RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
रिजॉर्ट में लौट कर उसने थाने फोन लगाया ।
“इन्स्पेक्टर साहब” - वो संजीदगी से बोला - “मैं एक गुनाह कुबूल करना चाहता हूं ।”
“दैट्स वैरी गुड । कनफैशन इज गुड फार सोल । थाने पहुंचो और अपना इकबालिया बयान दर्ज करवाओ । गुनाह कुबूल कर लेने से सजा कम हो जाती है । फांसी की जगह उम्र कैद...”
“खातिर जमा रखिये, जनाब, मैंने वो गुनाह नहीं किया जो आपके जेहन में है ।”
“तुम तो मुझे नाउम्मीद कर रहे हो । मैंने तो खुश होना शुरु भी कर दिया था कि कत्ल हुए अभी चौबीस घन्टे भी नहीं हुए थे कि केस हल हो गया था । खैर, कहो क्या कहना चाहते हो ।”
मुकेश ने कहा ।
वो चुप हुआ तो इन्स्पेक्टर के फट पड़ने के प्रतीक्षा करने लगा ।
लेकिन वैसा न हुआ । इन्स्पेक्टर जब बोला तो उसके स्वर में सिर्फ शिकायत का भाव था ।
“ये तुमने पढे लिखे आदमी वाला काम किया ?”
“मैं शर्मिन्दा हूं । मेरी शर्मिन्दगी ने ही मुझे आपको फोन लगाने को उकसाया है ।”
“चलो, देर आयद दुरुस्त आयद । तो कल रात क्लब में तुम्हारा दूसरा फेरा कार लौटाने के लिये नहीं लगा था इसलिये लगा था क्योंकि तुम्हें शक था कि तुम्हें जानबूझ कर बेहोश किया गया था ।”
“जी हां ।”
“तुमने दोहरी गड़बड़ की जो अब भी अपना बयान दर्ज कराने के लिये पुलिस के पास पहुंचने से पहले उस लड़की से बतियाने बैठ गये । कैप्सूलों के खोल कर रात हम बरामद करते तो हाथ के हाथ साबित कर दिखाते कि वो मीनू सावन्त की मिल्कियत थे । खोलों पर से उसका कोई छोटा मोटा फिंगरप्रिंट भी बरामद हो सकता था । अब फिंगरप्रिंट तुमने बिगाड़ दिये और शीशी वो लड़की गायब कर देगी ।”
“सॉरी ।”
“हम कल उस पर हल्ला बोल पाये होते तो शायद ये भी कुबुलवा लेते कि महाडिक की जो एलीबाई उसने दी थी, वो झूठी थी ।”
“सर, आई एम सॉरी आलरेडी ।”
“और फिर ये तमाम कहानी झूठी हो सकती है...”
“जी !”
“तुमने अपने आप से फोक्स हटाने के लिये गढी हो सकती है ।”
“क्या जुल्म ढा रहे हो इन्स्पेक्टर साहब !”
“ये न भूलो कि मर्डर सस्पैक्ट्स की लिस्ट में तुम्हारा नाम अभी भी दर्ज है ।”
“वो मेरी बदकिस्मती है ।”
“बहरहाल फिर भी मैं उस लड़की से मिलूंगा हालांकि ये सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाली बात होगी ।”
लाइन कट गयी ।
मुकेश ने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रख दिया ।
तभी दरवाजा पर दस्तक पड़ी ।
“खुला है ।” - वो उच्च स्वर में बोला ।
दरवाजा खुला और तनिक झिझकते हुए माधव घिमिरे ने भीतर कदम रखा ।
“मैं ये जानने आया था” - वो करीब आकर बोला - “कि तुम्हारे आगे क्या इरादे हैं ?”
“किस बारे में ?”
“इस रिजॉर्ट के बारे में ।”
“मेरे से क्यों पूछते हैं ?”
“तुम भूल रहे हो कि अब तुम भी इसके शेयर होल्डर हो ।”
“मैं न हूं न होना चाहता हूं ।”
“होना न चाहना जुदा मसला है लेकिन मकतूल की वसीयत की रू में हो तो तुम बराबर ।”
“वसीयत को पाटिल कोर्ट में चैलेंज करने वाला है ।”
“कहना आसान है ।”
“तो मेरा जवाब ये है कि अभी इस बाबत कुछ सोचने की मुझे कोई जल्दी नहीं ।”
“ठीक है । एक बात बताओ । मिस्टर देवसरे ने कभी तुम से कहा था कि वो रिजॉर्ट को बेचना चाहते थे ?”
“नहीं । कभी नहीं ।”
“लेकिन मेरे से कहा था । यहां पहुंचने के बाद पहले ही दिन कहा था ।”
“तब आपने कैसा महसूस किया था ।”
“सच बोलूं तो बहुत बुरा । जिन्दगी में पहली बार मैं अपने आपको तरीके से सैटल हुआ महसूस कर रहा था जबकि मिस्टर देवसरे ने ये बम मेरे सिर पर फोड़ा था । बतौर मैनेजर मुझे यहां पन्द्रह हजार रुपये महीना तनख्वाह मिलती है । साथ में रिहायश के लिये फ्री का कॉटेज है । मेरी मेहनत से रिजॉर्ट ने पहले ही साल ऐसा तगड़ा प्राफिट दिखाया जिसकी कि मिस्टर देवसरे को सपने में उम्मीद नहीं थी । अगले साल और भी बढिया बिजनेस हुआ । तब ईनाम के तौर पर उन्होंने मेरे लिये प्राफिट में एक चौथाई हिस्से का और उनकी मौत की सूरत में प्रापर्टी में एक चौथाई हिस्से का प्रावधान किया । इससे ज्यादा फेयर डील की और कोई क्या उम्मीद कर सकता था ! अपने एम्पलायर की दरियादिली ने मुझे बाग बाग कर दिया था लेकिन फिर ये कह कर उन्होंने मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरका दी कि वो रिजॉर्ट को बेचना चाहते थे ।”
“खरीदार आप भी तो हो सकते थे !”
“ऐसी मेरी दिली ख्वाहिश है लेकिन इतना पैसा कहां रखा है मेरे पास !”
“बैंक से फाइनांस मिलता है ।”
“इतना बड़ा फाइनांस मेरे जैसी मामूली हैसियत वाले आदमी को कहां मिलता है ! मिलता है तो या रिश्वत से मिलता है या बड़ी सिफारिश से मिलता है और मेरे पास इन दोनों ही बातों का कोई इन्तजाम नहीं ।”
“आई सी । लेकिन मिस्टर देवसरे को भी इस बात का अहसास होगा कि उनके रिजॉर्ट बेच देने से आपको भारी नुकसान होता । ये तो ईनाम देकर वापिस छीन लेने वाली बात होती ।”
“मेरी तो उनसे इस बाबत कुछ कहने की मजाल नहीं हुई थी लेकिन उन्होंने खुद ही ये बात उठाई थी और कहा था कि वो मुझे ज्यादा नुकसान नहीं होने देंगे ।”
“अच्छा ! वो कैसे ?”
“वो रिजॉर्ट की डेढ करोड़ कीमत लगाते थे और एक चालीस कुबूल करने के लिये तैयार थे । उन्होंने मुझे कहा था कि एक चालीस से ऊपर जितनी भी रकम का ये रिजॉर्ट बिकेगा वो तमाम की तमाम रकम वो मुझे दे देंगे ।”
“यानी कि दो करोड़ में बिकता तो साठ लाख रुपये आपके । पौने दो करोड़ में बिकता तो पैंतीस लाख रुपये आपके ।”
“हां । जयगढ में ऐसी एक छोटी सी जगह मेरी निगाह में है जो मुझे तीस लाख में मिल सकती थी । ये रिजॉर्ट कम से कम एक सत्तर में बिकता तो मेरा काम बन सकता था लेकिन एक चालीस या उससे कम में बिकता तो मैं बर्बाद था ।”
“अब तो आप ऐसे नहीं होंगे । अब तो तीस लाख से कहीं बड़ी रकम समझिये कि आपकी जेब में है जिससे कि आप जयगढ वाली जगह खरीद सकते हैं और एक रिजॉर्ट के सोल प्रोप्राइटर बन सकते हैं ।”
उसने जवाब न दिया, न ही उसके चेहरे पर उस बात से कोई रौनक आयी ।
“बाई दि वे” - मुकेश बोला - “ये सब आप मुझे क्यों बता रहे हैं ?”
“पुलिस को मुझ पर शक है कि अपने भविष्य को बर्बाद होने से बचाने के लिये मैंने बॉस का कत्ल कर दिया । अब बॉस की जगह तुम हो इसलिये मेरा जी चाहा कि मैं अपनी सफाई पेश करूं और तुम्हें विश्वास दिलाने की कोशिश करूं कि मैं कातिल नहीं हूं ।”
आखिरी शब्द कहते कहते उसका गला रुंध गया ।
मुकेश भी जज्बाती हुए बिना न रह सका ।
“मिस्टर घिमिरे” - वो बोला - “मुझे पूरा यकीन है कि आप कातिल नहीं हैं । आप जैसा शरीफ और स्वामीभक्त आदमी कातिल हो ही नहीं सकता । आप इतमीनान रखिये जल्दी ही कातिल पकड़ा जायेगा और आप अपने आप ही कत्ल के शक से बरी हो जायेंगे ।”
“यू थिंक सो ?”
“यस ।”
“थैंक्यू । थैंक्यू वैरी मच । बहुत चैन पहुंचाया तुमने मेरे दिल को । थैंक्यू ।”
घिमिरे के जाने के लगभग फौरन बाद विनोद पाटिल पहुंच गया और आते ही उसने भी ऐन वही जुबान बोली जो घिमिरे ने बोली थी ।
“तुम्हारे आगे क्या इरादे हैं ?”
“किस बारे में ?”
“इस जगह के बारे में और किस बारे में ?”
“तुम मकतूल की वसीयत को कोर्ट में चैलेंज करने वाले हो तो मेरे इरादे तो चैलेंज को चैलेंज करने के ही होंगे ।”
“वसीयत जुदा मसला है, ये रिजॉर्ट जुदा मसला है ।”
“तुम्हारे लिये होगा, मेरे लिये सब एक ही मसला है ।”
“इस बाबत मेरे पास बुरी खबर भी है और अच्छी खबर भी है ।”
“अच्छा !”
“हां । बुरी खबर ये है कि मेरी माली हालत बहुत पतली है जिसका जल्दी कोई इलाज न हुआ तो मेरा अंजाम बहुत बुरा होगा ।”
“मुझे तुमसे हमदर्दी है । अच्छी खबर क्या है ?”
“मैंने मकतूल की वसीयत को कोर्ट में चैलेंज करने का इरादा छोड़ दिया है ।”
“बड़ी जल्दी जोश ठण्डा हुआ । कल तो यूं भड़क रहे थे जैसे कि...”
“कल की बात कल के साथ गयी, भाई मेरे । अब तुम रिजॉर्ट की इमीजियेट सेल का या इसे गिरवी रख के बैंक से पैसा हासिल करने का इन्तजाम करो और मेरा हिस्सा मेरे मत्थे मारो ताकि मैं अपनी राह लगूं ।”
“अभी कैसे राह लग सकते हो ? क्या भूल गये कि इन्स्पेक्टर अठवले ने इस बाबत हर किसी को क्या वार्निंग दी थी ?”
“तुम पहला काम करो, दूसरे से मैं खुद निपट लूंगा ।”
“मिस्टर देवसरे की जिन्दगी तुम्हारी वजह से अजीर्ण थी । लगता है तुम नहीं चाहते कि वो मर के भी चैन पायें ।”
“मेरे चाहने से क्या होता है ? मेरे चाहने से कुछ होना होता तो कल मुझे उनकी दुत्कार न सहनी पड़ती । ऐसे तो कोई ड्योढी पर आये कुत्ते से पेश नहीं आता, मैं तो उनका दामाद था ।”
“जबरदस्ती का ।”
“जैसा भी था, था ।”
“बकौल, मिस्टर देवसरे, उन्होंने कभी तुम्हें दामाद नहीं माना ।”
“बेटी को तो बेटी माना या वो भी नहीं माना ?”
“जिसकी औलाद को तुमने बर्बाद कर दिया - एक राजकुमारी को महलों से निकाल कर चाल में पहुंचा दिया - जिसकी मौत की तुम वजह बने, उसका बदनसीब बाप क्या तुम्हारी आरती उतारता !”
“कौन किसको मार सकता है ! जिन्दगी और मौत ऊपर वाले के हाथ होती है ।”
“ये थियेट्रिक्ल डायलाग है ।”
“हर कोई मुझे सुनन्दा की मौत के लिये जिम्मेदार ठहराता है और विलेन के रंग में रंगता है । कोई इस बात की तरफ ध्यान नहीं देता कि एक बाप की बेटी ही नहीं मरी थी, एक पति की पत्नी भी मरी थी । मकतूल ने बेटी खोई, तुमने उसे बदनसीब कहा, मैंने बीवी खोई, मुझे क्या कहोगे ? खुशकिस्मत ! मुकन्दर का सिकन्दर ! ए मैन आन टॉप आफ दि वर्ल्ड ?”
मुकेश से जवाब देते न बना ।
“बेटी की मौत का सदमा बुजुर्गवार पर इतना भारी गुजरा कि, मुझे अब मालूम हुआ है कि, उन्होंने दो बार आत्महत्या कर लेने की कोशिश की । मैंने ऐसा कुछ न किया, क्या इसीलिये उनका गम गम है, मेरा गम कहानी है ! उनका खून खून है, मेरा खून पानी है !”
आखिरी शब्द कहते कहते उसकी आंखें डबडबा आयीं । मुकेश फैसला न कर सका कि वो ड्रामा कर रहा था या सच में भावुक हो उठा था ।
“मैंने सुनन्दा को बरगला कर, बहला फुसला कर अपना नहीं बनाया था, उसने अपने मर्जी से, तमाम ऊंच नीच विचार के मेरे से शादी की थी । वो जानती थी शादी की खबर से उसका पिता आगबगूला हो उठेगा लेकिन उसे यकीन था कि धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा । और क्या गलत यकीन था, आखिर वो मकतूल की इकलौती औलाद थी । उसने तो जैसे मुझे सजा देने के लिए अपनी औलाद से नाता तोड़ दिया । क्या वो कभी जान पाया कि उसके उस व्यवहार का उसकी बेटी के दिल पर क्या असर हुआ था ?” - उसने अवसादपूर्ण भाव से गर्दन हिलायी और फिर बोला - “हर किसी को अपनी मुसीबत बड़ी लगती है, दूसरे की गौरतलब भी नहीं लगती । सयाने लोग कहते हैं कि क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात । कहां क्षमा करते हैं बड़न ! कहां क्षमा किया हमारे बड़न ने ! कल मेरे से यूं पेश आया जैसे कोई मंगता उसके घर आटा मांगने आया था । माली दुश्वारी का मारा मैं एक जायज और हक की बात कहने आया था, उसके हाथ जैसे मौका लग गया मुझे जलील करने का, मुझे मेरी औकात दिखाने का ।”
“एक्सीडेंट कैसे हुआ था ?”
“मुझे एक फिल्म में काम मिला था जिसकी फिल्म सिटी में शूटिंग थी । एक दोस्त की कार पर मैं सुनन्दा के साथ फिल्म सिटी के लिये रवाना हुआ था । रास्ते में रांग साइड पर चलता एक वाटर टैंकर सामने आ गया । मैंने तभी मोड़ काटा था और उस सड़क पर विपरीत दिशा से आते किसी वाहन का सवाल ही नहीं था इसलिये धोखा खा गया । कार टैंकर से जा टकराई, इत्तफाक से टक्कर से ड्राइविंग सीट का दरवाजा खुल गया और मैं बाहर जा गिरा । सुनन्दा के साथ ऐसा कुछ न हुआ, टैंकर कार पर चढ गया और वो मारी गयी । विलेन तो मैं पहले से ही था मकतूल की निगाह में, उस वारदात ने मेरे किरदार पर स्याह काला रंग पोत दिया । टैंकर वाले की कोई गलती नहीं थी, सब मेरी गलती थी । न मैं शादी करता, न सुनन्दा मेरे साथ होती, और न एक्सीडेंट में जान से जाती । मैं कह पाता तो कहता कि बुजुर्गवार बात को जरा और पीछे ले जाइये; न आप सुनन्दा की मां से शादी करते, न सुनन्दा पैदा होती और फिर न वो सब कुछ होता जो हुआ । बल्कि बिल्कुल ही पीछे ले जाइये । न खुदा ने आदम बनाया होता, न उसकी पसली से हव्वा बनाई होती, न ह्यूमन रेस की शुरुआत होती, न बुजुर्गवार होते, न उनकी बेटी होती, न मैं होता । मैं बड़ा विलेन नहीं हूं, बड़ा, सबसे बड़ा, विलेन खुदा है जिसने ये सृष्टि बनायी ।”
“वैरी वैल सैड ।”
“अब छोड़ो वो किस्सा और रिजॉर्ट की बात करो ।”
“क्या बात करूं ?”
“कल बुजुर्गवार ने इसे डेढ करोड़ की प्रापर्टी बताया था । उस लिहाज से मेरा हिस्सा साढे सैंत्तीस लाख बनता है । मैं पच्चीस में सैटल करने को तैयार हूं बशर्ते कि रकम मुझे अभी मिले ।”
“अभी कैसे मिल सकती है ?”
“तुम बताओ । आखिर मकतूल के वारिस हो । ऊपर से वकील हो ।”
“नहीं मिल सकती । पहले मरने वाले का अन्तिम संस्कार होना होगा फिर वसीयत को प्रोबेट के लिये कोर्ट में पेश किया जाना होगा, वहां कोई अड़ंगा न हुआ तो खरीदार तलाश करना होगा... लम्बी प्रक्रिया है ।”
“अन्तिम संस्कार कौन करेगा ?”
“तुम्हारा अपने बारे में क्या ख्याल है ?”
“मैं !” - वो हंसा - “मैं चिता के पास भी फटका तो बुजुर्गवार उठ के खड़े हो जायेंगे मुझे लताड़ लगाने के लिये और मुझे याद दिलाने के लिये कि उन्होंने कभी मुझे अपना दामाद नहीं माना था ।”
“ऐसा कहीं होता है !”
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