RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
दोपहर के करीब मुकेश थाने में इन्सपेक्टर अठवले से मिला ।
सबसे पहले उसने मकतूल की बाबत सवाल किया ।
“इधर पोस्टमार्टम का कोई इन्तजाम नहीं है ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “इसलिये लाश कल पूना भिजवाई गयी थी । आज पोस्टमार्टम होगा, उसके बाद लाश सौंपी जायेगी ।”
“किसे ?”
“जो कोई भी क्लेमेंट होगा ।”
“कौन ?”
“फिलहाल तो पाटिल के अलावा कोई नहीं दिखाई देता । या फिर तुम, जो कि उसके विरसे में हिस्सेदार हो । या फिर वो चैरिटेबल ट्रस्ट, जो कि तुम्हारे साथ बराबर का हिस्सेदार है ।”
“अंतिम संस्कार हम करेंगे ।”
“हम में कौन कौन शामिल है ?”
“तीन आनन्द शामिल हैं और कई एसोसियेट्स शामिल हैं । मकतूल आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का क्लायन्ट था, मौजूदा हालात में हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने क्लायन्ट के आखिरी सफर को आर्गेनाइज करें ।”
“बशर्ते कि पाटिल कोई अड़ंगा न लगाये ।”
“उम्मीद नहीं कि लगायेगा । लगायेगा तो पछतायेगा ।”
“परसों तो बहुत उछल रहा था ! बड़े बड़े चैलेंज फेंक रहा था !”
“वक्ती जोशोजुनून की बात थी वो । वो शख्स चार पैसों का तमन्नाई यहां है । कोई रकम उसे अब मिल जाये तो वो अभी यहां से ऐसे गायब होगा जैसे कभी इधर आया ही नहीं था ।”
“कमाल है !”
“रिंकी के एक्सीडेंट के बारे में क्या कहते हो ?”
“एक्सीडेंट ही था ।”
“कत्ल की कोशिश नहीं ?”
“वो कौन करेगा ? महाडिक के अलावा कोई नाम लेना, क्योंकि उस नाम का जिक्र पहले आ चुका है ।”
“और कोई नाम तो मुझे नहीं सूझ रहा ।”
“फिर भी सोचना इस बाबत ।”
“अच्छी बात है । तो मीनू सावन्त कैप्सूलों की मिल्कियत से मुकर गयी ?”
“मैंने पहले ही बोला था मुकर जायेगी - तलाशी में भी कुछ हाथ न लगा - सब बखेड़ा तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी वजह से हुआ । पुलिस को खबर करने की जगह उठ के खुद चल दिये जासूसी झाड़ने ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, जो खता बख्श चुके हो, उसी के नश्तर फिर क्यों चला रहे हो ?”
“खता ये जाने के बख्शी थी कि वो एक ही थी जो कि तुम अनजाने में कर बैठे थे । तुमने तो खताओं का पुलन्दा बान्ध के रखा जान पड़ता है ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम्हें नहीं मालूम क्या मतलब ?”
“लो ! मालूम होता तो पूछता ।”
“मैं मिसेज वाडिया से मिला था । अब समझे क्या मतलब ?”
मुकेश चुप रहा ।
“परसों रात पौने ग्यारह बजे उस औरत ने घिमिरे को मकतूल के कॉटेज में जाते देखा था....”
“कॉटेज की तरफ जाते देखा था । उसने ऐसा कभी नहीं बोला था कि कॉटेज में जाते देखा था ।”
“लफ्फाजी मत झाड़ो । ये थाना है, अदालत नहीं । समझे !”
“सॉरी ।”
“इतनी रात गये जो कॉटेज की तरफ जाता है, वो कॉटेज में जाने की नीयत से ही जाता है ।”
“चलिये, ऐसा ही सही ।”
“एहसान मत करो ये कुबूल करके । ऐसा ही है ।”
“ऐसा ही है ।”
“एक तो खुद बात छुपा के रखी, ऊपर से उसको भी राय दे दी कि खामोश रहे ।”
“बिलकुल गलत । मैंने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा था ।”
“ये तो कहा था कि वो कोई जल्दबाजी न करे; सोचे, विचारे और तब फैसला करे ?”
“हां, ये तो कहा था लेकिन....”
“सोचने, विचारने और फैसला करने में वो हफ्ता लगा देती तो ये जानकारी हमारे किस काम की होती ?”
“अब भी किस काम की है ?”
“क्या कहा ?”
“आपने इस बाबत घिमिरे से कोई बात नहीं की तो अब भी किस काम की है ?”
“क्यों भई ? हम क्या पागल बैठे हैं यहां ?”
“यानी कि बात की ?”
“हां, की । आज सुबह की । लम्बी बात की । हवा खुश्क कर दी भीड़ू की । बातचीत मुकम्मल हुई थी तो उसकी शक्ल यूं लग रही थी जैसे उसका फांसी पर झूलना बस वक्त की बात थी ।”
“अरे !”
“क्या अरे ? उसके पास अवसर था, उद्देश्य था । अवसर का पता अब मिसेज वाडिया के बयान से लगा और उद्देश्य मुझे पहले से मालूम था कि उसके पास था । तीन साल से भीड़ू दिलोजान से मकतूल के लिये इसलिये मेहनत कर रहा था कि कभी वो रिजॉर्ट में चौथाई हिस्से का मालिक होगा । परसों एकाएक विनोद पाटिल यहां पहुंच गया जिसने आकर उसका सारा सपना ही चकनाचूर कर दिया, ऐसे हालात पैदा कर दिये कि प्रापर्टी में हिस्सेदारी तो क्या काबू में आती, मुनाफे में जो हिस्सेदारी थी, वो भी हाथ से जाती दिखाई देने लगी । लिहाजा अपने को बर्बाद होने से बचाने के लिये उसने देवसरे का खून कर डाला ।”
“हथियार ! हथियार भी जरूरी होता है कत्ल के लिये ?”
“जो कि उसने कत्ल के बाद गायब कर दिया । क्या मुश्किल काम था !”
“हासिल कहां से किया खड़े पैर ?”
“नहीं बताता । इतना पूछा, इतना खौफजदा किया फिर भी नहीं बताता । लेकिन बतायेगा, क्यों नहीं बतायेगा, जरूर बतायेगा । और अपना गुनाह भी अपनी जुबानी कुबूल करेगा । अभी थोड़ी सी ढील दी है भीड़ू को, फिर खींच लेंगे ।”
“एकाउन्ट्स की बाबत क्या कहता है ?”
“कहता है, एकाउन्ट्स एकदम चौकस हैं । लेकिन वो ही तो कहता है । क्या पता चौकस हैं या नहीं ।”
“आप चैक करवाइये ।”
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