RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“जनाबेहाजरीन” - एकाएक पाटिल बोला - “आई हैव ए गुड न्यूज एण्ड ए बैटर न्यूज । गुड न्यूज ये है कि मैं मिस्टर देवसरे की इकलौती बेटी का पति हूं और उनका दामाद हूं । और बैटर न्यूज ये है कि मैं और सिर्फ मैं उनका इकलौता नजदीकी रिश्तेदार हूं ।”
“मिस्टर देवसरे ने” - मुकेश बोला - “कभी तुम्हें अपना दामाद नहीं माना था ।”
“उनके मानने या न मानने से क्या होता है ! मेरा यही जवाब मकतूल को था और यही तुम्हें है । मैं मकतूल का दामाद हूं और मेरे होते कोई काला चोर उसकी दौलत का मालिक नहीं बन सकता ।”
“कैसे रोकोगे ?” - इन्स्पेक्टर बोला - “एक रजिस्टर्ड वसीयत की मौजूदगी के तहत कैसे रोकोगे ?”
“ये फरेब है, धोखा है, इन वकील लोगों की कोई चाल है । इन लोगों ने एक थके-हारे, डरे-दबे आदमी से पता नहीं क्या लिखवा लिया है वसीयत के नाम पर ? ऐसे कोई लुटाता है अपना माल ! जिस शख्स को आधी दौलत धर्म कार्यों के लिये देना सूझ सकता था उसे पूरी दौलत का यही इस्तेमाल नहीं सूझ सकता था ?”
“मैं तुम्हारे ही जवाब तुम्हें देता हूं ।” - मुकेश बोला - “मैं आधी दौलत अपने नाम कराने की जुगत कर सकता था तो पूरी की नहीं कर सकता था ?”
“कर सकते थे लेकिन नहीं की क्योंकि तुम चालाक हो, वकील हो, चालाक वकील हो । मकतूल का आधी दौलत तुम्हारे नाम लिखना ज्यादा विश्वसनीय लगता है इसलिये तुमने ये होशियारी दिखाई कि...”
“मिस्टर पाटिल, काइन्डली नोट माई रिप्लाई इन युअर ओन लिंगो ।”
“वाट्स दैट ?”
“आई हैव ए बैड न्यूज एण्ड ए वर्स न्यूज । बैड न्यूज ये है कि तुम पागल हो । और वर्स न्यूज ये है कि तुम्हारा दिमाग फुल खराब है ।”
“क.. क्या ?”
“अरे, जब मुझे वसीयत की ही खबर नहीं तो उसके प्रावधानों की खबर कहां से होती ?”
“सब खबर थी । खुद अपनी करतूत की किसी को कोई खबर न हो, ऐसा कहीं होता है !”
मुकेश ने असहाय भाव से इन्स्पेक्टर की तरफ देखा ।
“मैं तुम लोगों की करतूत का पर्दाफाश करके रहूंगा । मैं कोर्ट में जाऊंगा । उस वसीयत को चैलेंज करने के लिये मैं सबसे बड़ा वकील करुंगा ।”
“सबसे बड़ा वकील मेरा बॉस है ।”
“होगा । मैं नहीं मानता कि वकालत की दुनिया तुम्हारे बॉस से आगे खत्म है । और अब मैं ये भी समझ रहा हूं कि क्यों तुम छिपकली की तरह मकतूल से चिपके हुए थे । तुम्हारे इरादे शुरू से ही नापाक थे । हद हो गयी, भई ! गोद में बैठ कर गिरह काट ली । वारिस बन बैठे मकतूल के । यूं कोई बनाता है किसी गैर को अपना वारिस ? टिप के तौर पर कोई लाख दो लाख रुपये छोड़े होते तो कोई बात भी थी, आधा हिस्सा तुम्हारे नाम कर दिया । देख लेना जब केस कोर्ट में पहुंचेगा तो मैजिस्ट्रेट भी हंसेगा इस बात पर । देख लेना कि...”
“अरे, मेरे बाप” - मुकेश कलप कर बोला - “मैं मकतूल के विरसे का तलबगार नहीं । मकतूल ने अपनी वसीयत मेरी रजामन्दगी से या मेरी जानकारी में नहीं लिखी ।”
“लिखी ही नहीं । तुम लोगों ने खुद लिख ली और धोखे से उससे साइन करा लिये ।”
“आप बरायमेहबानी ये जुबानी तलवारबाजी बन्द करें ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “वसीयत को लेकर जो सिर फुटौवल करनी हो वो वक्त आने पर बाखुशी कीजियेगा लेकिन अभी खामोश हो जाइये और मुझे अपनी तफ्तीश आगे बढाने दीजिये ।”
“धोखे और फरेब से लिखवाई गयी वसीयत भी आपकी तफ्तीश का हिस्सा होना चाहिये...”
“हवलदार आदिनाथ !”
“जी, साहब ।” - हवलदार मुस्तैदी से बोला ।
“ये आदमी फिर बोले तो अपना जूता उतार कर इसके मुंह में ठूंस देना ।”
“बरोबर, साहब ।” - उस हुक्म से खुश होता हवलदार बोला - “एक से चुप न हुआ तो दूसरा भी ।”
“शाबाश !”
तत्काल पाटिल ने यूं जबड़े भींचे जैसे संदूक का ढक्कन बन्द किया हो । वो हड़बड़ा कर हवलदार से दो कदम परे सरक गया ।
इन्स्पेक्टर कुछ क्षण उसे घूरता रहा और फिर करनानी की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मैंने सबके बारे में सब कुछ दरयाफ्त किया ।” - वो बोला - “सिर्फ आपसे ऐसी पूछताछ न हो सकी । बरायमेहरबानी बताइये कि आप कहां से हैं और क्या करते हैं ?”
“मुम्बई से हूं ।” - उसने जेब से एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर इन्स्पेक्टर को सौंपा - “ये मेरा बिजनेस कार्ड है जिस पर मेरा नाम, पता, कारोबार सब दर्ज है ।”
इन्स्पेक्टर ने कार्ड पर निगाह डाली तो उसके नेत्र फैले ।
“प्राइवेट डिटेक्टिव !” - वो बोला - “प्राइवेट डिटेक्टिेव हैं आप ?”
“जी हां ।”
“तो आजकल आप यहां वैकेशन पर हैं ?”
“मेरे ऐसे नसीब कहां ! धन्धे से ही आया हूं, जनाब । आई एम आन ए जॉब हेयर ।”
“वाट जॉब ?”
“मुझे एक गुमशुदा वारिस की तलाश है । इस साल की शुरुआत से मैं इस एक ही केस पर लगा हुआ हूं । ये काम ऐसा है जिसमें फीस से कहीं ज्यादा मुझे बोनस मिल सकता है ।”
“बोनस !”
“या समझ लीजिये कि कामयाब हो के दिखाने का ईनाम । मैं गुमशुदा वारिस को तलाश कर पाया तो मुझे फीस के अलावा दस लाख रुपये और मिलेंगे । मैं मामूली प्रैक्टिस वाला पी.डी. हूं । ये रकम मेरे लिये बहुत बड़ी है जिसे हासिल करने की कोशिश में मैं छ: महीने से कुल जहान की खाक छानता फिरता आखिरकार यहां पहुंचा हूं ।”
“यहां उम्मीद है कामयाबी हासिल होने की ?”
“उम्मीद तो हर जगह है, बॉस । उम्मीद पर दुनिया कायम है ।”
“केस दिलचस्प जान पड़ता है तुम्हारा । कल थाने आना और तफसील से सब सुनाना ।”
“जरूर ।”
“दस बजे पहुंचना । मेहरबानी होगी ।”
“क्यों नहीं होगी ? मेरा तो नाम ही मेहर करनानी है ।”
“आप सब लोग भी पुलिस को उपलब्ध रहियेगा । कोई कहीं खिसक जाने की कोशिश न करे । ताकीद है ।”
सबने सहमति में सिर हिलाया ।
फिर महफिल बार्खास्त हो गयी ।
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