RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“वो तो मैं करवाऊंगा लेकिन अब कुछ हाथ नहीं आने वाला । जरूर वो पहले ही सब सैट कर चुका होगा । अब वो एकाउन्ट्स की बाबत कुछ भी दावा कर सकता है क्योंकि जो शख्स उसके दावे को झुठला सकता था, वो तो रहा नहीं इस दुनिया में । और” - एकाएक उसका स्वर कर्कश हो उठा - “इस पंगे के लिये भी तुम जिम्मेदार हो ।”
“मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी ।”
“उसको वक्त मिल गया लीपापोती करने का । तुमने मिसेज वाडिया को फौरन पुलिस से सम्पर्क करने की राय दी होती तो ये नौबत न आती ।”
“बोला न, मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी ।”
“सुना मैंने जो बोला ।”
“अगर आप शान्त हो जायें तो मैं एक सवाल और पूछूं ?”
“पूछो, क्या पूछना चाहते हो ?”
“आप घिमिरे को कातिल करार दे रहे हैं । अगर वो कातिल है तो इस लिहाज से मीनू सावन्त तो उसकी अकम्पलिस हुई ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब साफ है । मेरे को मिस्टर देवसरे से अलग किये बिना उसका कत्ल मुमकिन नहीं था । और ये अलहदगी उन कैप्सूलों की वजह से हुई जो कि मीनू सावन्त के अधिकार में थे जिसमें से दो की दवा को मेरे ड्रिंक में घोल कर मुझे बेहोश किया गया था और यूं रास्ते से हटाया गया था । अब सवाल से है कि क्या घिमिरे मीनू सावन्त को इतना काफी जानता था कि वो उसके लिये ये काम करने को तैयार हो जाती ?”
“नहीं” - तनिक हिचकिचाता हुआ इन्स्पेक्टर बोला - “इतना काफी नहीं जानता था । हमारी तफतीश से उनकी कोई घनिष्टता उजागर नहीं हुई है ।”
“तो क्या उसने रिश्वत देकर अपना काम निकलवाया ?”
“हो सकता है । तुम्हारे पर इस्तेमाल किये गये कैप्सूलों की कोई और कहानी भी हो सकती है जो कि इस वक्त हमारे कयास में नहीं है । लेकिन इस वक्त ये बात अहम नहीं है । इस वक्त अहम बात ये है कि घिमिरे ने देवसरे को रिजॉर्ट में अकेले... अकेले लौटते देखा और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था । देवसरे को खत्म कर देने का उसे वो बड़ा सुनहरा मौका लगा और उस मौके को - जिसकी बाबत वो नहीं जानता था कि क्योंकर पैदा हो गया था - उसने कैश किया ।”
“आपने उसे बताया तो होगा कि मिसेज वाडिया उसके बारे में क्या कहती थी ।”
“बराबर बताया ! उसी बात ने तो उसकी हवा खुश्क की थी ।”
“क्या बोला जवाब में ?”
“वही जो उसकी जगह कोई और भी होता तो बोलता । साफ मुकर गया । बोला मिसेज वाडिया को मुगालता लगा था । इतना उसने जरूर माना कि उस घड़ी था वो रिजॉर्ट के कम्पाउन्ड में ही ।”
“क्या कर रहा था ?”
“टहल कर रहा था ?”
“मिस्टर देवसरे के कॉटेज की तरह क्यों गया ?”
“नहीं गया । सिर्फ कॉटेज की राहदरी के दहाने पर सिग्रेट सुलगाने के लिये थोड़ी देर को ठिठका था । बोला, कॉटेज में जाने का उसका कोई मतलब ही नहीं था ।”
“क्या पता यही बात हो !”
“मुझे यकीन नहीं । मैंने ऐसे किसी शख्स को कोई पहली बार क्रास कवेश्चन नहीं किया । उसकी तो शक्ल पर लिखा था कि वो झूठ बोल रहा था ।”
“ये बात आप इस बात को ध्यान में रख कर कह रहे हैं न कि मिसेज वाडिया एक आदी तांक झांक करने वाली औरत है और पक्की गपोड़शंख है ।”
“जब घिमिरे खुद कुबूल करता है कि वो कम्पान्ड में था तो ये सेफली कहा जा सकता है कि कम से कम इस बार उसने गप नहीं मारी है ।”
“यानी कि आपकी तरफ से तो मिस्टर देवसरे के कत्ल का केस हल हो चुका है ।”
“हां ।”
“तो फिर कातिल आजाद क्यों है ?”
“बताया तो । थोड़ी ढील दी है, उसे कोई गलती करने की छूट दी है ।”
“कैसी गलती ?”
“वो फरार होने की कोशिश कर सकता है । उसका ऐसी कोई कोशिश करना जुर्म का इकबाल करना होगा ।”
“काफी उस्ताद हैं आप ।”
इन्सपेक्टर बड़ी शान से मुस्काराया ।
“इन्सपेक्टर साहब, मौजूदा हालात में घिमिरे के बारे में मैं कुछ कहूंगा तो वो उसकी मुसीबतों को दोबाला करना होगा लेकिन क्योंकि पहले ही दो बार तफ्तीश में लोचा डालने का इल्जाम मुझ पर आयद हो चुका है इसलिये घिमिरे की बाबत मैं भी कुछ आपको बताता हूं ।”
“क्या ? क्या बताना चाहते हो ?”
“घिमिरे स्वतन्त्र रूप से रिजॉर्ट के बिजनेस में हाथ डालने के लिये, सोल प्रोप्राइटर बन कर बिजनेस में हाथ डालने के लिये कदम उठा भी चुका था ।”
“अच्छा !”
“जी हां । ये तसदीकशुदा खबर है ।”
“कब ? कैसे ?”
मुकेश ने सविस्तार मधुकर बहार से अपनी मुलाकात की रिपोर्ट पेश की ।
“क्या कह रहे हो !” - मुकेश खामोश हुआ तो इन्सपेक्टर हैरानी से बोला - “तुम ये कहना चाहते हो कि परसों रात घिमिरे ने मधुकर बहार को सोते से जगाया और पचास हजार के बयाने और तीन महीने के टाइम की एवज में उसके साथ बहार विला का डील क्लोज किया ?”
“हां ।”
“अगली सुबह कूरियर के जरिये बयाना पहुंचा भी दिया ?”
“हां । मधुकर बहार ने मुझे ऐन यही कुछ कहा था, खुद तसदीक कर लीजिये ।”
“वो तो मैं यकीनन करूंगा । हल्फिया बयान हासिल करूंगा मैं मधुकर बहार से । उसने परसों रात घिमिरे की टेलीफोन कॉल का कोई टाइम नहीं बताया था ?”
“नहीं बताया था । बस इतना कहा था कि उस कॉल ने उसे सोते से जागाया था ।”
“सोते से जगाया गया था तो देर रात का ही टाइम होगा न !”
“बाज लोग जल्दी भी सो जाते हैं ।”
“बहरहाल मुझे मालूम करना होगा कि वो कॉल कत्ल से पहले की गयी थी या कत्ल के बाद की गयी थी । मैं जरा मधुकर बहार का बयान हासिल कर लूं उसके बाद फिर खबर लेता हूं घिमिरे की । जितनी ढील मिलनी थी, मिल चुकी भीड़ू को । तुम्हारी बात की मधुकर बहार से तसदीक हुई तो अब तो उसे फरार होने का भी मौका नहीं मिलेगा ।”
“तसदीक जरूर होगी । न होने की कोई वजह ही नहीं ।”
“बढिया । बढिया ।”
***
एक एस.टी.डी. बूथ से मुकेश ने मुम्बई अपने ऑफिस में फोन किया और अपने सहकर्मी एडवोकेट सुबीर पसारी को लाइन पर लिया ।
“मुकेश बोल रहा हूं, ब्रदर ।” - वो बोला ।
“अभी वहीं हो ?” - पसारी ने पूछा ।
“हां ।”
“वजह ?”
“तुम्हें मालूम होनी चाहिये । यू आर नियरर टू गॉड ।”
“गॉड ।”
“आलसो नोन ऐज नकुल बिहारी आनन्द ।”
वो हंसा और फिर बोला - “कैसे फोन किया ?”
“एक जानकारी चाहिये । वार फुटिंग पर ।”
“किस बाबत ?”
“एक वसीयत की बाबत । और उसके जारी करने वाले की बाबत !”
“ये क्या मुश्किल काम है ? ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ड को बोला होता !”
“केस हमारी फर्म का नहीं है ।”
“ओह !”
“वसीयत करने वाले का नाम आनन्द बोध पंडित है जो कि बहुत रुतबे और रसूख वाला आदमी बताया जाता है । तीन महीने पहले वो इस दुनिया से कूच कर गया था । अपनी मौत से पहले उसने अपनी इकलौती बेटी के नाम वसीयत की थी जो कि गुमशुदा है ।”
“गुमशुदा क्या मतलब ?”
“गायब है । ढूंढे नहीं मिल रही ।”
“ओह !”
“बेटी का नाम तनुप्रिया है । बाप का नाम भी ऐसा ही गैर मामूली है । ऊपर से बड़ा आदमी था इसलिये वसीयत किसी ऐरे गैरे वकील से तो बनवाई न होगी ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड । डोंट ड्रा मी ए डायग्राम ।”
“सॉरी ।”
“मैं देखूंगा क्या किया जा सकता है ।”
“आन वार फुटिंग ।”
“ओके । कुछ मालूम पड़े तो कहा खबर करुं ?”
मुकेश ने उसे रिजॉर्ट के ऑफिस का और दिवंगत देवसरे के पर्सनल फोन का नम्बर बताया ।
“ओके ।”
“अब कॉल बिग बॉस को ट्रासफर कर दो ।”
कॉल ट्रासफर हुई । बाजरिया कम्बख्त बॉस की कम्बख्त सैक्रेट्री उसकी नकुल बिहारी आनन्द से बात हुई
“माथुर स्पीकिंग, सर ।” - वो अदब से बोला ।
“माथुर” - उसे अपने बॉस की सख्त आवाज सुनायी दी - “आई डोंट वांट टु स्पीक टु यू इफ देयर इज क्रॉस टाक आन दि लाइन ।”
“आज क्रॉस टाक नहीं है, सर, क्योंकि रूट की लाइनें सुधर गयी हैं ।”
“अब कॉल वाया शोलापुर नहीं हो रही ?”
“नो, सर ।”
“थैंक गॉड । अब बोलो क्या कहना चाहते हो ? कातिल पकड़ा गया ?”
“अभी नहीं, सर ।”
“मालूम पड़ गया कि कौन कातिल है ?”
“अभी नहीं, सर ।”
“फिर क्या फायदा हुआ ? फिर तो मैं यही कहूंगा कि तुम वहां फर्म का वक्त बर्बाद कर रहे हो । माथुर, यू हैव नो सैंस आफ रिस्पांसिबलिटी । विल यू ऐवर बी एबल टु अचीव एनीथिंग इन यूअर लाइफ ?”
अरे कम्बख्त बूढे खूंसट, कभी तो दो मीठे बोल बोल लिया कर ।
“सर, कातिल का पता लगता पुलिस का काम है ।”
“मुझे बता रहे हो ?”
“जब आपको नहीं मालूम तो बताना तो पड़ेगा न !”
“कौन बोला नहीं मालूम ?”
“आप ही बोले, सर ।”
“मैं कब बोला ?”
“अब मैं ट्रंककॉल पर आपसे बहस तो नहीं कर सकता, सर, लेकिन बोला तो आपने बराबर ।”
“माथुर, तुम मेरे में नुक्स निकाल रहे हो ?”
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