RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“तुम्हारे पर अपनी सहेली का रोशन खयाल हावी था इसलिये वो हादसा हुआ तो तुम कूद कर उस नतीजे पर पहुंच गयीं । असल में हो सकता है कि दूसरी कार का ड्राइवर नशे में हो या कोई नाबालिग लड़का हो जो थ्रिल के लिये अन्धाधुन्ध कार चला रहा हो ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“लेकिन वो भी तो हो सकता है जो मेरी फ्रेंड बोली !”
“होने को क्या नहीं हो सकता लेकिन... बाई दि वे, कार कौन सी थी ? रंग कैसा था ?”
“मैं नहीं देख सकी थी ।”
“अरे, कुछ तो देखा होगा ।” - मुकेश तनिक झुंझलाया - “जब ये देखा था कि वो कार थी, कोई वैन नहीं थी, टैम्पो नहीं था, मिनी बस नहीं था तो कुछ तो देखा होगा । रंग न सही, नम्बर न सही, मेक न सही कुछ तो देखा होगा । और कुछ नहीं तो शेप तो देखी होगी, ये तो देखा होगा कि वो तुम्हारी खुद की कार जैसी कोई छोटी कार थी या कालिस या वरसा जैसी कोई बड़ी गाड़ी थी ।”
“बड़ी गाड़ी थी ।”
“गुड ।”
“शायद... शायद एम्बैसेडर थी ।”
“पक्की बात ?”
“नहीं, पक्की बात नहीं । तुम जोर देकर पूछ रहे हो इसलिये मैं अपना सबसे करीबी अन्दाजा बता रही हूं ।”
“तो तुम्हारा क्लोजेस्ट गैस ये है कि वो कार एम्बैसेडर हो सकती थी ?”
“हां ।”
“अब रंग की बाबत दिमाग पर जोर दो । कुछ न सूझे तो यही खयाल करो कि रंग डार्क था या लाइट था !”
“लाइट था ।”
“मसलन सफेद !”
“हो सकता है ।”
“सफेद एम्बैसेडर !”
“घिमिरे के पास है ।” - वो धीरे से बोली ।
“हूं । अगर किसी ने जानबूझकर वो हरकत की थी तो जाहिर है कि उसे तुम्हारे आज के शिड्यूल की खबर थी । उसे मालूम था कि तुम सारा दिन जयगढ में गुजारने वाली थीं और फिर शाम को अन्धेरा होने के बाद वापिस लौटने वाली थीं । ये नहीं भी मालूम था तो तुम्हारी वापिसी पर निगाह वो बराबर रखे था । जमा ऐसी हरकत अपनी कार से करने की हिमाकत करने जितना अहमक कोई नहीं होता इसलिये कोई बड़ी बात नहीं कि वो कार चोरी की हो ।”
“चोरी की ?”
“या यूं समझो कि मालिक की जानकारी के बिना थोड़ी देर के लिये उधार ली हुई ।”
“कहां से ?”
“क्लब से बेहतर जगह और कौन सी हो सकती है ! वहां इतने लोग कारों पर आते हैं जो कि घन्टों बाहर पार्किंग में लावारिस सी खड़ी रहती हैं । अपने रेगुलर पैट्रंस के बारे में तो महाडिक को ये तक पता रहता होगा कि वहां कौन कितने घन्टे ठहरता था ।”
“महाडिक को ?”
“हां ।”
“उसने ये हरकत की होगी ?”
“खुद करने की क्या जरूरत है ! वहां इतना स्टाफ है जिनमें कितने ही जने उसके खास वफादार होंगे । वो किसी को भी ये काम करने को तैयार कर सकता था ।”
“लेकिन वो क्यों ऐसा करेगा ? या करायेगा ?”
“कल रात तुमने उसे यहां देखा था । सिर्फ तुमने उसे यहां देखा था ।”
“उसमें भेद है ।” - वो दबे स्वर में बोली ।
“क्या भेद है ?”
“मैंने महाडिक की कार को देखा था; महाडिक को, सच पूछो तो, मैंने नहीं देखा था ।”
“एक ही बात है । महाडिक से खास पूछा गया था कि क्या उसने कल रात किसी को अपनी कार किसी को इस्तेमाल के लिये दी थी ? उसका जवाब इनकार में था । उसने ये तक कहा था कि वो कभी किसी को अपनी कार उधार नहीं देता था । इसका क्या साफ मतलब ये न हुआ कि अपनी कार पर वो ही सवार था ?”
“साफ तो न हुआ ।”
“क्या ?”
“जो बात महाडिक पर लागू है, वो क्या घिमिरे पर लागू नहीं ?”
“क्या मतलब ?”
“मालिक की जानकारी के बिना अगर महाडिक की कार थोड़ी देर के लिये उधार ली जा सकती है तो क्या ऐसे घिमिरे की कार उधार नहीं ली जा सकती ?”
मुकेश हकबकाया सा उसका मुंह देखने लगा ।
“ली तो जा सकती है ।” - फिर उसने कुबूल किया ।
“सो देयर ।”
“लेकिन क्लब के सामने खड़ी इतनी कारों में से महाडिक की कार ही क्यों ?”
“रिजॉर्ट में खड़ी इतनी कारों में से घिमिरे की कार ही क्यों ?”
“क्या बात है ? वकील क्यों न हुई तुम ?”
वो खामोश रही ।
“और क्या देखा था तुमने ?” - मुकेश ने पूछा ।
“और क्या देखा था मैंने ?”
“क्या कार के अलावा और ऐसा कुछ देखा था जो महाडिक की तरफ इशारा करता हो ?”
“नहीं, मैंने और कुछ नहीं देखा था ।”
“सोच के जवाब दो ।”
“सोच के ही जवाब दिया है ।”
“कल रात जब तुम करनानी के साथ बीच के लिये रवाना हुई थीं तो क्या तुमने यहां कहीं कोई सलेटी रंग की फोर्ड आइकान देखी थी ?”
“नहीं ।”
“करनानी ने देखी हो ?”
“उसका उसे पता होगा ।”
“तुम दोनों साथ तो थे ?”
“तब नहीं थे जब मैं अपने कॉटेज में स्वीमिंग कास्ट्यूम पहनने गयी थी ।”
“हां, तब नहीं थे । कितनी देर तक तुम उससे अलग रही थीं ?”
“यही कोई पांच या छः मिनट । कपड़े उतारकर स्वीमिंग कास्ट्यूम पहनने में, बाल बान्धने में और एक बीच बैग सम्भालने में और कितना टाइम लग सकता है ?”
“जब तुम अपने कॉटेज से बाहर निकली थीं, तब वो भी बाहर निकल चुका था या तुम्हें उसका इन्तजार करना पड़ा था ।”
“इन्तजार करना पड़ा था । लेकिन ज्यादा नहीं । बड़ी हद एक या दो मिनट ।”
“इसका मतलब ये तो नहीं कि वो एक या दो मिनट ही बाहर से गैरहाजिर था ।” - मन ही मन इन्स्पेक्टर की सोच को हवा देता मुकेश बोला - “एक दो मिनट तो तुम्हें उसका इन्तजार करना पड़ा था, गैरहाजिर तो वो ज्यादा वक्फे से हो सकता था ।”
“वो तो है । करनानी की बाबत इतने सवाल किसलिये ?”
“कोई खास वजह नहीं । सिवाय इसके कि, जैसा कि सुनने में लगता था, वो हर घड़ी तुम्हारे साथ नहीं था, सात आठ मिनट का एक वक्फा ऐसा था जब तुम्हें नहीं मालूम कि वो कहां था !”
“इतने से वो कातिल हो गया ?”
“क्या पता लगता है ! ये पुलिस जाने और पुलिस का काम जाने । पुलिस पर एक बात याद आयी । तुमने अपने एक्सीडेंट की रिपोर्ट पुलिस को की ?”
“नहीं ।”
“करनी चाहिये थी ।”
“मैं इतनी घबराई हुई थी कि मुझे ऐसा करने का खयाल ही नहीं आया था । मैं अब अगर थाने फोन कर दूं तो चलेगा ?”
“चलेगा ।”
“उस इन्स्पेक्टर का नम्बर बताओ जो कि थाने का इंचार्ज है ।”
मुकेश ने बताया ।
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