RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“क्यों किया उन्होंने ऐसा ?”
“शरारतन किया । मसखरी मारी । बचपना दिखाया । बेवजह मेरी पोजीशन खराब की । मेरे शर्मिन्दा होने का सामान किया ।”
“माथुर, अपना रोना रोना बन्द करो ।”
“यस, सर ।”
“और कुबूल करो कि एक निहायत मामूली काम को तुम ठीक से अंजाम न दे सके । तुम हमारे क्लायन्ट के साथ होते...”
“तो मैं भी मरा पड़ा होता । तो पुलिस ने एक ही जगह दो लाशें बरामद की होतीं ।”
“यू आर एब्सोल्यूटली रांग । तो मडर्रर की गोली चलाने की मजाल न हुई होती ।”
“क्यों न हुई होती ? मेरे पास तोप थी अपनी और क्लायान्ट की हिफाजत के लिये ?”
“तोप ? तोप की क्या स्टोरी है ? वहां गन के साथ साथ तोप भी चली थी ?”
“नो, सर ।”
“तो तोप का जिक्र क्यों किया ?”
“मैंने कहा था कि होती तो चलती ।”
“एण्ड अनदर थिंग । अखबार में फर्म का नाम फिर गलत छपा है । पिछली बार गोवा वाले केस में भी ऐसा ही हुआ था । आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स में से एक आनन्द ड्रॉप कर दिया गया था ।”
“जरूर इस बार दो आनन्द ड्राप कर दिये होंगे ।”
“नहीं । इस बार एक आनन्द ऐड कर दिया गया है, फालतू लगा दिया गया है, फर्म के नाम को आनन्द आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स बना दिया गया है ।”
“सर, ये तो खुशी की बात है कि आनन्द ही आनन्द हो गया है ।”
“नो । दैट इज ए ग्रेव मिस्टेक । अखबार में फर्म का नाम छपे तो करैक्ट छपना चाहिये ।”
“अरे कमीने ! एक आदमी जान से चला गया और तेरे को फर्म के नाम की पड़ी है ।”
“माथुर, ये मुझे क्या सुनायी दे रहा है ?”
“सर, क्रॉस टाक हो रही है ।”
“फिर ?”
“फिर ।”
“ऐज बिफोर ?”
“ऐज बिफोर ।”
“ओह माई गॉड, इस क्रॉस टाक से कैसे पीछा छूटेगा ?”
“सर, जो बात पीछा न छोड़े उसे नजअन्दाज करना चाहिये । कोई बीच में बोलता है तो बोलने दीजिये । आप उसकी तरफ ध्यान मत दीजिये । वो भी तो ध्यान नहीं दे रहा ।”
“क्या मतलब ?”
“उसे भी तो क्रॉस टाक सता रही होगी, वो तो शिकायत नहीं कर रहा ।”
“मे बी यू आर राइट । लेकिन माथुर, वाट इज दिस, तीन मिनट की ट्रंककॉल में इतना वक्त तो फिजूल की बातों में जाया हो गया ।”
“सर, मुझे मालूम था कि ऐसा होगा इसलिये मैंने पहले ही कॉल छ: मिनट की बुक कराई है ।”
“माथुर, यू आर वेस्टिंग मनी ।”
साले, तेरे बाप ने पैसा देना है ? कॉल मैंने बुक कराई है और फोन देवसरे का है ।
“माथुर ?”
“यस, सर ।”
“ऐसा क्यों होता है कि जहां भी मैं तुम्हें भेजता हूं वहां मर्डर हो जाता है ।”
“इत्तफाक से होता है, सर । मर्डर वहां भी तो होते हैं जहां आप मुझे नहीं भेजते ।”
“और मर्डर भी किस का ? खुद हमारे क्लायन्ट का । पहले फिगारो आइलैंड पर मिसेज नाडकर्णी का हुआ, अब मिस्टर देवसरे का हो गया । ऐसे तो आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का ऊंचा नाम....”
“इतना ऊंचा उठ जाये कि सातवें आसमान पर पहुंच जाये, सारे के सारे आनन्द जा के भगवान की गोद में बैठ जायें ।”
“क्या बोला ? जरा ऊंचा बोलो, भई, मुझे सुनाई नहीं दे रहा है ।”
“सर, कान में सुरमा डालने से ये शिकायत दूर हो जाती है ।”
“सुरमा ! कान में ! सुरमा तो आंख में डाला जाता है ।”
“आजकल कौन डालता है आंख में सुरमा ! आपने देखा कभी किसी को आंख में सुरमा डालते ?”
“नहीं ।”
“सो देयर यू आर ।”
“वेयर आई एम ?”
“इन दि एग्जीक्यूटिव ऑफिस ऑफ आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स, सर ।”
“माथुर, यू आर वेस्टिंग टाइम ।”
“आई कैन नाट डेयर, सर । टाइम इज मनी । पर्टिकुलरली आन ए ट्रंककॉल ।”
“दैन लिसन टु मी ।”
“यस, सर । शूट ।”
“शूट ! शूट हूम ?”
“सर, दैट्स ए फिगर आफ स्पीच । आई मीन, प्लीज स्पीक, आई एम लिसनिंग विद फुल अटेंशन ।”
“बीईंग जूनियर मोस्ट पार्टनर, दैट्स एक्सपैक्टिड आफ यू ।”
“यस, सर ।”
“अभी सुबह मुझे पसारी ने बताया है कि कुछ दिन पहले हमारे क्लायन्ट ने उससे अपनी वसीयत तैयार करवई थी जिसमें उसने अपनी आधी सम्पति का वारिस तुम्हें बनाया है । माथुर, ऐसा क्योंकर हुआ ? क्योंकर तुम उसे इसके लिये तैयार कर पाये ?”
“सर, मैंने कुछ नहीं किया ।”
“फर्म के किसी क्लायन्ट को उसकी वसीयत मे अपना नाम जोड़ने के लिये - वो भी इतना प्रामीनेंटली - उकसाना ग्रेव प्रोफेशनल मिसकंडकट है...”
अबे सुन तो सही, मेरे बाप ।
“....विच इज अनपार्डनेबल इन दि फर्म आफ आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स ।”
“सर, मुझे तो उस वसीयत की खबर तक नहीं थी । कल रात को इधर के इनवैस्टिगेटिंग आफिसर ने मिस्टर पसारी के घर पर फोन लगाया था तो वसीयत की और उसके प्रोविजंस की बात उजागर हुई थी ।”
“दैट इज वाट यू से ।”
“आफकोर्स दैट इज वाट आई से । आपको अपने सबार्डीनेट की बात पर एतबार लाना चाहिये ।”
आगे से आवाज न आयी ।
“मिस्टर देवसरे मेरे से बेजार थे, उन्होंने तो मुझे वापिस बुला लिये जाने तक की बात की थी । ऐसा आदमी क्यों भला मुझे अपनी वसीयत में बैनीफिशियरी बनायेगा ? और वो भी थोड़ी बहुत नहीं, आधी जायदाद का !”
“तुम बताओ, क्यों बनायेगा ?”
“कोई वजह नहीं ।”
“फिर भी उसने ऐसा किया ।”
“हैरानी है । पता नहीं मेरे में उसे क्या भा गया जो...”
“कुछ नहीं भा गया । भा जाने लायक क्या है तुम्हारे में ?”
“सर...”
“कौन मानेगा कि उसने अपनी मर्जी से ऐसा किया । इस बात को जो भी सुनेगा, यही नतीजा निकालेगा कि किसी फ्रॉड के तहत उससे ऐसा कराया गया था ।”
“लेकिन सर...”
“अभी और सुनो । कल उसने पसारी को फोन करके बोला था कि वो अपनी वसीयत तब्दील करना चाहता था । तुम हर वक्त उसके साथ रहते थे इसलिये जरूर तुम्हें उसकी उस कॉल की खबर होगी ।”
“मुझे नहीं थी ।”
“नहीं थी तो ये भी तुम्हारे लिये डिस्क्रेडिट है ।”
“इस मामले में मैं फांसी पर टांग दिये जाने के काबिल शख्स हूं, आप आगे बढिये ।”
“कहां अगे बढूं ? मैं क्या मार्निंग वाक पर निकला हुआ हूं ?”
“ओफ्फोह ! अपनी बात कहिये ।”
“बात थ्योरिटिकल है ।”
गोली लगे कम्बख्त को । कुर्सी पर बैठा बैठा मर जाये । अगली सांस न आये ।
“आप कहिये तो सही ।”
“थ्योरी ये है कि जब तुम्हे्ं पता चला कि हमारा क्लायन्ट अपनी वसीयत तब्दील करने जा रहा था तो उसके ऐसा कर पाने से पहले ही तुम्हीं ने उसका काम तमाम कर दिया ताकि उसकी जायदाद का आधा हिस्सा तुम्हारे हाथों से न निकल जाता ।”
हे भगवान ! ये मेरा एम्पलायर है या शैतान ! मेरा वैलविशर है या दुश्मन !
“आपको मेरे से ये उम्मीद है ?”
“माथुर, मैंने पहले ही बोला है कि बात थ्योरिटिकल है । मैंने अपनी सोच बयान नहीं की है, मैंने तुम्हें ये बताया है कि लोग क्या सोचेंगे ।”
“भाड़ में जायें लोग और आप भी उनके साथ ही चले जाइये ।”
“क्या ? क्या कहा ?”
“मैंने कुछ नहीं कहा, सर । शायद फिर कोई बीच में कुछ बोला ।”
“फिर क्रास टाक ? “
“यस, सर ।”
“कुछ साफ भी तो नहीं सुनाई देता कभी कभी ।”
“मेरे इधर भी ऐसा ही है, सर । जो कमीना बीच में बोल रहा है, वो लगता है कि जानबूझ कर साफ नहीं बोलता ।”
“मुझे तो कुछ और ही शक हो रहा है ।”
“मुझे भी हो रहा है लकिन उस बाबत ट्रंककॉल पर बात करना मुनासिब नहीं होगा ।”
“मे बी यू आर राइट ।”
“मिस्टर देवसरे ने बताया था कि वो वसीयत में क्या तब्दीली करना चाहते थे ?”
“नहीं ।”
“तो फिर आपको कैसे मालूम है कि उनका मुझे वसीयत से बेदख्ल करने का इरादा था ।”
“और क्या इरादा होगा ?”
“और इरादा मेरा हिस्सा बढाने का हो सकता था, हिस्सा अभी आधा है, उसे पौना या पूरा ही करने का हो सकता था ।”
“माथुर, यू आर टाकिंग नानसेंस ।”
“सर, मैं....”
“एण्ड यू आर अज्यूमिंग फैक्ट्स नाट इन एवीडेंस ।”
“मेरी ऐसी हिम्मत कहां ? मेरे मे ऐसी काबलियत कहां ?”
“काबलियत वाली तुम्हारी बात से मैं सहमत हूं । मुझे खुशी है कि तुमने अपने आपको इतना करैक्टली असैस किया है ।”
“मुझे आपकी खुशी से खुशी है । अब बताइये मेरे लिये क्या हुक्म है ?”
“तुम्हारे लिये हुक्म ? “
“जिस शख्स की निगाहबीनी के लिये मुझे तैनात किया था वो दुनिया छोड़ गया । लिहाजा आप इजाजत दें तो मैं वापिस लौट आऊं ?”
“यू विल डु नो सच थिंग ।”
“सर, अब यहां मेरी मौजूदगी बेमानी है । ऊपर से मेरी बीवी प्रेग्नेंट है....”
“तुम्हें बाप बनने की इतनी जल्दी नहीं होनी चाहिये थी ।”
सत्यानाश हो तेरा । आज ही पाकिस्तान से वार छिड़ जाये और पहला बम तेरे ऑफिस में फूटे ।
“तुम अभी वहीं रहोगे और मालूम करने की कोशिश करोगे कि हमारे क्लायन्ट का कत्ल अगर तुमने नहीं किया तो किसने किया ?”
“मैं ! मैं करूंगा ?”
“वहां मीडिया के लोग भी जरूर पहुंचेगा । ताकीद रहे कि तुम प्रेस को कोई बयान दोगे तो ये बात तुम सुनिश्चित करोगे कि अखबारों में फर्म का नाम ठीक छपे । नो आनन्द शुड बी डिलीटिड । नो आनन्द शुड भी ऐडिड ।”
“सर, आप फिक्र न करें, मैं प्रेस को बहुत ठीक से समझा दूंगा कि निरोध की तरह आनन्द भी तीन तीन की पैकिंग में आते हैं ।”
“क्या, माथुर, तुम ये क्या....”
“युअर सिक्स मिनट्स आर अप, सर ।” - बीच में आपरेटर की आवाज आयी ।
“ओके । माथुर, फालो इंस्ट्रक्शंस एण्ड रिपोर्ट रेगुलरली । दैट्स एन आर्डर ।”
“यस, सर ।”
“नाओ गैट ऑफ दि लाइन । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स की कोई लाइन सुबह सवेरे ही इतनी देर बिजी....”
लाइन कट गयी ।
मुकेश ने टेलीफोन क्रेडल पर पटका और कॉटेज से बाहर निकला । उसने कम्पाउन्ड में कदम डाला और उधर बढा जिधर देवसरे की एस्टीम खड़ी थी ।
“मिस्टर माथुर ?”
वो ठिठका, उसने घूमकर आवाज की दिशा में देखा तो पाया उसे मिसेज वाडिया पुकार रही थी ।
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