एक हफ्ते बाद ?”
“हां ।”
“शायद इसीलिये मकतूल उस प्रापर्टी को बेचने की तैयारी कर रहा था जिससे कि आपको एतराज था । क्या आपके कान्ट्रैक्ट में रिन्यूअल के लिये कोई प्रोवीजन नहीं था ?”
“प्रोवीजन तो था” - महाडिक कठिन स्वर में बोला - “लेकिन वो एकतरफा था ।”
“क्या मतलब ?”
“मिस्टर देवसरे चाहते तो वो कान्ट्रैक्ट और तीन साल के लिये या उससे कम या ज्यादा वक्फे के लिये आगे बढा सकते थे, मैं ऐसा किये जाने की जिद नहीं कर सकता था ।”
“कान्ट्रैक्ट करते वक्त आपको इस शर्त पर एतराज नहीं हुआ था ?”
“तब नहीं हुआ था इसलिये नहीं हुआ था क्योंकि, एक तो मुझे क्लब को मोटे मुनाफे पर चला ले जाने की गारन्टी थी - और मोटे मुनाफे में बिना कुछ किये हासिल होने वाला फिफ्टी पर्सेन्ट का हिस्सा कौन छोड़ता है ! - दूसरे....”
वो फिर अटका ।
“ओह कम आन !”
“दूसरे मिस्टर देवसरे की मौत की सूरत में मुझे अख्तियार था कि या तो मैं पूर्वस्थापित शर्तों पर कान्ट्रैक्ट को जब तक चाहता चलाये रखता या फिर मार्कट वैल्यू पर प्रपर्टी को खुद खरीद लेता ।”
“बढिया । यानी कि जिस क्लब से आप अगले हफ्ते निश्चित रूप से बेदख्ल होने वाले थे अब आप, बाजरिया नये कान्ट्रैक्ट या खरीद, बदस्तूर उसके मालिक बने रह सकते हैं ।”
“है तो ऐसा ही लेकिन...”
“मिस्टर देवसरे क्लब की प्रापर्टी किसे बेचना चाहते थे ?”
“कौन कहता है कि वो प्रापर्टी बेचना चाहते थे ?”
“उनका वकील कहता है” - इन्स्पेक्टर ने मुकेश की तरफ इशारा किया - “उन्होंने मिस्टर माथुर से सेलडीड तैयार करवा लिया था, सिर्फ खरीदार का नाम भरने के लिये उसमें जगह खाली छोड़ दी थी । मेरा अन्दाजा है कि खरीदार वो शख्स था जो कल शाम आपके साथ यहां आया था । नाम बोलिये उस शख्स का ।”
वो हिचकिचाया ।
“मिस्टर महाडिक” - इन्स्पेक्टर सख्ती से बोला - “पुलिस के लिये पता लगा लेना कोई मुश्किल काम नहीं होगा कि कल शाम मकतूल से मिलने जब आप यहां आये थे तो कौन आपके साथ था ? जिस बात का खुल जाना महज वक्त की बात है उसे छुपाने की कोशिश करना बेकार है इसलिये नाम बोलिये ।”
“दिनेश पारेख ।”
“हर्णेई वाला ?”
“वही ।”
“मकतूल की क्लब की प्रापर्टी बेचने की कोशिश पर आप एतराज कर सकते थे लेकिन क्या आप ऐसा करने से उसे रोक भी सकते थे ?”
“कान्ट्रैक्ट खत्म होने तक रोक सकता था । उसके बाद कैसे रोका सकता था ?”
“यानी कि नहीं रोक सकते थे ?”
“नहीं रोक सकता था ।”
“इसीलिये वक्त रहते आपने अपना भविष्य संवार लिया ।”
“क्या मतलब ?”
“मिस्टर देवसरे का कत्ल कर दिया ।”
“चोर बहका रहे हो, इंस्पेक्टर साहब । अन्धेरे में तीर चला रहे हो ।”
“आपने कत्ल नहीं किया ?”
“नहीं किया ।”
“लेकिन इस बात से आप इन्कार नहीं कर सकते कि मिस्टर देवसरे के परलोक सिधार जाने से आपको बहुत फायदा बहुत फायदा पहुंचा है । अब आप अपना कान्ट्रैक्ट रीन्यू करा सकते हैं । अब आपको क्लब से कोई बेदख्ल नहीं कर सकता । ठीक ?”
महाडिक ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“अच्छा केस है । कत्ल के उद्दश्य कई दिखाई दे रहे हैं लेकिन कातिल दिखाई नहीं दे रहा ।”
कोई कुछ न बोला ।
“लेकिन दिखाई देगा कातिल, क्यों नहीं दिखाई देगा ? कितना भी शातिर मुजरिम क्यों न हो उसका पकड़ा जाना महज वक्त की बात होता है । कत्ल के विभिन्न उद्देश्य ही कातिल की तरफ उंगली उठायेंगे । और अब तो उद्देश्यों में एक और उद्देश्य का इजाफा हो गाय है ।”
“वो कैसे ?” - मुकेश बोला ।
“अच्छा हुआ कि ये सवाल आपने पूछा । जवाब मैं अभी देता हूं लेकिन पहले चन्द बातों को मुझे फिर से, दोहरा के, पूछने दीजिये । तो आप कहते हैं कि क्लब से जब आप यहां लौटे थे तो आपने मिस्टर देवसरे को टेलीविजन के सामने इस कुर्सी पर ढेर पड़े देखा था और आपकी ऐसा अहसास हुआ था जैसे यहां भीतर कोई था । फिर उसी किसी ने नीमअन्धेरे का फायदा उठा कर आप पर पीछे से हमला कर दिया था । ठीक ?”
“ठीक । और सबूत के तौर पर आप मेरे सिर पर उभर आये इस गूमड़ का मुआयना कर सकते हैं ।”
“बवक्तेजरूरत ऐसे गूमड़ बनाये भी जा सकते हैं । बहरहाल कोई आप पर हमला करके यहां करके यहां से भागा तो आप उसके पीछे भागे लेकिन न आप उसे पकड़ पाये और न उसकी सूरत देख पाये । ये दोनों भी” - उसने रिंकी और करनानी की तरफ इशारा किया - “न देख पाये जो कि पहले से बीच पर थे और उस शख्स से आगे थे ।”
“जाहिर है ।”
“आप कहते हैं जाहिर है, मुझे तो हैरानी है कि आप में और इनमें सैंडविच्ड वो शख्स न आपको दिखाई दिया न इन्हें दिखाई दिया ।”
“तो आपका मतलब ये है कि मैं अपने हमलावर की बाबत झूठ बोल रहा हूं ?”
“आप बताइये ।”
“क्या ?”
“यही कि आप झूठ बोल रहे हैं या नहीं ?”
“मैं न झूठ बोल रहां हूं न मेरे लिये झूठ बोलना जरूरी है । यहां मेरा काम मिस्टर देवसरे को प्रोटेक्ट करना था न कि...”
“सुइसाइड से प्रोटेक्ट करना था, खुदकुशी करने की कोशिश से रोकना था, मकतूल को कातिल से प्रोटेक्ट करना आपका काम नहीं था ।”
“अगर मुझे ऐसा कोई इमकान या अन्देशा होता तो मैं क्यों प्रोटेक्ट न करता मकतूल को कातिल से ?”
“कातिल से प्रोटेक्ट करते लेकिन खुद ही बचाने वाले और मारने वाले का डबल रोल अख्तियार कर लेते तो कहानी जुदा होती । शायद है ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, आप घुमा फिरा के मुझे कातिल करार देने की कोशिश कर रहे हैं । अगर मैं कातिल हूं तो बताइये मेरे पास कत्ल का क्या उद्देश्य था ?”
“था तो सही उद्देश्य ।”
“क्या ?”
“आपको नहीं मालूम ?”
“सर, यू आर टाकिंग नानसेंस ।”
“पुलिस के डॉक्टर का अन्दाजा है कि कत्ल सवा दस और पौने बारह के बीच किसी वक्त हुआ था । उस दौरान आप कहां थे ?”
“क्लब में था ।”
“क्या कर रहे थे ?”
“एक बूथ में सोया पड़ा था ।”
“सोये पड़े थे या टुन्न हो के होश खो बैठे थे ?”
“मैं इतनी कभी नहीं पीता ।”
“तो सोये पड़े थे ?”
“हां । पता नहीं कैसे ऊंघ आ गयी थी और फिर आंख लग गयी थी ।”
“आपके सामने अपने क्लायन्ट को वाच करने का, उसकी निगाहबीनी करने का अहमतरीन और वाहिद काम था और आप सोये पड़े थे जिसके नतीजे के तौर पर मकतूल को अकेले यहां लौटना पड़ा ।”
“वो मेरी गलती थी, नालायकी थी लेकिन मिस्टर देवसरे ने भी मेरे साथ ज्यादती की थी जो कि मुझे सोया ही पड़ा रहने दिया था, जगाया नहीं था ।”
“हमारी पड़ताल कहती है कि मिस्टर देवसरे ग्यारह बजने से कोई पच्चीस मिनट पहले क्लब से रुख्सत हुए थे ।” - वो करनानी और रिंकी की तरफ घूमा - “आप में से किसी ने उन्हें वहां से जाता देखा था ?”
“हां ।” - करनानी बोला - “मिस्टर देवसरे खुद हमारी टेबल पर आये थे लेकिन तब टाइम क्या हुआ था, इसकी मुझे खबर नहीं । उन्होंने खुद हमें बताया था कि वो अपने एडवोकेट को एक प्रैक्टीकल जोक का निशाना बनाने जा रहे थे इसलिये जानबूझकर उसे बूथ में सोता छोड़ कर जा रहे थे । उन्होंने हमें खासतौर से कहा था कि हममें से कोई भी माथुर को जगाने की कोशिश न करो । हालांकि रिंकी की मर्जी उसे फौरन जगा कर खबरदार करने की थी ।”
“आप लोग कब तक क्लब में ठहरे थे ?”
“ग्यारह बजे तक ।”
“आधी रात को समुद्र स्नान आपको रेगुलर शगल है ?”
“जनाब, ये टूरिस्ट रिजॉर्ट है जहां लोगबाग तफरीहन आते हैं, एनजाय करने, रिलैक्स करने आते हैं । यहां रेगुलर कुछ नहीं होता । यहां जो मन आये वो होता है ।”
“जैसे आज आधी रात को समुद्र स्नान आया ?”
“कोई एतराज ?”
“आधी रात कहां हुई थी अभी तब ?” - रिंकी बोली ।
“क्लब से निकल कर आप सीधे ही तो बीच पर पहुंचे नहीं होंगे ?”
“नहीं ।” - करनानी बोला - “पहले हमने यहां आकर कपड़े बदले थे और फिर समुद्र का रुख किया था ।”
“कितने बजे थे तब ?”
“सवा ग्यारह ।”
“तब आपने यहां, मेरा मतलब है रिजॉर्ट के परिसर में, किसी को देखा था ?”
“पाटिल को देखा था । ये तब पैदल चलता आ रहा था ।”
“कहां से आ रहे थे, आप ?” - इंन्स्पेक्टर ने पाटिल से पूछा ।
“क्लब से ही ।” - पाटिल बोला - “मैं भी वहीं था ।”
“क्या कर रहे थे वहां ?”
“वही जो बाकी लोग कर रहे थे ।”
“क्या ?”
“तफरीह । बार पर बैठा ड्रिंक करता रहा था ।”
“हूं ।” - वो फिर करनानी और रिंकी की तरफ घूमा - “आप लोगों का समुद्र स्नान कितनी देर चला था ?”
“ज्यादा देर नहीं चला था ।” - करनानी बोला ।
“पानी हमारी उम्मीद से ज्यादा ठण्डा था ।” - रिंकी बोली - “इसलिये ।”
“फिर तो आप लोग लगभग उलटे पांव ही लौट आये होंगे ?”
“नहीं । थोड़ी देर बीच पर बैठे सुस्ताते रहे थे, बतियाते रहे थे ।”
“तब आपने कुछ देखा था ?”
“बीच पर नहीं देखा था लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
रिंकी हिचकिचाई ।
“क्या लेकिन ?” - इन्स्पेक्टर ने अपना प्रश्न दोहराया ।
रिंकी ने करनानी की तरफ देखा ।
करनानी ने अनभिज्ञतापूर्ण भाव से कन्धे उचका दिये ।
“अब कुछ कहिये भी ।” - इन्स्पेक्टर उतावले स्वर में बोला ।
“इधर यहां ड्राइव-वे के सिरे पर एक कार देखी थी” - रिंकी दबे स्वर में बोली - “जो इतनी धीमी रफ्तार से चलती वहां पहुंची थी कि बस सरकती जान पड़ती थी । सच पूछिये तो इसी से मेरी तवज्जो उसकी तरफ गयी थी ।”
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