RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
एक लम्बे गलियारे में चलाता वो उसे एक ऑफिसनुमा कमरे में लाया जिसकी सजावट किसी इन्टीरियर डेकोरेटर का कमाल जान पड़ती थी । दीवारों से सटे बुकशैल्फ अनछुई किताबों से भरे हुए थे । एक दीवार के साथ एक शीशों की सजावट वाला बार था जिस पर बेल्जियम क्रॉकरी और स्कॉच विस्की बहुतायत में दिखाई दे रही थी । ऑफिस टेलब नक्काशीदार आबूनस की लकड़ी की थी और एग्जीक्यूटिव चेयर चमड़ा मंढी थी । वैसी ही टेबल के सामने लगी चार विजिटर्स चेयर थीं ।
वो एग्जीक्यूटिव चेयर पर ढेर हुआ और बोला - “बैठो ।”
“थैंक्यू ।”
दिनेश पारेख पढा लिखा था या अनपढ, शरीफ आदमी था या गैंगस्टर, कहना मुहाल था लेकिन एक बात प्रत्यक्ष थी कि वो सम्पन्न था और उसमें स्टाइल और शानबान की कोई कमी नहीं थी ।
उसने एक पेपरवेट थाम लिया और लट्टू की तरह उसे घुमाने लगा ।
“अब बोलो” - फिर वो बोला - “क्या कहना चाहते हो ?”
“तो ये बात सच है कि आप ब्लैक पर्ल क्लब खरीदना चाहते थे ?”
“हां ।”
“अस्सी लाख में सौदा हुआ था ?”
“सौदा नहीं हुआ था, मैंने इतनी कीमत की पेशकश की थी जिसके बारे में देवसरे ने सोच के बताना था ।”
“कब ?”
“आज । आज वो आफर कुबूल करने को जिन्दा होता तो हफ्ते भर में डील मुकम्मल हो जाता ।”
“मुझे हैरानी है कि आप वो क्लब खरीदने के ख्वाहिशमन्द हैं ।”
“क्यों भला ?”
“वो एक छोटी जगह है जो आपकी मौजूदा हैसियत से मेल नहीं खाती ।”
“तुम्हें क्या पता मेरी मौजूदा हैसियत का ?”
“आंखों से दिखाई दे रही है, कानों से भी सुनी ।”
“हूं ।” - उसने इतने जोर लट्टू घुमाया कि वो मेज से नीचे गिरता गिरता बचा - “मेरे भाई, जब ब्लैक पर्ल मेरी मिल्कियत होगी तो वो आज जैसी दिखाई नहीं देगी; वो साइज और सजावट दोनों में अबसे बड़ी और उम्दा होगी । कैसीनो तो मेरे गोवा के कैसीनो जैसा भव्य होगा । फिर देखते ही बनेगी बिजनेस की बहार ।”
“आई सी ।”
“महाडिक काबिल आदमी है लेकिन उसका बार पर जोर है । बार का क्या है, लोगबाग कारों में बैठ के पी लेते हैं, सरे राह पी लेते हैं, स्पैशिलिटी तो, टूरिस्ट अट्रैक्शन तो कैसीनो है जिसकी तरफ उसकी बार से आधी भी तवज्जो नहीं ।”
“आप ठीक कह रहे हैं ।”
“क्लब मेरे हाथ में आ जाये फिर देखना उसकी रौनक । एक चार पीस के बैंड और एक पॉप सिंगर से मेहमानों का कहीं मनोरंजन होता है ! मैं मुम्बई का टॉप का आर्केस्ट्रा वहां खड़ा करूंगा, कलकत्ते से टॉप की डांसर्ज बुलाऊंगा, फिर पहली ही चोट में प्राफिट चोट गुणा से ऊपर न पहुंच जाये तो कहना ।”
“क्लब आप खरीद लेते तो महाडिक का क्या होता ?”
“जाहिर है कि बुरा होता । लेकिन जो होता उसके लिये वो किसी को ब्लेम नहीं कर सकता । उसकी खुद की गलती है कि उसने देवसरे के साथ ऐसा स्टूपिड कान्ट्रैक्ट किया ।”
“उसे उम्मीद नहीं होगी न कि मिस्टर देवसरे कभी क्लब को बेचने की सोचने लगेंगे ।”
“यही बात है जिसका खामियाजा वो भुगतता । उस क्लब में फर्नीचर, किचन का तामझाम और जुए का साजोसामान उसका है, क्लब बिक जाने या देवसरे के उसकी लीज को रीन्यू करने से इनकार की सूरत में उसे वो तमाम साजोसामान वहां से उठा ले जाना पड़ता जो कि उसके लिये और भी बड़ी जहमत होता ।”
“बेच देने में क्या जहमत होती ?”
“कोई जहमत न होती । बिक तो वो क्लब में पड़ा पड़ा ही जाता लेकिन कोई कबाड़ी ही खरीदता जो रुपये के चार आने भी दे देता तो गनीमत होती । न बेचता तो स्टोरेज के लिये जगह तलाश करता फिरता ।”
“लेकिन आप खरीदते तो....”
“मैं कैसे खरीदता ? मेरा मिशन उस क्लब को चमकाना है, उसकी हैसियत बनाना है और मुनाफा बढाना है । ऐसा उसे उसके मौजूदा फटेहाल में चलाये रखने पर क्योंकर मुमकिन होता ?”
“ये भी ठीक है । अगर महाडिक ही क्लब को खरीदने की पेशकश करता तो क्या आप भाव बढा देते ?”
“नहीं । तो मैं सौदे से हाथ खींच लेता । मेरा अस्सी से ऊपर जाने का कोई इरादा नहीं था । वो मेरी टॉप आफर थी ।”
“महाडिक इस रकम का इन्तजाम नहीं कर सकता ?”
“जाहिर है कि नहीं कर सकता । कर सकता होता तो कर चुका होता ।”
“उसकी माली हालत इतनी कमजोर थी ?”
“कमजोर की मैं नहीं जानता लेकिन इतना जानता हूं कि हालिया कुछ दिनों में रॉलेट व्हील ने उसकी अच्छी कमर तोड़ी थी ।”
“सुना है मैंने । खुद आप ही ग्यारह लाख रुपये खींच लाये थे ।”
वो हंसा ।
“लेकिन” - फिर वो बोला - “अब इस गुफ्तगू का क्या मतलब है ? देवसरे की मौत की रू में अब तो तमाम सीनेरियो बदल गया है । अब तो उसके पास चायस है, अब वो पूर्वस्थापित शर्तों पर अपने कान्ट्रैक्ट को जब तक चाहे चलाये रख सकता है या मार्केट वैल्यू पर प्रापर्टी खुद खरीद सकता है ।”
“जब उसकी माली हालत कमजोर है तो....”
“अब कमजोर है । आगे सुधर सकती है । फिर दस जुलाई के बाद कान्ट्रैक्ट रीन्यू करने की पेशकश करके वो क्लब की सेल में अड़ंगा तो लगा ही सकता है ।”
“आप उस कान्ट्रैक्ट से बाखूबी वाकिस मालूम होते हैं ।”
“हूं तो सही । जिस आइटम का सौदा करना हो, उसकी हर टर्म एण्ड कन्डीशन की जानकारी तो रखनी पड़ती है न !”
“और आपकी जानकारी ये कहती है कि मिस्टर देवसरे के वारिस की हैसियत में मैं क्बल को नहीं बेच सकता ।”
“पहले वारिस बन तो लो । क्या पता इस मामले में दिल्ली अभी दूर हो ।”
“फर्ज कीजिये मेरे विरसे में कोई अड़ंगा नहीं, फिर आपका क्या जवाब है ?”
“मेरा जवाब यही है कि महाडिक अड़ंगा लगा सकता है, लगायेगा । नहीं लगायेगा तो सड़क पर होगा ।”
“ओह ।”
“इसलिये अगर क्लब के सौदे की खातिर तुम यहां आये हो तो बेकार आये हो । जिस प्रापर्टी में कोई डिस्प्यूट हो, वो तो मैं भी नहीं खरीदना चाहता ।”
“आपकी जानकारी के लिये मैं पेशे से वकील हूं और मेरा कानूनी ज्ञान ये कहता है कि कोई एग्रीमेंट, कोई कान्ट्रैक्ट इतना परफैक्ट नहीं होता कि उसमें कोई नुक्स न निकाला जा सके, कोई पंगा न डाला जा सके । अब मेरा सवाल यह है कि अगर मैं महाडिक के कान्ट्रैक्ट में कोई पंगा डाल पाऊं और उसे वाहड और अनमेनटेनेबल साबित कर दिखाऊं तो तब क्या आप अभी भी उस प्रापर्टी के खरीदार होंगे ?”
उसके नेत्र सिकुड़े और माथे पर बल पड़े, कुछ क्षण अपलक उसने मुकेश को देखा ।
“ऐसा हो सकता है ?” - वो बोला - “उसे कान्ट्रैक्ट को तोड़ा जा सकता है ?”
“उम्मीद तो बराबर है ।”
“उम्मीद !”
“ऐसे मामलों में गारन्टी करना बहुत मुश्किल होता है । अकेला मैं ही वकील नहीं हूं इस दुनिया में । बड़े बड़े आलादिमाग बैठे हैं इस धन्धे में जो कि तोड़ का भी तोड़ निकाल लेते हैं ।”
“तुमने कान्ट्रैक्ट देखा है ?”
“मिस्टर देवसरे के दिखाये एक बार देखा था ।” - मुकेश ने साफ झूठ बोला ।
“तब तुमने देवसरे पर ये खयाल क्यों नहीं जाहिर किया था कि वो कान्ट्रैक्ट कमजोर था और उसे तोड़ा जा सकता था ?”
मकेश गड़बड़ाया लेकिन जल्दी ही उसने अपने आप पर काबू पा लिया ।
“तब कान्ट्रैक्ट मुझे चौकस लगा था” - वो बोला - “क्योंकि तब मिस्टर देवसरे जिन्दा थे और कान्ट्रैक्ट में खास नुक्स निकालने की कोशिश के तहत उसको स्टडी करने की कोई जरूरत सामने नहीं थी । जमा तब मुझे ये नहीं मालूम था कि मैं मिस्टर देवसरे की वसीयत का बैनीफिशियेरी था । किसी तहरीर में कोई नुक्स निकाल के रहना हो तो उसे हरुफ-ब-हरुफ कई कई बार पढना पड़ता है । ऐसी कोई जरूरत तब सामने नहीं थी ।”
उसी क्षण तेजी से घूमता पेपरवेट पारेख की पकड़ से निकल गया, उसने उसे सम्भालने की कोशिश की तो उसका हाथ मेज के दायें कोने में पड़े कागजात के ढेर से टकराया नतीजतन कुछ कागज हवा में उड़ते नीचे कालीन पर जा गिरे ।
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