RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
अलीशा की किसी बात से वो आश्वस्त नहीं थी फिर भी उसके मन में एक अनजाना खौफ घर कर गया था । कातिल भले ही पाटिल नहीं था लेकिन जो कोई भी कातिल था उसे बतौर चश्मदीद गवाह उसकी गवाही का खौफ हो सकता था और फिर वो उसका मुंह हमेशा के लिये बन्द करने की कोशिश कर सकता था ।
सहेली की बातों से आश्वस्त न होने के बावजूद उसने उस घड़ी फैसला किया कि जब तक कातिल पकड़ा नहीं जायेगा तब तक सच में ही वो अकेली कहीं नहीं जायेगी ।
जयगढ से रिजॉर्ट को जाती सड़क कोई बहुत चलता रास्ता नहीं था, दिन में ही उस पर ज्यादा ट्रैफिक नहीं होता था, रात को तो वो रास्ता अक्सर सुनसान हो जाता था लेकिन गनीमत थी कि तब अभी रास्ता उतना सुनसान नहीं था । फिर भी उसका जी चाहने लगा कि वो जल्दी से जल्दी रिजॉर्ट वापिस पहुंच जाती लिहाजा उसने कार की रफ्तार बढा दी । अमूमन वो कार को पचास-साठ से ऊपर नहीं चलाती थी लेकिन तब रफ्तार अस्सी पर पहुंच गयी ।
उस रफ्तार पर भी कभी कभी कोई वाहन पीछे से आता था और उसे ओवरटेक कर जाता था । यूं कोई बस या ट्रक उसे ओवरटेक करता था तो वो बहुत नर्वस हो जाती थी लेकिन गनीमत थी कि तब ऐसा नहीं हुआ था, जिस वाहन ने भी उसे ओवरटेक किया था वो कोई कार ही थी ।
तभी आगे वो मोड़ आया जिसके बाद सड़क ऊंची उठने लगती थी और एक चट्टानयुक्त हिस्से को पार करके फिर ढलान पर उतरती थी और रास्ता आम सड़क जैसा बनता था । सड़क का चार मील का वो हिस्सा उसका देखा भाला था, वहां उसने कार की रफ्तार घटा कर पैंसठ कर ली ।
एक कार उसके पीछे प्रकट हुई ।
उसने अपनी कार को बाजू में कर लिया लेकिन पिछली कार ने उसे ओवरटेक करने की कोशिश न की । पिछली कार वाले ने हैडलाइट्स को हाई बीम पर लगाया हुआ था इसलिये उसे रियर व्यू मिरर में चकाचैंध के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था ।
फिर पिछली कार की रफ्तार यूं तेज हुई जैसे आखिरकार ड्राइवर ने उसे ओवरटेक करने का मन बना लिया हो ।
कार बिलकुल रिंकी के पीछे पहुंच गयी तो उसने अपनी कार को और बाजू में कर लिया ।
पिछली कार उसके बाजू में पहुंची । उसने सीधे गुजर जाने के जगह एकाएक जोर से बायीं ओर झोल खाया ।
रिंकी के प्राण कांप गये, उसने जोर से ब्रेक के पैडल पर पांव दबाया ।
पिछली कार उससे रगड़ खाती हुई आगे गुजर गयी । उसके उतना सा छूने से भी रिंकी की कार ऐसी डगमगाई कि उसे उसका उलट जाना निश्चित लगने लगा । तब पता नहीं कैसे वो स्टियरिंग को, ब्रेक को, एक्सीलेटर को कन्ट्रोल कर पायी और कार उलट कर गहरी अन्धेरी खड्ड में जा गिरने का खतरा बिलकुल ही खत्म नहीं हो गया था ।
पूरी शक्ति से वो कार के कन्ट्रोल से जूझती रही ।
आखिरकार बायीं ओर के पहिये वापिस सड़क पर चढे और कार का झूलना, उलटने की धमकी देना, बन्द हुआ ।
बड़ी मुश्किल से उसने कार को रोका ।
उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी और उसे यकीन नहीं आ रहा था कि वो एक्सीडेंट का शिकार होने से बच गयी थी ।
हे भगवान ! - बार बार उसने मुंह से निकल रहा था - हे भगवान !
उसके होशहवास काबू में आये तो पहला सवाल उसके जेहन में यही आयाः
क्या वो देवसरे के कातिल का शिकार बनने से बाल बाल बची थी ?
अगर ऐसा था तो अलीशा की बात कितनी सच निकली थी कि उसके कत्ल की कोशिश हो सकती थी ।
कोशिश हो भी चुकी थी ।
***
एक सौ चालीस किलोमीटर का वापसी का सफर मुकम्मल करने में मुकेश को नौ बज गये ।
तब रिजॉर्ट में वापिस लौटने की जगह उसने ब्लैक पर्ल क्लब का रुख किया ।
क्लब में वो सीधे बार पर पहुंचा जहां से उसने विस्की का एक लार्ज ड्रिंक हासिल किया । उसे आनन फानन हलक से उतार कर दूसरा ड्रिंक हासिल कर चुकने के बाद उसने हॉल में निगाह दौड़ाई तो उसे एक टेबल पर बैठी, कुछ लोगों के साथ बतियाती, मीनू सावन्त दिखाई दी ।
मीनू ने भी उसे देखा तो वो उठ कर उसके करीब पहुंची ।
उस घड़ी वो एक स्लीवलैस, लो नैक, स्किन फिट गाउन पहने थी जिसमें से उसका अंग अंग थिरकता जान पड़ता था ।
“बधाई ।” - वो व्यंग्पूर्ण स्वर में बोली ।
“किस बात की ?”
“थोबड़ा बन्द न रखने की ।”
“किस बाबत ?”
“तुम्हें नहीं मालूम किस बाबत ?”
“पहेलियां बुझाती हो ।”
“अच्छा !”
“और झगड़ती हो । खफा होती हो । बोलती हो, कहती कुछ नहीं हो ।”
“वो इन्स्पेक्टर, जिसके सामने कैप्सूल कथा करने से बाज नहीं आये, अभी यहां से गया है । गनीमत ही समझो कि मुझे भी साथ ही न ले गया ।”
“कैप्सूल्स की वजह से ?”
“हां ।”
“बरामद हुए ?”
“नहीं ।”
“फिर क्या प्राब्लम है ?”
“साफ इलजाम लगा रहा था कि तुम्हारे से बात होने के बाद मैंने उन्हें ठिकाने लगा दिया । बार बार पूछ रहा था कहां ठिकाने लगाये ।”
“तुमने क्या जवाब दिया ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है !”
“क्या जवाब दिया ?”
“यही कि मुझे ऐसे किन्हीं कैप्सूलों की खबर नहीं । मैं नींद की दवा नहीं खाती । उसने तुम्हारा हवाला दिया तो मैंने बोल दिया कि तुम झूठ बोल रहे थे ।”
“बढिया ।”
तभी उसकी निगाह महाडिक पर पड़ी जो कि मेजों के बीच चलता उन्हीं की तरफ बढा चला आ रहा था । उसने जल्दी से अपना गिलास खाली किया, दो ड्रिंक्स का बिल अदा किया, मीनू का कन्धा थपथपा कर उसे ‘सी यू’ बोला और बिना महाडिक की तरफ निगाह डाले उससे विपरीत दिशा में चल दिया ।
अपनी कार पर सवार होकर वो रिजॉर्ट पहुंचा ।
इस बार रिंकी की मारुति-800 वहां पार्किंग में खड़ी थी ।
संयोगवश कार का वो ही पहलू उसकी तरफ था जिधर से वो एक्सीडेंट में पिचकी थी ।
तभी वो खुद भी उसे रेस्टोरेंट के दरवाजे पर दिखाई दी ।
हाथ के इशारे से उसने उसे करीब बुलाया ।
“क्या हुआ ?” - उसने सशंक भाव से पूछा ।
रिंकी ने बताया ।
“तौबा !” - सुनकर वो बोला - “किसी ने तुम्हें जबरन एक्सीडेंट में लपेटने की कोशिश की ?”
“तकदीर ने ही बचाया ।” - सहमति से सिर हिलाती वो बोली ।
“कौन होगा कमीना ?”
रिंकी ने अलीशा का शक उस पर जाहिर किया ।
“तुम्हारी सहेली जासूसी नावलों की रसिया जान पड़ती है” - मुकेश तनिक हंसा - “जो आननफानन ऐसे नतीजे निकाल लेती है ।”
“तो वो मेरे कत्ल की कोशिश नहीं थी ?”
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