RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“ये भी उन्होंने ही कहा था कि मैं उन्हें रिजॉर्ट में ड्राप करके कार वापिस ले आऊं ताकि वो तुम्हारे काम आ सके ।”
“हूं । करनानी से तुम्हारी अच्छी दुआ सलाम है ?”
“हां, ठीक है । क्लब का रेगुलर जो ठहरा ।”
“क्या बातें करता है ?”
“वहीं जो मर्द लोग करते हैं । कहां से हो ? पॉप सिंगर कैसे बन गयीं ? पहले क्या करती थीं ? आगे क्या इरादे हैं ? स्टेडी कौन है ? है भी या नहीं वगैरह ।”
“बाई दि वे, कहां से हो तुम ?”
“मुम्बई से ।”
“मुम्बई की अच्छी रिप्रेजेंटेशन है आजकल इस इलाके में ।”
“क्या मतलब ?”
“मैं मुम्बई से, मकतूल मुम्बई से, करनानी मुम्बई से, पाटिल मुम्बई से, शायद महाडिक भी मुम्बई से ही है ।”
“मुझे खबर नहीं ।”
“करनानी की तो खबर है कि वो मुम्बई से है ?”
“हां, उसकी तो है ।”
“उसे पहले से जानती हो ?”
“नहीं । यहां मुलाकात हुई । उसने खुद बताया जो जाना कि वो मुम्बई से था ।”
“पाटिल के बारे में क्या कहती हो ?”
“मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानती । कल रात वो क्लब में आया था तो जिन्दगी में पहली बार मैंने उसकी सूरत देखी थी ।”
“आई सी । तुम मुम्बई में कहां रहती थीं ?”
“जोगेश्वरी में ।”
“फैमिली अभी भी वहीं है ?”
“कहां रखी है फैमिली ! बस मां है जो जोगेश्वरी में किराये के एक कमरे में रहती है । बाप कई साल हुए हमें छोड़ के भाग गया था । आज तो ये भी नहीं पता कि वो जिन्दा है या मर गया ।”
“पॉप सिंगर कैसे बन गयीं ?”
“बस, बन गयी किसी तरह से । कुछ तो करना ही था अपना और मां का पेट पालने के लिये । पाप कर लिया । सिंग कर लिया ।”
“महाडिक से कैसे टकरा गयीं ?”
“मैं मुम्बई के एक बियर बार में नाचती गाती थी जहां वो एक बार आया था । मेरा नाच तो उसे यूं ही लगा लेकिन गाने ने उसे मुतासिर किया । बोला, मैं सिर्फ गाने पर तवज्जो दूं तो तरक्की कर सकती थी । जो तरक्की मैंने की वो ये ही की कि उसकी छत्रछाया में यहां आ गयी ।”
“तुम्हारे कहने से लगता है कि छत्रछाया में क्लब में गाने के अलावा भी कुछ शामिल है ।”
“सब कुछ शामिल है । कोई एतराज ?”
“ऐसे शख्स की तो हर बात माननी पड़ती होगी !”
“किसी बात का पीछा नहीं छोड़ते हो । फिर इस बात की तरफ इशारा कर रहे हो कि वो कातिल है और मैं उसकी मददगार हूं ।”
“महाडिक के साथ आइन्दा क्या इरादे हैं ?”
“क्या मतलब ?”
“वो शादीशुदा है ?”
“डाइवोर्सी है ।”
“बच्चे ?”
“एक लड़का था, तलाक के बाद बीवी ले गयी ।”
“शादी करेगा ?”
“कर सकता है ।”
“तुम करोगी ?”
“कर सकती हूं ।”
“कभी कोई बात नहीं उठी ?”
“उठी ।”
“तो किसी अंजाम तक क्यों नहीं पहुंची ?”
“पहुंच जायेगी । जल्दी क्या है ?”
“तुम्हारे बायें हाथ की दूसरी उंगली में मैं एक अंगूठी देख रहा हूं । बड़ी खूबसूरत है ।”
“है तो सही ।”
“कीमती जान पड़ती है ।”
“हीरे की है लेकिन कीमत की खबर नहीं ।”
“वजह ?”
“मिस्टर महाडिक ने दी ।”
“ओहो ! तो यूं कहो न कि मंगनी की अंगूठी है ।”
“यही समझ लो ।”
“फिर भी शादी की बाबत गोल मोल जवाब दे रही थीं । ‘शादी करेगा, कर सकता है; तुम करोगी, कर सकती हूं’ जैसे ।”
वो हंसी ।
“बहरहाल महाडिक के साथ तुम्हारा फ्यूचर है !”
“दिखाई तो देता है ।”
“इसीलिये उसे एलीबाई दी !”
“क्या ?”
“बोला कि कल रात कत्ल के वक्त के आसपास वो तुम्हारे साथ ड्राइव पर था ।”
“फिर पहुंच गये एक आने वाली जगह पर ! फिर इलजाम लगा रहे हो कि मैं उसकी अकम्पलिस हूं और उसकी खातिर झूठ बोल रही हूं !”
“बोल रही हो ?”
“नहीं ।”
“फिर क्या बात है !” - एकाएक वो उठ खड़ा हुआ - “मैं चलता हूं ।”
“कैप्सूल के खोलों की बाबत तुम्हारा क्या इरादा है ? पुलिस को बताओगे ?”
“सोचूंगा मैं इस बाबत । नमस्ते ।”
हकीकतन वो पहले ही सोच चुका था ।
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