RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“हासिल जानकारी में इजाफा तो हुआ है । मसलन विनोद पाटिल की बाबत पता लगा है कि वो एक नाकाम थियेटर एक्टर है फिल्म और टी.वी. के फील्ड में भी उसकी कोई दाल नहीं गली है इसलिये, दो टूक कहा जाये तो, कड़का है । पैसे का जरूरतमन्द वो किसी और वजह से भी हो सकता है जिसकी कि हमें अभी खबर नहीं है । बहरहाल मकतूल से चार पैसे झटकने की कोशिश ही उसे यहां लायी थी लेकिन कोशिश कामयाब नहीं हुई थी ।”
“हुई तो सही । अब वो रिजॉर्ट के एक चौथाई हिस्से का मालिक है ।”
“रोकड़ा हासिल करने की कोशिश की बात कर रहा था मैं ।”
“एक ही बात है । पट्ठा फल खाने आया था, पेड़ ही मिल गया ।”
“तुम्हें इस बात से हैरानी नहीं हुई कि वो सिन्धी भाई, मेहर करनानी एक प्राइवेट डिटेक्टिव निकला ?”
“बहुत हैरानी हुई, जनाब । मैंने तो हमेशा उसे मौज मारने आया सैलानी समझा था । उसने कभी भनक नहीं लगने दी थी किसी को कि वो यहां अपने धन्धे में लगा हुआ था ।”
“मुझे मालूम हुआ है कि रिजॉर्ट में मकतूल की करनानी से काफी गहरी छनती थी ।”
“था तो सही ऐसा ।”
“दोनों पहले से वाकिफ थे ?”
“नहीं । रिजॉर्ट की ही वाकफियत थी वो । मुझे नहीं लगता कि मिस्टर देवसरे ने यहां से पहले कभी उसकी सूरत भी देखी थी ।”
“हूं ।”
“अपनी गुमशुदा वारिस की कहानी पर उसने कोई और रोशनी डाली ?”
“कुछ उसने डाली है कुछ हमने भी बाजरिया मुम्बई पुलिस जानकारी निकाली है और बात कुछ कुछ पल्ले पड़ी है ।”
“क्या ?”
“मूलरूप से उसका क्लायन्ट आनन्द बोध पंडित नाम का एक रुतबे और रसूख वाला आदमी था । लेकिन अभी कोई तीन महीने पहले उसकी मौत हो गयी थी तो उसके वकीलों ने करनानी को निर्देश दिया था कि क्लायन्ट की मौत की रू में वो अपने काम से हाथ न खींचे और उसे बदस्तूर जारी रखे ।”
“काम क्या ? वारिस की तलाश ?”
“हां । जो कि आनन्द बोध पंडित की तनुप्रिया नाम की इकलौती बेटी है ।”
“जो कि गायब है ?”
“एक अरसे से । आनन्द बोध पंडित बीमार रहता था, उसका और कोई वारिस नहीं इसलिये उसे बड़ी शिद्दत से अपनी गुमशुदा बेटी की तलाश थी । इसलिये उसने करनानी के सामने दस लाख के बोनस का चारा लहराया था ताकि वो दिलोजान से इस काम को अंजाम देता और अपनी कोई कोशिश न उठा रखता ।”
“आई सी । और क्या तफ्तीश की अभी तक आपने ?”
“किसलिये जानना चाहते हो ?”
“मकतूल हमारा क्लायन्ट था, हमारी दिली ख्वाहिश है कि उसका कातिल जल्द-अज-जल्द पकड़ा जाये और अपने किये की सजा पाये इसलिये ।”
“तुम क्लब में दोबारा क्यों गये थे ? वो भी रात के दो बजे ।”
“पता चल गया ?”
“वाचमैन ने बताया । उसी ने बताया कि कल क्लब की पॉप सिंगर मीनू सावन्त ने मकतूल को क्लब से रिजॉर्ट में वापिस पहुंचाया था और फिर कार लाकर क्लब की पार्किंग में खड़ी कर दी थी ।”
“वाचमैन ने जब ये बताया तो ये नहीं बताया कि मैं कार ही वापिस लाने के लिये वहां पहुंचा था ।”
“बताया था । लेकिन इतनी रात गये ? कार का क्या क्लब की पिर्किंग में डाकू पड़ रहे थे ? जमा ऐसा भी तो नहीं कि तुम वहां गये और कार लेकर लौट आये । तुम तो भीतर भी गये थे और काफी देर भीतर ठहरे थे ।”
“काफी देर नहीं, थोड़ी सी देर । एक ड्रिंक की तलाश में मैं भीतर गया था लेकिन भीतर जा के मालूम हुआ था कि बार बन्द हो गया था ।”
“हूं ।”
“और कुछ बताइये ।”
“कत्ल के वक्त के आसपास विनोद पाटिल, रिंकी शर्मा और मेहर करनानी रिजॉर्ट के परिसर में थे । पाटिल के पास कत्ल का उद्देश्य है और तब उसे कत्ल करने का मौका भी हासिल था क्योंकि मकतूल अकेला था, क्योंकि तुम उसके साथ नहीं थे । करनानी के पास कत्ल का उद्देश्य नहीं दिखाई देता लेकिन मौका उसे बराबर हासिल था ।”
“कैसे भला ? रिंकी शर्मा उसके साथ थी ।”
“हर वक्त नहीं । जब वो अपने कॉटेज में स्विमिंग कास्ट्यूम पहनने गयी थी तब पांच छ: मिनट तक वो करनानी के साथ नहीं थी ।”
“कास्ट्यूम उसने भी तो पहना था ।”
“मर्द ऐसे कामों में औरतों जितना वक्त नहीं लगाते, करनानी के लिये वो बड़ी हद दो मिनट का काम था । बाकी बचे टाइम में वो मकतूल के कॉटेज में जाकर अपनी कारगुजारी को अंजाम दे सकता था ।”
“माधव घिमिरे के बारे में क्या कहते हो, बतौर मैनेजर वो तो तकरीबन हर वक्त ही रिजॉर्ट में होता है ?”
“घिमिरे के बारे में पहले एक बात तुम बताओ । कहते हैं वो मकतूल का बहुत वफादार था ?”
“था तो सही । तभी तो मकतूल ने उसे रिजॉर्ट का मैनेजर बनाया और मुनाफे में पच्चीस फीसदी के हिस्से से नवाजा ।”
“मकतूल रिजॉर्ट का गिरवी रख देता तो वो हिस्सा तो चला गया होता ।”
“मिस्टर देवसरे ने उसे आश्वासन दिया था कि वो किसी और तसल्लीबख्श तरीके से यूं होने वाले उसके नुकसान की भरपाई कर देंगे ।”
“घिमिरे ही तो कहता है ऐसा । फर्ज करो कि ये बात गढी हुई है, उसे असल में मकतूल का ऐसा कोई आश्वासन नहीं था, और फिर बोलो की उसके पास कत्ल का उद्देश्य हुआ या नहीं हुआ ?”
“फिर तो हुआ ।”
“अभी वो कहता है कि एकाउन्ट चौकस करने में लगा हुआ था । क्या पता वो एकाउन्ट चौकस कर रहा था या मैनीपुलेट कर रहा था ।”
“आपका इशारा गबन की तरफ है ?”
“भई, आर्थिक गड़बड़झालों को ही लीपापोती की जरूरत होती है ।”
“घिमिरे ऐसा आदमी नहीं ।”
“माथे पर किसी के नहीं लिखा होता कि वो कैसा आदमी है । बाज लोग वैसे होते नहीं तो बावक्तेजरूरत बन जाते हैं ।”
“आप ठीक कह रहे हैं ।”
उस घड़ी उसका दिल चाहा कि वो घिमिरे की बाबत मिसेज वाडिया से हासिल जानकारी इन्स्पेक्टर को कराये लेकिन फिर उसने फिलहाल खामोश रहना ही जरूरी समझा । उसके उस फैसले की बड़ी वजह यही थी कि उसका दिल गवाही नहीं दे रहा था कि घिमिरे कातिल था । इसी वजह से उसने मिसेज वाडिया को भी गोलमोल तरीके से ये राय दी थी कि वो फिलहाल उस बात का जिक्र पुलिस से करने से गुरेज करे ।
“अब इसी मूड में” - वो फिर बोला - “अनन्त महाडिक के बारे में भी कुछ कह डालिये ।”
“क्या कह डालूं ?”
“कल उसने इस बात से पुरजोर इन्कार किया था कि साढे ग्यारह बजे वो रिजॉर्ट के परिसर में था । मैं अपनी जाती हैसियत में गवाह हूं कि उसकी कार क्लब की पार्किंग में मौजूद नहीं थी । अब कहीं तो वो था । कहां था के जवाब में उसने बोल दिया था कि वो बात अहम नहीं थी । मेरी निगाह में आपका इमेज एक सख्त हाकिम का है । हैरानी है कि आपको उसका वो टालू जवाब कुबूल हो गया ।”
“नहीं कुबूल हो गया ? इस बाबत उससे दोबारा - सख्ती से - दरयाफ्त किया गया था ।”
“दैट्स गुड । तो क्या जवाब मिला था ?”
“वो कहता है कि ग्यारह बजे के बाद से वो मीनू सावन्त के साथ था । दोनों लांग ड्राइव का आनन्द लेने निकले हुए थे । मीनू सावन्त इस बात की तसदीक करती है ।”
“वो लड़की महाडिक से फुल फिट है, महाडिक उसे जो कहने को कहेगा वो कहेगी ।”
“मुझे पूरा पूरा अहसास है इस बात का । जमा वो एलीबाई दोतरफा काम करने वाली है । जब वो कहती है कि कत्ल के वक्त के आसपास महाडिक उसके साथ था तो ये कहने की जरूरत नहीं रहती कि तब वो कहां थी । उसकी एलीबाई की बिना पर अगर मैं महाडिक को बेगुनाह मानूंगा तो उसे तो बेगुनाह मुझे मानना ही पड़ेगा ।”
“ठीक ।”
“पिछली रात की महाडिक की आवाजाही सबसे ज्यादा है । अपनी क्लब में ही वो कभी था, कभी नहीं था, कभी था, कभी फिर नहीं था । अपने इतने बिजी शिड्यूल में वो माशूक के साथ ड्राइव के लिये भी निकला हुआ था । मेरा साबसे ज्यादा एफर्ट इसी आदमी को चैक करने में सर्फ हो रहा है ।”
“आई सी । इन्स्पेक्टर साहब, आपने अभी ‘कत्ल के वक्त’ का हवाला दिया । कत्ल के वक्त से क्या मुराद है आपकी ?”
“क्या मतलब ?”
“कल आपने सोच जाहिर की थी कि कत्ल ग्यारह और साढे ग्यारह के बीच में हुआ था । जबकि आपके मैडीकल एग्जामिनर ने वक्त का कहीं बड़ा वक्फा - सवा दस से पौने बारह के बीच का - मुकरर्र किया था । क्या मैं पूछ सकता हूं कि आपने कत्ल के वक्त को इतना क्लोज कैसे पिनप्वायन्ट किया है ?”
“मामूली बात है । मकातूल के टी.वी. पर खबरें देखने के शिड्यूल की बाबत रिजॉर्ट में हर कोई जानता है । कत्ल से पहले मकतूल टी.वी. पर खबरें देख रहा था और जिस वक्त वो ऐसा कर रहा था, वो वक्त ग्यारह बजे की खबरों का था । मकतूल ग्यारह बजे की खबरें देख रहा था तो इसका मतलब है कि टी.वी. पर खबरें लगाने के लिये ग्यारह बजे वो जिन्दा था । खबरें साढे ग्यारह तक आती हैं अगर वो तब तक भी जिन्दा होता तो खबरें खत्म हो जाने के बाद उसने टी.वी. बन्द कर दिया होता । टी.वी. बन्द नहीं था, इसका मतलब है कि वो उन खबरों प्रसारण के दौरान मरा यानी कि ग्यारह और साढे ग्यारह बजे के बीच मरा ।”
“वैरी गुड । ग्रेट डिडक्टिव रीजनिंग । सर, यू आर नो लैस दैन शरलाक होम्ज ।”
वो हंसा ।
“अब मेरे लिये क्या हुक्म है ?”
“कोई हुक्म नहीं । सिवाय इसके कि कहीं खिसक न जाना । और किसी खास बात की भनक लगे तो खबर करना ।”
“जरूर ।”
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